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Time Machine on Zee News: ज़ी न्यूज के खास शो टाइम मशीन में हम आपको बताएंगे साल 1992 के उन किस्सों के बारे में जिसके बारे में शायद ही आपने सुना होगा. इसी साल बिहार में सुपर 30 की शुरुआत हुई थी. इसी साल अयोध्या में विवादित ढांचा गिराया गया था. 1992 ही वो साल था जब सुनील गवास्कर ने दंगो में बचाई थी अपने परिवार की जान. इसी साल महाघोटाला कर हर्षद मेहता चर्चा में आए थे. यही वो वर्ष है, जब सत्यजीत रे को अपनी फिल्म के लिए ऑस्कर मिला था.आइये आपको बताते हैं साल 1992 की 10 अनसुनी अनकही कहानियों के बारे में.
जब गिराया गया विवादित ढांचा
6 दिसंबर 1992 का दिन भारतीय इतिहास में बेहद अहम है. इस दिन ही अयोध्या में विवादित ढांचे को गिराया था. यह घटना इतनी अहम साबित हुई कि इसने देश की राजनीति को पूरी तरह से बदलकर रख दिया. 6 दिसंबर को मुस्लिम समुदाय काला दिवस के तौर पर मनाता है, जबकि हिंदू समुदाय इसे शौर्य दिवस के तौर पर मनाता है. 5 दिसंबर 1992 की सुबह से ही अयोध्या में विवादित ढांचे के पास कारसेवक पहुंचने शुरू हो गए थे. उस समय सुप्रीम कोर्ट ने विवादित ढांचे के सामने सिर्फ भजन-कीर्तन करने की इजाजत दी थी. विवादित ढांचे के पूर्व में लगभग 200 मीटर दूर रामकथा कुंज में एक बड़ा स्टेज लगाया गया था. 6 दिसंबर 1992 के दिन सुबह 9 बजे पूजा-पाठ हो रही थी. भजन-कीर्तन चल रहा था. विवादित ढांचे के ठीक सामने वाले मंच पर एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कलराज मिश्रा, अशोक सिंहल, रामचंद्र परमहंस मौजूद थे. डीएम-एसपी सब वहीं थे. करीब 12 बजे फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक ने ‘विवादित ढांचा और राम जन्मभूमि परिसर’ का दौरा भी किया. लेकिन वो आने वाले तूफान को भांपने में विफल रहे और कुछ ही देर में माहौल पूरी तरह बदल गया. अचानक कारसेवकों का एक बड़ा हूजूम नारों की गूंज के बीच विवादित स्थल पर घुसा. इसके बाद उपद्रव शुरू हो गया. भीड़ विवादित ढांचे पर चढ़ गई. कुदाल-फावड़े के साथ आगे बढ़ रही भीड़ को रोकने की काफी कोशिश की गई, इस दौरान संघ के लोगों के साथ उनकी छीना-झपटी भी हुई. लेकिन, भीड़ कहां रुकने वाली थी. जिसके हाथ में जो मिला लेकर चलता बना और गुंबद को ढहा दिया गया.
श्रीनगर के लाल चौक पर लहराया तिरंगा
1992 में तिरंगा यात्रा कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक की वो यात्रा थी, जिसका समापन श्रीनगर के लाल चौक पर झंडा फहरा कर होना था. उस समय ये यात्रा बीजेपी अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में होनी थी. मुरली मनोहर जोशी के साथ उस वक्त नरेंद्र मोदी भी थे. अनुच्छेद-370 हटाओ, आतंकवाद मिटाओ जैसे मुद्दों पर अपनी आवाज बुलंद करते हुए मुरली मनोहर जोशी के साथ नरेंद्र मोदी लाल चौक पहुंचे. जिसके बारे में उन्होने एक इंटरव्यू में बताया कि मैंने हैदराबाद से ही आतंकवादियों को ललकारा था कि मैं 26 जनवरी को श्रीनगर के लाल चौक सुबह 11 बजे पहुंच जाऊंगा. मैं बुलेट प्रूफ जैकेट पहनकर नहीं आऊंगा. मैं बुलेट प्रूफ गाड़ी में भी नहीं आऊंगा. हाथ में सिर्फ तिरंगा झंडा लेकर आऊंगा और फैसला 26 जनवरी को लाल चौक पर होगा कि किसने अपनी मां का दूध पिया है. इसके बाद मैं अपने समयानुसार लाल चौक पर पहुंचा और झंडा फहरा कर वापस लौट आया और आज आपके सामने खड़ा हूं. लाल चौक पर तिरंगा फहराने का सबसे बड़ा असर फौज के मनोबल पर पड़ा था. उनका मनोबल काफी बढ़ गया था, क्योंकि वह जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से लड़ रहे थे.
हाइजैकर के सामने सीना ताने खड़े अटल जी
अटल बिहारी वाजपेयी के दमखम और जज्बे को तब सब सलाम करने लगे जब वाजपेयी खुद एक हाइजैकर के सामने सीना ताने खड़े हो गए. कहानी साल 1992 की है. जब राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद जोरों पर था. लखनऊ में राष्ट्रपति शासन लागू था. इसी बीच अटल जी लखनऊ में थे और मीराबाई रोड के गेस्ट हाउस में रात का खाना खा रहे थे. खाना खाने के बाद उन्हें वापस दिल्ली निकलना था. इसी बीच अटल जी को पता चला अमौसी एयरपोर्ट पर एक युवक ने एक विमान हाईजैक कर लिया है और उसके हाथ में कोई बम जैसी चीज है. प्लेन हाईजैकर ने विमान को उड़ाने की धमकी दी है. वो चहता था कि, अटल बिहारी वाजपेयी आ जाएं तो वो सभी यात्रियों को छोड़ देगा. अटल जी विमान में पहुंचे तो उनके साथ मौजूद बीजेपी नेता लालजी टंडन ने हाईजैकर से कहा अटलजी आए हैं इनके पैर तो छुओ. युवक जैसे ही अटलजी का पैर छूने को जैसे ही झुका, तुरंत वहां मौजूद एक पुलिस अधिकारी ने उसे पकड़ लिया. इस दौरान उस युवक ने अपने हाथ में लिए एक सुतली के गुच्छे को फेंकते हुए कहा कि उसके पास कोई बम नहीं है, वो तो सिर्फ इन्हें यह बताना चाहता था कि देश में राम जन्मभूमि आंदोलन को लेकर कितना आक्रोश है. इसीलिए वो उनसे मिलने आया था. उसने ये सब किया, आखिरकार सभी यात्रियों को सकुशल छोड़ा गया.
देव आनंद ने दिया इमरान खान को ऑफर
1992 में पाकिस्तान ने इमरान खान की कप्तानी में पहला वनडे विश्व कप जीता था. जिसके बाद बॉलीवुड एक्टर देवानंद ने उन्हें बॉलीवुड में काम करने का ऑफर दिया था. सुनने में आपको अजीब लग रहा हो, लेकिन ये बात सच है. इस किस्से का जिक्र खुद इमरान खान ने एक इटंरव्यू के दौरान किया. इमरान ने बताया कि आप विश्वास नहीं करेंगे कि भारत के एक बड़े एक्टर ने मुझे फिल्मों में काम करने का ऑफर दिया था. वह इसके लिए मेरे पास इंग्लैंड भी आए थे, उनका नाम देवानंद था, लेकिन मेरे लिए ये हैरान करने वाली बात थी. क्योंकि मैं ये सोच रहा था कि चूंकि मैं क्रिकेट खेलता हूं तो मैं कैसे एक्टर बन सकता हूं. मेरे लिए इसका कोई मतलब नहीं है, इस्माइल मर्चेंट ने भी मुझे फिल्मों में काम करने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन मैं फिर हैरान हो गया था कि मैं एक्टिंग कैसे कर सकता हूं. मैं स्कूल के प्ले में भी एक्टिंग नहीं कर सकता तो फिल्मों की तो बात ही अलग है. इमरान खान ने भले ही बॉलीवुड में काम ना किया हो. लेकिन बॉलीवुड की हसीना जीनत आमान भी इमरान पर फिदा थीं. कहा तो ये भी जाता है कि इमरान और जीनत एक वक्त पर एक दूसरे को डेट भी करते थे.
Period Leave देने वाले पहले CM लालू प्रसाद यादव
महिलाओं को हर महीने पीरियड्स होते हैं. यह समय उनके लिए किसी पीड़ा से कम नहीं होता है. इस जरूरत को देखते हुए द्वितीय विश्व युद्ध के ठीक बाद 1947 में जापान ने नए श्रम कानून में पीरियड्स लीव को शामिल किया. तो वहीं भारत में इसकी शुरुआत 1992 से बिहार में हुई. भारत में बिहार पहला ऐसा राज्य बना जहां साल 2 जनवरी 1992 से महिला कर्मचारियों को 2 दिन की पीरियड्स के लिए छुट्टी दी जा रही है. इसके लिए वहां की महिलाओं ने 32 दिन तक हड़ताल की थी जिसके बाद उन्हें यह हक मिला. इसकी शुरुआत लालू प्रसाद सरकार ने की थी.
हर्षद मेहता ने सभी को चौंकाया
1990 के दशक में देश का वित्तीय बाजार बुरी तरह से हिला कर रख देने वाले शख्स का नाम था हर्षद मेहता. ये वो आदमी था जिसने साल 1992 में एक या दो करोड़ का नहीं बल्कि 4000 करोड़ का घोटाला किया था. देश में इकोनॉमिक रिफॉर्म्स की शुरुआत साल 1991 में हुई थी. भारतीय अर्थव्यस्था के लिए साल 1990 से 1992 का समय बड़े बदलाव का वक्त था. लेकिन इस बीच एक ऐसा घोटाला सामने आया, जिसने शेयरों की खरीद-बिक्री की प्रकिया में भूचाल ला दिया था. 1990 में शेयर बाजार तेजी से बढ़ा जिसके लिए ब्रोकर मेहता को जिम्मेदार माना गया और उन्हें 'बिग बुल' का दर्जा दिया गया. मेहता बैंकिंग नियमों का फायदा उठाकर बैंकों को बिना बताए उनके करोड़ों रुपये शेयर मार्केट में लगाते थे. मेहता दो बैंकों के बीच बिचौलिया बनकर 15 दिन के लिए लोन लेकर बैंकों से पैसा उठाते थे और फिर मुनाफा कमाकर बैंकों को पैसा लौटा देते थे. ये बात जब सामने आई तो शेयर मार्केट में तेज गिरावट आनी शुरू हो गई. खुलासा होने के बाद मेहता के ऊपर 72 क्रिमिनल चार्ज लगाए गए और सिविल केस फाइल हुए. इस घोटाले के जिम्मेदार हर्षद मेहता थे जिन्होंने लगभग 4000 करोड़ का घोटाला किया था.
कैसे हुई सुपर 30 की शुरुआत
फैक्ट्री मज़दूर और सड़क किनारे अंडे बेचने वाले गरीब माता-पिताओं के लिए देश के बड़े संस्थानों में अपने बच्चों को पढ़ाना दिन में ख्वाब देखने जैसा है. लेकिन सुपर-30 कोचिंग चलाने वाले आनंद कुमार ने इन ख्वाबों को पूरा करने का जिम्मा अपने कंधों पर उठाया जिसकी शुरुआत 1992 से हुई. वर्ष 1992 में आनंद कुमार ने गणित विषय को अपने प्रोफेशन के रूप में चुना, इसके लिए उन्होंने 500 रुपय महीने का एक रूम किराये पर लिया और खुद का कोचिंग क्लास रामानुज स्कूल ऑफ़ मेथेमेटिक्स की शुरुआत की. पहले इस क्लास के केवल दो विद्यार्थी पढने के लिए आये परंतु अगले 2 वर्षो में इनकी संख्या बढ़कर 36 हो गयी और तीसरे वर्ष में लगभग 500 छात्रों ने इसमे दाखिला लिया. इसके बाद साल 2000 में एक गरीब छात्र उनके पास आया, जो आईआईटी और जेईई (IIT & JEE) की कोचिंग करना चाहता था, परंतु उसके पास ट्यूशन फीस के पैसे नहीं थे. आनंद कुमार ने इस बच्चे को पढ़ाना स्वीकार किया और उसका चयन आईआईटी (IIT) में हो गया. इससे प्रेरित होकर उन्होंने सुपर 30 की शुरुआत की.
सत्यजीत रे को मिला ऑस्कर
भारतीय सिनेमा के इतिहास में 30 मार्च 1992 की तारीख खास महत्व रखती है. 1992 में आज ही के दिन भारतीय सिनेमा के युगपुरुष सत्यजीत रे को ऑस्कर लाइफ टाइम अचीवमेंट मानद पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. देश के सिनेमाई इतिहास में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में लिखने वाले सत्यजीत रे को 1992 में ही भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था. सत्यजीत रे को ऑस्कर का ऑनरेरी अवॉर्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट दिया गया था. हालांकि, उस वक्त वह काफी बीमार चल रहे थे और हॉस्पिटल में भर्ती थे. ऑस्कर देने वाली अकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंस के पदाधिकारियों ने ये अवॉर्ड उनके घर में पहुंचाया था. इसके एक महीने से भी कम समय के बाद 23 अप्रैल 1992 में दिल का दौरा पड़ने से सत्यजीत रे का निधन हो गया था.
जब शुरू हुआ ताजमहोत्सव
1992 से शुरु हुआ ताज महोत्सव भारतीयों का ही नहीं, बल्कि विदेशी पर्यटकों को भी काफी भाता है. आगरा के सर्किट हाउस में पहले हर साल शरद उत्सव हुआ करता था. हर साल वहां ऐसा ही मेला लगाया जाता था, लेकिन ताज के लिए पहचाने जाने वाले आगरा को एक ऐसे महोत्सव की जरूरत थी, जिसमें उन्हें भारतीय लोक कला, संस्कृति, संगीत और पकवानों स्वाद मिल सके. कुछ इसी सोच के साथ एक प्रयास किया गया और ताजमहोत्सव की शुरुआत की गई. शुरुआती दौर में महोत्सव गांव में लगने वाले मेंलों की तरह ही दिखता था. दुकानें टेंट से सजाई जाती थीं, यहां तक की मंच भी तख्त का बना हुआ होता था. 90 के दशक में जैसे-जैसे ग्लोबलाइजेशन पर जोर दिया, वैसे-वैसे फिर शुरु हुआ मेले को रोचक और आकर्षक बनाने का दौर, जिसमें महोत्सव को नई और रोचक थीम दी गई. प्रस्तुतियों में नयापन लाया गया, रंगारंग प्रस्तुतियों के साथ नए-नए करतब और हास्य व्यंग कलाकारों को भी स्थान दिया गया.
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