उंगली से क्यों नहीं मिटती चुनावी स्याही ? जानिए चुनाव में कब से हो रहा है इस्तेमाल
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उंगली से क्यों नहीं मिटती चुनावी स्याही ? जानिए चुनाव में कब से हो रहा है इस्तेमाल

जब भी कोई व्यक्ति वोट डालने जाता है, तो मतदान अधिकारी उसकी उंगली पर नीले रंग की स्याही लगा देता है. ताकि कोई दोबारा वोट न डाल सके. लेकिन कभी आपने सोचा है कि आखिर ये स्याही नीले रंग की ही क्यों होती है और आसानी से क्यों नहीं मिटती? आइए बताते हैं.

प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली: यूपी समेत देश के पांच राज्यों में विधान सभा चुनावों का दौर शुरू हो गया है. यूपी में पहले चरण की वोटिंग भी हो चुकी है. जब भी कोई व्यक्ति वोट डालने जाता है, तो मतदान अधिकारी उसकी उंगली पर नीले रंग की स्याही लगा देता है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि कोई दोबारा वोट न डाल सके. लेकिन कभी आपने सोचा है कि आखिर ये स्याही नीले रंग की ही क्यों होती है. इसके अलावा इस स्याही में ऐसा क्या खास होता है जिससे ये उंगली पर लगने के बाद जल्दी नहीं छूटती है. आइए बताते हैं.

  1. वोट डालने के बाद लगाई जाती है नीले रंग की स्याही
  2. इसे भारत की मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड कंपनी बनाती है
  3. इस स्याही की आपूर्ति 28 देशों में की जाती है

भारत में ही बनती है ये खास स्याही

हमारी सहयोगी वेबसाइट डीएनए के अनुसार, चुनाव में इस्तेमाल की जाने वाली ये स्याही भारत में सिर्फ एक ही कंपनी बनाती है. दक्षिण भारत में स्थित मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड (MVPL) नाम की कंपनी इस स्‍याही को बनाती है. जानकारी के मुताबिक इस कंपनी की स्थापना 1937 में उस समय मैसूर प्रांत के महाराज नलवाडी कृष्णराजा वडयार ने की थी. सबसे जरूरी बात ये है कि कंपनी इस चुनावी स्याही को थोक में नहीं बेचती है. एमवीपीएल के जरिए सरकार या चुनाव से जुड़ी एजेंसियों को ही इस स्याही की सप्‍लाई की जाती है. कंपनी की मुख्य पहचान इस स्याही को लेकर ही है. इसे लोग इलेक्शन इंक या इंडेलिबल इंक के नाम से जानते हैं.

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पहले चुनाव में नहीं था स्याही लगाने का नियम

देश में 1951-52 में जब पहली बार चुनाव हुआ, तब मतदाताओं की अंगुली में स्याही लगाने का कोई नियम नहीं था. ऐसे में चुनाव आयोग को कई जगह से दो बार वोट डालने की शिकायतें मिलीं. इन शिकायतों के बाद चुनाव आयोग ने इसे रोकने के लिए कई विकल्पों पर विचार किया. अंत में आयोग ने एक अमिट स्याही का उपयोग करने का फैसला किया. इस नीले रंग की स्याही को भारतीय चुनाव में शामिल करने का श्रेय देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को जाता है. साल 1962 के चुनाव से इस स्याही का इस्तेमाल किया जा रहा है. ये कंपनी भारत के अलावा कई दूसरे देशों में भी चुनावी स्याही की सप्लाई करती है. एक बार लगने के बाद 40 सेकेंड में ही ये स्याही सूख जाती है. 

आसानी से नहीं मिटती ये स्याही

दरअसल इस इंक को बनाने में सिल्वर नाइट्रेट केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है. इसी वजह से यह एक बार त्वचा के किसी भी हिस्से में लगने के बाद कम-से-कम 72 घंटे तक त्वचा से मिटाया नहीं जा सकता. सिल्वर नाइट्रेट केमिकल को इसलिए इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि यह पानी के संपर्क में आने के बाद काले रंग का हो जाता है और मिटता नहीं है. जब आप वोट डालने जाते हैं तो इसे उंगली पर लगाया जाता है. सिल्वर नाइट्रेट हमारे शरीर में मौजूद नमक के साथ मिलकर सिल्वर क्लोराइड बनाता है. सिल्वर क्लोराइड पानी घुलता नहीं है और त्वचा से जुड़ा रहता है. इसे साबुन से धोया नहीं जा सकता. एक बार लगने के बाद यह सभी निकलता है जब त्वचा के सेल पुराने हो जाते हैं और वह उतरने लगते हैं.

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कई देशों में अलग-अलग तरीके से लगाई जाती है

इस स्याही की आपूर्ति 28 देशों में की जाती है. इनमें अफगानिस्तान, तुर्की, दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, नेपाल, घाना, पापुआ न्यू गिनी, बुर्कीना फासो, बुरंडी, कनाडा, टोगो, रिएरा लियोन, मलेशिया और कंबोडिया शामिल है. भारत में अंगुली पर एक लकड़ी से यह स्याही लगाई जाती है, वहीं कंबोडिया और मालदीव में अंगुली को ही स्याही में डुबोया जाता है. जबकि अपगानिस्तान में पेन से, तुर्की में नोजल से, बुर्कीना फार्सो और बुरूंडी में ब्रश से यह स्याही लगाई जाती है.

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