Ukraine Russia War: हजारों भारतीयों ने क्यों ठुकरा दी सरकार की मदद? युद्ध में तलाश रहे ये अवसर
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Ukraine Russia War: हजारों भारतीयों ने क्यों ठुकरा दी सरकार की मदद? युद्ध में तलाश रहे ये अवसर

Ukraine Russia War: असल में भारत से जो लोग यूक्रेन, रशिया और बेलारूस जैसे देशों में पढ़ने और काम करने के लिए जाते हैं, उन्हें सिर्फ इन्हीं देशों का वीजा मिलता है. और यूरोप के देशों में जाने के लिए इन्हें अलग से वीजा लेना पड़ता है. और ये प्रक्रिया काफी मुश्किल और जटिल होती है.

Ukraine Russia War: हजारों भारतीयों ने क्यों ठुकरा दी सरकार की मदद? युद्ध में तलाश रहे ये अवसर

Ukraine Russia War: भारत सरकार यूक्रेन से केवल भारतीय छात्रों को वापस लेकर नहीं आई है. बल्कि यूक्रेन में रह कर काम करने वाले भारतीय नागरिकों को भी Evacuate किया गया है. और एक असली खबर ये है कि, ऐसे भारतीयों की संख्या हजारों में है, जो यूक्रेन से निकल कर पोलैंड और Slovakia जैसे पड़ोसी देशों में तो शरण लेने के लिए पहुंचे, लेकिन इसके बाद इन लोगों ने भारत आने से ही मना कर दिया. जब भारतीय दूतावास ने इन लोगों से सम्पर्क किया और इन्हें बताया कि सरकार ने उनके लिए विशेष विमान की व्यवस्था की है, उन्हें ले जाने के लिए विमान में सीटें खाली हैं. तब ये लोग, जहां रुके हुए थे, वहां से गायब हो गए और भारतीय दूतावास को भी इसकी कोई जानकारी नहीं दी. और ऐसा इन लोगों ने इसलिए किया क्योंकि इन भारतीयों को लग रहा है कि ये युद्ध उनके लिए यूरोप का टिकट हो सकता है. और वो शरणार्थी का दर्जा हासिल करके यूरोप के देशों में बस सकते हैं.

  1. भारतीय ने ठुकराई सरकार की मदद
  2. यूरोपीय देशों से नहीं लौटना चाहते भारत
  3. इसके पीछे छिपा है पूरा बिजने मॉडल

यूरोप में जिंदगी बसाने का सपना

असल में भारत से जो लोग यूक्रेन, रशिया और बेलारूस जैसे देशों में पढ़ने और काम करने के लिए जाते हैं, उन्हें सिर्फ इन्हीं देशों का वीजा मिलता है. और यूरोप के देशों में जाने के लिए इन्हें अलग से वीजा लेना पड़ता है. और ये प्रक्रिया काफी मुश्किल और जटिल होती है. यानी ये लोग यूक्रेन में जाकर तो बस सकते हैं लेकिन यूरोप जाना उनके लिए एक सपने जैसा ही होता है. लेकिन इस संकट के बाद जो भारतीय, शरणार्थी बन कर पोलैंड और दूसरे पड़ोसी देशों में पहुंच गए हैं, उन्हें ऐसा लग रहा है कि अब वो किसी तरह यूरोप में तो दाखिल हो ही चुके हैं और अगर उन्हें शरणार्थी का दर्जा मिल गया तो वो अपना बाकी का जीवन यूरोप में आसानी से बिता पाएंगे.

इसके पीछे एक पूरा बिजनेस मॉडल

यूरोपीय यूनियन में कुल 27 देश हैं और अगर कोई व्यक्ति इनमें से किसी भी देश का नागरिक बन जाए तो वो इन 27 देशों में कहीं भी जाकर रह सकता है और काम कर सकता है. दूसरी बात, इसके पीछे एक पूरा बिजनेस मॉडल भी है. आपने देखा होगा कि यूक्रेन से आए बहुत सारे छात्र ऐसे हैं, जो अंग्रेजी भाषा भी सही नहीं बोल सकते. इसके अलावा इनमें से कई छात्र ऐसे विषयों की वहां पढ़ाई कर रहे थे, जिनका ज्यादा महत्व नहीं है.

पूरी दुनिया में केवल पांच देश ही ऐसे

असल में ये छात्र भारत में कुछ Agencies की मदद से यूक्रेन जैसे देशों में Study Visa पर चले जाते हैं और वहां रह कर काम करने लगते हैं. और इनकी कोशिश यही होती है कि वो किसी तरह यूरोप में दाखिल हो जाएं. यानी यूक्रेन में रह कर डॉक्टर बनना इनका मकसद नहीं है. और हमने इस पर काफी रिसर्च की है. पूरी दुनिया में केवल पांच देश ही ऐसे हैं, जहां मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों को भारत में आकर कोई टेस्ट नहीं देना होता. ये देश हैं, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और New Zealand. इन देशों से जो छात्र मेडिकल की पढ़ाई करके आते हैं, वो भारत में बिना किसी परीक्षा के Practice शुरू कर सकते हैं. जबकि यूक्रेन जैसे देशों से मेडिकल की पढ़ाई करके आने वाले छात्रों को Foreign Medical Graduates Examination यानी FMGE परीक्षा देनी होती है. और इस परीक्षा में यूक्रेन से मेडिकल की पढ़ाई करके आने वाले ज्यादा छात्र फेल हो जाते हैं. और ऐसे छात्रों की संख्या हजारों में होती है.

यूक्रेन से लौटे 100 में से 16 मेडिकल छात्र ही बन पाते हैं डॉक्टर

उदाहरण के लिए, अगर यूक्रेन से 100 छात्र मेडिकल की पढ़ाई पूरी करके भारत आए हैं तो उनमें से केवल 16 छात्र ही FMGE परीक्षा में पास हो पाते हैं. और बाकी छात्रों के लिए यूक्रेन से मिली डिग्री कागज के टुकड़े के समान होती है. इसलिए ये छात्र यूक्रेन में रह कर ही वहां छोटे मोटे काम करते हैं, वहीं रुक कर यूरोप जाने का सपना देखते हैं और जब ऐसा कोई संकट होता है तो वो यूरोप में शरणार्थी का दर्जा हासिल करने की कोशिश करते हैं. हालांकि यूरोपीय यूनियन की नीति भारतीयों को लेकर अलग है. EU का कहना है कि भारत पर कोई हमला नहीं हुआ है, इसलिए भारतीयों को अपने देश वापस जाना चाहिए. लेकिन ये लोग अब भी वहां रुक कर यूरोप का नागरिक बनने का सपना देख रहे हैं.

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