इंदिरा गांधी के शासन में बैलगाड़ी से संसद क्यों पहुंचे थे अटल बिहारी वाजपेयी?
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इंदिरा गांधी के शासन में बैलगाड़ी से संसद क्यों पहुंचे थे अटल बिहारी वाजपेयी?

Zee News Time Machine: उत्तर प्रदेश में साल 1973 में एक ऐसी घटना हुई जिससे पूरा देश सकते में आ गया था. 1973 में यूपी में कांग्रेस की सरकार थी और पंडित कमलापति त्रिपाठी सीएम थे.

इंदिरा गांधी के शासन में बैलगाड़ी से संसद क्यों पहुंचे थे अटल बिहारी वाजपेयी?

Time Machine on Zee News: ज़ी न्यूज के खास शो टाइम मशीन में हम आपको बताएंगे साल 1973 के उन किस्सों के बारे में जिसके बारे में शायद ही आपने सुना होगा. इसी साल इंदिरा गांधी ने लाल किले के अंदर 15 अगस्त को टाइम कैप्सूल 32 फीट नीचे दबाया था. ये वही साल है जब अटल बिहारी वाजपेयी बैलगाड़ी से ससंद भवन पहुंचे थे. इसी साल पहली बार आजाद भारत का पहला 'ब्लैक बजट' पेश हुआ था. इसी साल हवाई जहाज से हज यात्रा शुरू हुई थी. आइये आपको बताते हैं साल 1973 की 10 अनसुनी अनकही कहानियों के बारे में.

लाल किले में इंदिरा का टाइम कैप्सूल

टाइम कैप्शूल के बारे में शायद आप ज्यादा जानकारी नहीं रखते होंगें, लेकिन टाइम कैप्शूल का इतिहास सदियों पुराना है. साल 1973 में इंदिरा गांधी ने लाल किले के अंदर 15 अगस्त को टाइम कैप्सूल 32 फीट नीचे दबाया था. दावा किया जाता है कि इस टाइम कैप्सूल में आजादी के बाद 25 वर्षों का घटनाक्रम साक्ष्य के साथ मौजूद था. सरकार चाहती थी कि आजादी के 25 साल बाद की स्थिति को संजोकर रखा जाए. इसके लिए टाइम कैप्सूल बनाने का आइडिया दिया गया था. इंदिरा ने अतीत की अहम घटनाओं को दर्ज करने का काम इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च को सौंपा था. सरकार ने उस टाइम कैप्सूल का नाम कालपात्र रखा था. हालांकि, तब सरकार के इस फैसले पर काफी विवाद भी हुआ था. विपक्ष का आरोप था कि इंदिरा गांधी ने टाइम कैप्सूल में अपने और अपने परिवार का महिमामंडन किया है. टाइम कैप्सूल का मकसद आने वाली पीढ़ियों को इतिहास के बारे में बताना होता है. यह एक कंटेनर जैसा होता है जो विशेष सामग्री से बनता है. टाइम कैप्सूल पर किसी भी मौसम का असर नहीं होता. इसे जमीन में काफी नीचे रखा जाता है. गहराई में होने के बावजूद इसे कोई नुकसान नहीं होता. टाइम कैप्सूल हजारों साल तक सुरक्षित रहता है.

बैलगाड़ी से संसद पहुंचे अटल बिहारी

साल 1973 में इंदिरा गांधी सरकार ने पेट्रोल के दाम बढ़ाए तो इसका विरोध अटल बिहारी वाजपेयी ने खूब किया. विरोध के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी संसद तक इसके विरोध में अपनी किसी गाड़ी में नहीं बल्कि बैलगाड़ी से पहुंचे थे. ये फोटो इतिहास में दर्ज हो गई. 1973 में इंदिरा गांधी की सरकार ने पेट्रोल और तेल के दामों में बढ़ोतरी की. इसके बाद पेट्रोल-डीजल की ऊंची कीमतों के विरोध में 12 नवंबर, 1973 को बीजेपी नेता अटल बिहारी वाजपेयी और दो अन्य सांसद बैलगाड़ी से संसद पहुंच गए थे. इसी दिन संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत हुई थी. छह सप्ताह चले सत्र के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ संसद में विपक्ष में काफी हंगामा किया था. विपक्षी दलों ने इंदिरा सरकार से इस्तीफे की मांग तक की थी. उस समय अटल बिहारी वाजपेयी समेत और बाकी विपक्षी नेता देश में पेट्रोल और डीजल की कमी के चलते इंदिरा गांधी के बग्घी से यात्रा करने का भी विरोध कर रहे थे. इंदिरा गांधी उस समय लोगों को पेट्रोल बचाने का संदेश देने के लिए बग्घी से यात्रा कर रही थीं.

जब पुलिस विद्रोह की आग को शांत करने आई सेना

उत्तर प्रदेश में साल 1973 में एक ऐसी घटना हुई जिससे पूरा देश सकते में आ गया था. 1973 में यूपी में कांग्रेस की सरकार थी और पंडित कमलापति त्रिपाठी सीएम थे. उस वक्त बेकार खाना मिलने से पीएसी के जवानों और पुलिसकर्मियों में काफी आक्रोश था. पीएसी के जवानों ने विरोध शुरू कर दिया था. इससे केंद्र सरकार भी चिंतित हो गई थी. आनन-फानन में विरोध को शांत करने के लिए राज्य को सेना का सहारा लेना पड़ा. राजधानी की सड़कों पर सेना के वाहन दौड़ने लगे. पुलिस लाइन्स को सेना ने चारों तरफ से घेर लिया. सेना और पीएसी जवान आमने-सामने थे. बताया जाता है कि सेना ने विरोध कर रहे जवानों पर गोलीबारी की जिसमें करीब 30 जवान मारे गए. करीब 100 से अधिक जवानों को गिरफ्तार किया गया. लेकिन अंत में कांग्रेस को बड़ा नुकसान हुआ और तत्कालीन यूपी सीएम पंडित कमलापति त्रिपाठी को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी. 12 जून 1973 को उन्होंने सीएम पद से अपना इस्तीफा दे दिया जिसके बाद यूपी में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया.

लंडन जाने के लिए जया-अमिताभ ने की शादी

70 और 80 के दशक में अमिताभ उभरते हुए सितारे थे. धीरे-धीरे वो फिल्मों में कामयाब हो रहे थे. इसी बीच साल 1973 में जंजीर फिल्म आई. फिल्म में अमिताभ के साथ जया बच्चन थीं. जंजीर ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के कई रिकॉर्ड बनाए. अमिताभ बच्चन के करियर को एक नई ऊंचाई मिली. फिल्म की टीम ने फैसला किया था कि अगर फिल्म हिट हुई तो ये सभी लंडन ट्रिप पर जाएंगे. अमिताभ ने खुद एक चैट शो में इस बात का खुलासा करते हुए कहा था, 'जंजीर' फिल्म में जया और मैं काम कर रहे थे. फिल्म की सफलता के बाद मैंने लंडन जाने के बारे में पापा को बताया, उन्होंने पूछा कि मेरे साथ और कौन-कौन जा रहा है. जया का नाम सुनते ही उन्होंने कहा कि बिना शादी किए मैं तुम्हें उसके साथ लंडन नहीं जाने दूंगा. पापा की बात सुनकर मैंने कहा ठीक है, हम कल ही शादी कर लेते हैं. हमने जल्द ही सब इंतजाम किया और अगले ही दिन शादी की और फिर लंडन के लिए निकल गए.

रॉ अधिकारी सबपर भारी

पाकिस्तान जाना, उसी देश में रहना और वहीं शादी करना. इसकी किसी को भनक तक ना लगना. ये कहानी है रविंद्र कौशिक की. रविंद्र कौशिक RAW के एजेंट थे और उन्होंने देश के लिए पाकिस्तान में जाकर वहां की सारी जानकारी जुटाई. यही वजह है कि रविंद्र कौशिक को 'द ब्लैक टाइगर' के नाम से जाना जाता था. कहा जाता है कि रविंद्र कौशिक अपने कॉलेज में मंच पर परफॉर्म कर रहे थे. तभी उनपर एक रॉ एजेंट की नजर पड़ी और बस यहीं से रविंद्र कौशिक के रॉ एजेंट बनने का सफर शुरू हो गया. 1973 में बी.कॉम. पूरा करने के बाद वो दिल्ली आए और रॉ के अधिकारी बन गए. उन्होंने 2 साल की कड़ी ट्रेनिंग ली. पाकिस्तान के तौर-तरीके और वहां के रहन-सहन को समझा. रविंद्र कौशिक को नया नाम और नई पहचान दी गई- नबी अहमद शाकिर, नागरिकता- पाकिस्तानी, पता- इस्लामाबाद . नए नाम और नई पहचान के साथ उन्हें पाकिस्तान भेजा गया. पाकिस्तान में उन्होंने फिर कराची यूनिवर्सिटी से बाकायदा LLB की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद वो पाकिस्तानी सेना में गए. मिलिट्री अकाउंट्स डिपार्टमेंट में बतौर कमिशंड अधिकारी बने और फिर मेजर रैंक तक पहुंचे. रविंद्र कौशिक को पाकिस्तान में अमानत नाम की लड़की से प्यार हुआ. दोनों ने शादी भी कर ली. लेकिन 1983 में उनका राज खुला. दरअसल, रॉ ने एक और जासूस इनायत मसीह को कौशिक से संपर्क में रहने के लिए भेजा. मसीह को पाकिस्तानी खुफिया अधिकारियों ने पकड़ लिया पूछताछ में इनायत मसीह ने अपना और रविंद्र कौशिक दोनों का राज खोल दिया जिसके बाद रविंद्र कोशिक को पकड़ लिया गया. रविंद्र कौशिक की जिंदगी के आखिरी 18 साल पाकिस्तान की अलग-अलग जेलों में भीषण यातनाओं में गुजरे. रविंद्र कौशिक ने हर टॉर्चर को सहा लेकिन कभी कोई राज नहीं बताए. 2001 में उनकी मौत हो गई.

आजाद भारत का पहला 'ब्लैक बजट'

आम बजट के बारे में सभी को जानकारी होगी. हर साल सरकार बजट पेश करती है और सरकार की कोशिश बजट में समाज के हर तबके को खुश करने की होती है. लेकिन आम बजट के अलावा क्या आप ब्लैक बजट के बारे में भी जानते हैं. साल 1973 में पहली बार आजाद भारत का पहला एकमात्र ब्लैक बजट पेश किया गया था. तब इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं. उनकी सरकार के वित्त मंत्री यशवंतराव बी चव्हाण ने 28 फरवरी, 1973 को यह बजट पेश किया था. उस समय देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था. खराब मानसून और 1971 में हुए युद्ध की वजह से अर्थव्यवस्था काफी कमजोर हो गई थी. इसलिए सरकार ने ब्लैक बजट पेश किया. इस बजट में सामान्य बीमा कंपनियों, कोल माइन्स के राष्ट्रीयकरण के लिए 56 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था. हालांकि बजट में 550 करोड़ रुपये का घाटा दिखाया गया था. ऐसा कहा जाता है कि कोयले की खदानों का राष्ट्रीयकरण किए जाने से काफी असर पड़ा. आइये आपको बताते हैं ब्लैक बजट किसे कहते हैं. जब सरकार का खर्च उसकी कमाई की तुलना में ज्यादा होता है, तो सरकार को बजट में कटौती करनी पड़ती है. ऐसे बजट को ब्लैक बजट कहा जाता है.

अमेरिका के स्काईलैब से उड़ी भारतीयों की नींद

अंतरिक्ष की दुनिया के अनगनित रहस्य हैं. इस बारे में करोड़ों रिसर्च किए गए हैं और बदलते दौर के साथ वैज्ञानिक नए-नए आयाम भी छू रहे हैं. लेकिन साल 1973 में कुछ ऐसा हुआ जो भारतीयों के लिए डराने वाला था. दरअसल अमेरिका ने  1973 में 'स्काईलैब' नाम के स्पेस स्टेशन को अंतरिक्ष में भेजा. ये करीब नौ मंजिला इमारत जितना ऊंचा था और इसका वजन 75,000 किलो था. इसने अंतरिक्ष में 5 साल तक ठीक से काम किया और धरती पर बैठे वैज्ञानिक भी इसे आराम से नियंत्रित करते रहे. लेकिन 1977-78 के दौरान सौर तूफान में निकली सूरज की गरम लपटों से इसे बहुत नुकसान पहुंचा. इससे स्काईलैब के सोलर पैनल खराब हो गए और सिस्टम ने काम करना बंद कर दिया. इसके चलते वैज्ञानिकों ने इस पर नियंत्रण खो दिया और यह अंतरिक्ष में घूमने लगा. वैज्ञानिकों के साथ-साथ पूरी दुनिया में दहशत फैल गई. ये कहा गया कि ये धरती पर गिरेगा. लेकिन सबसे ज्यादा चिंता भारत और अमेरिका में बढ़ी. दरअसल कहा गया कि स्काईलैब भारत या अमेरिका में से किसी एक देश पर गिरेगा. लोगों ने मान लिया कि अब उनके जीवन के कुछ ही दिन बचे हैं. कुछ लोग ये सोचकर की अब कुछ नहीं बचेगा खूब पैसे ख़र्च किए. फिर 11 जुलाई 1979 में भारत में सभी जगह पुलिस को हाईअलर्ट पर रख दिया गया. लेकिन इसी दिन ये हिंद महासागर में गिरा. जिससे किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ.

हवाई जहाज से हज यात्रा

मुस्लिम धर्म के सबसे पवित्र स्थानों में से एक हज है. वो जगह जहां हर साल लाखों मुस्लिम धर्म के लोग पहुंचते हैं और अपनी हज यात्रा को पूरा करते हैं. इस्लाम धर्म में मान्यता है कि जीवन में एक बार हज यात्रा पर जाना बेहद जरूरी है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि साल 1973 में एक हादसे के बाद हज यात्रा में बदलाव हुआ था. आजादी के बाद 1954 तक बॉम्बे की मुगल शिपिंग कम्पनी के जहाजों के द्वारा लोग हज यात्रा को पूरा करते थे. तब हवाई सफर की कोई ऐसी सुविधा नहीं थी. लेकिन 1954 के बाद हवाई यात्रा की भी शुरूआत हुई. लेकिन इसके बावजूद भी ज्यादातर हज यात्री पानी के जहाजों द्वारा हज पहुंचते थे. फिर 1973 में हज यात्रियों को लेकर जा रहे एक जहाज के साथ हादसा हुआ और 39 लोगों की इसमें जान चली गई. इसके बाद सरकार ने फैसला किया कि हज यात्रियों को सिर्फ हवाई जहाज के द्वारा ही हज ले जाया जाएगा. लेकिन तब हज करने वालों के लिए हवाई यात्रा मंहगी थी. ऐसे में उस वक्त इंदिरा गांधी सरकार ने हवाई यात्रा पर सब्सिडी की शुरूआत की.

कौन थीं अरुणा शानबाग

अगर आपसे कहा जाए कि कोई व्यक्ति जिंदगी और मौत से लड़ रहा है और सरकार से इच्छा मृत्यु की मांग कर रहा है. तो क्या आप इसपर यकीन कर पाएंगे? 27 नवंबर 1973 को अरुणा शानबाग की जिंदगी का आखिरी खुशहाल दिन था. मुंबई के केईएम हॉस्पिटल में काम करने वाली अरुणा शानबाग के साथ वहीं के वार्ड ब्वॉय सोहनलाल वाल्मिकी ने दुष्कर्म किया. अरुणा की जिंदगी यहीं से नर्क बन गई. केईएम अस्पताल में अरुणा कुत्तों को दवाई देने का काम करती थीं. वार्ड ब्वॉय सोहनलाल ने अरुणा के साथ दुष्कर्म किया. सोहनलाल ने कुत्ते के गले में बांधी जाने वाली चेन से अरुणा का गला दबाया था. गला दबाने से अरुणा के दिमाग में ब्लड सर्कुलेशन और ऑक्सीजन की कमी हुई. इसके बाद अरुणा शानबाग कोमा में चली गईं. अरुणा अंधी, बहरी और लकवाग्रस्त भी हो गई थीं. अरुणा 42 साल तक अस्पताल में कोमा में रहीं. सोहनलाल को 7 साल की सजा दी गई. सोहनलाल को हिंसा और चोरी का दोषी माना गया. 2009 में अरुणा की इच्छा मृत्यु के लिए याचिका दाखिल की गई. पत्रकार पिंकी विरानी ने इच्छा मृत्यु की याचिका दाखिल की. 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी. 18 मई 2015 को निमोनिया की वजह से अरुणा की मृत्यु हो गई.

लखनऊ से महिला क्रिकेट टीम की शुरूआत

साल 1973 में पहली बार महिला क्रिकेट टीम बनाई गई. 1973 में बेगम हमीदा हबीबुल्लाह की अध्यक्षता में लखनऊ में सोसायटी अधिनियम के तहत भारतीय महिला क्रिकेट संघ को पंजीकृत किया गया था. लखनऊ से ही महिला क्रिकेट टीम की शुरुआत हुई थी. इसके संस्थापक सचिव महेंद्र कुमार शर्मा थे. जो कई नई महिला क्रिकेटरों के लिए वरदान के रूप में आए. उसी वर्ष भारतीय महिला क्रिकेट संघ को अंतरराष्ट्रीय महिला क्रिकेट परिषद (IWCC) की सदस्यता भी प्राप्त हुई थी. अप्रैल 1973 में पहली महिला अंतरराज्यीय राष्ट्रीय प्रतियोगिता पुणे में आयोजित की गई. इसमें बॉम्बे, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की तीन टीमों ने हिस्सा लिया था. उसी साल इसका दूसरा सीजन वाराणसी में हुआ और फिर इसमें 8 टीमों ने हिस्सा लिया. इसके बाद साल 1976 में पहली बार महिला क्रिकेट टीम का इंटरनेशनल मैच वेस्टइंडीज के खिलाफ खेला गया.

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