पीएम मोदी के प्रोटोकॉल में ढिलाई क्यों? इस ग्राउंड रिपोर्ट में समझें पंजाब सरकार की लापरवाही
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पीएम मोदी के प्रोटोकॉल में ढिलाई क्यों? इस ग्राउंड रिपोर्ट में समझें पंजाब सरकार की लापरवाही

अगर प्रधानमंत्री सड़क मार्ग के रास्ते कहीं जा रहे हों तो उस पूरे रूट की जांच करना और वहां सुरक्षा मुहैया कराना राज्य पुलिस का काम है. अगर रास्ते में ऊंची इमारतें पड़ती हैं तो उनकी पहचान करके वहां सुरक्षाकर्मियों को तैनात करना Security Protocol का हिस्सा है.

पीएम मोदी के प्रोटोकॉल में ढिलाई क्यों? इस ग्राउंड रिपोर्ट में समझें पंजाब सरकार की लापरवाही

नई दिल्लीः प्रोटोकॉल के तहत.. जब प्रधानमंत्री किसी भी राज्य के दौरे पर जाते हैं तो इस दौरान उस राज्य के CM, राज्य सचिव और DGP उनका स्वागत करते हैं. अगर मुख्यमंत्री नहीं आते तो राज्य सचिव और DGP तो जरूर मौजूद रहते हैं. लेकिन बुधवार को इन तीनों में से कोई भी प्रधानमंत्री का स्वागत करने के लिए एयरपोर्ट पर नहीं था. जो बात सबसे ज्यादा चौंकाने वाली है, वो ये कि जब प्रधानमंत्री का काफिला सड़क मार्ग से फिरोजपुर के लिए निकला, उस समय उनके काफिले में पंजाब के राज्य सचिव और DGP की गाड़ी तो मौजूद थी, लेकिन इन गाड़ियों में वो खुद मौजूद नहीं थे. इसलिए इससे ये भी सवाल उठ रहे हैं कि पंजाब के राज्य सचिव और DGP ने नियमों का पालन क्यों नहीं किया और वो प्रधानमंत्री के काफिले के साथ क्यों नहीं थे?

  1. पीएम मोदी की सुरक्षा में चूक
  2. पंजाब सरकार की बड़ी लापरवाही 
  3. कांग्रेस को नहीं दिखाई दी चूक

पीएम के मूवमेंट की जानकारी रखी जाती है गुप्त

दूसरी बात.. जब प्रधानमंत्री किसी राज्य के दौरे पर जाते हैं तो उनके Movement की जानकारी बहुत गुप्त रखी जाती है. प्रधानमंत्री सड़क मार्ग से कहां जाने वाले हैं, इस जानकारी को प्रधानमंत्री की सुरक्षा में तैनात Special Protection Group और उस राज्य की पुलिस के बीच ही रखा जाता है. और जब पुलिस ये कहती है कि उस सड़क मार्ग में कोई रुकावट नहीं है तभी प्रधानमंत्री का काफिला उस रास्ते से जाता है.

पीएम के रूट की जानकारी कैसे हुई लीक?

इसलिए यहां सवाल ये है कि, जब ये जानकारी सिर्फ़ SPG और राज्य पुलिस को थी कि प्रधानमंत्री का काफिला किस रूट से निकलेगा, वो जानकारी प्रदर्शनकारी किसानों को कैसे मिली? हमें ये भी पता चला है कि प्रधानमंत्री का काफिला फिरोज़पुर पहुंचने से पहले यहां प्रदर्शनकारी जमा नहीं हुए थे. ये लोग कुछ मिनट पहले ही आए और रास्ते को बन्द कर दिया. सोचिए, इन लोगों को कैसे पता चला कि प्रधानमंत्री इसी रास्ते से गुज़रने वाले हैं? इन लोगों को किसने जानकारी दी. दो दिन पहले यानी 3 जनवरी को पंजाब के 9 किसान संगठनों ने ऐलान किया था कि वो प्रधानमंत्री मोदी की फिरोज़पुर रैली का विरोध करेंगे. यानी पुलिस को पहले से पता था कि इस तरह से रास्ता रोकने की कोशिश हो सकती है. लेकिन इसके बावजूद पुलिस प्रदर्शनकारियों को क्यों रोक नहीं पाई, ये भी सवाल खड़ा होता है.

पीएम दौरे पर सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य पुलिस की

देश के राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश और लोक सभा के अध्यक्ष जब किसी राज्य के दौरे पर जाते हैं तो उस राज्य की पुलिस को किन निर्देशों का पालन करना चाहिए, इस पर केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने विस्तृत Guidelines जारी की हुई हैं. इसमें लिखा है कि अगर प्रधानमंत्री सड़क मार्ग के रास्ते कहीं जा रहे हों तो उस पूरे रूट की जांच करना और वहां सुरक्षा मुहैया कराना राज्य पुलिस का काम है. अगर रास्ते में ऊंची इमारतें पड़ती हैं तो उनकी पहचान करके वहां सुरक्षाकर्मियों को तैनात करना Security Protocol का हिस्सा है. उस रास्ते में अगर कोई संदिग्ध वाहन दिखता है तो उसकी पहचान करना पुलिस की Duty है. एक वैकल्पिक रूट तैयार करके रखना भी पुलिस का काम है. इसके अलावा मुश्किल परिस्थितियों से निपटने के लिए सड़क मार्ग के दौरान अस्पताल और Safe House का इंतज़ाम करना भी पुलिस का काम है.

पाकिस्तान से लगी हुई है सीमा

प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा में ये चूक एक ऐसे राज्य में हुई है, जिसकी सीमा पाकिस्तान से लगती है. यही नहीं पंजाब के जिस फिरोज़पुर में प्रधानमंत्री की रैली थी, वो ज़िला पाकिस्तान की सीमा से लगा हुआ है. यानी जब प्रधानमंत्री की सुरक्षा में ये चूक हुई, उस समय वो पाकिस्तान की सीमा से सिर्फ़ 10 किलोमीटर दूर थे. और इस Flyover पर कुछ भी हो सकता था.

1947 के बंटवारे में हुसैनीवाला गांव चला गया था पाकिस्तान में

एक और बात.. प्रधानमंत्री फिरोज़पुर के जिस हुसैनीवाला गांव में जाने वाले थे, ये गांव 1947 के बंटवारे के दौरान पाकिस्तान के पास चला गया था. लेकिन वर्ष 1961 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने पाकिस्तान के साथ एक समझौता किया, जिसके तहत भारत के अधिकार क्षेत्र में आने वाले 12 गांव पाकिस्तान को दे दिए गए, जबकि पाकिस्तान ने हुसैनीवाला गांव भारत को सौंप दिया. इससे आप इस इलाक़े के महत्व को समझ सकते हैं और ये समझ सकते हैं कि प्रधानमंत्री किन ख़तरों के बीच रहे होंगे.

पीएम की गाड़ी तक पहुंचना चाहते थे प्रदर्शनकारी

हमारी टीम फिरोज़पुर के इस Flyover पर पहुंची, जहां प्रधानमंत्री मोदी एक चक्रव्यूह में फंसे हुए थे. हमने इस दौरान कई लोगों से भी बात की, जिनका ये कहना है कि प्रदर्शनकारी किसी भी तरह प्रधानमंत्री की गाड़ी तक पहुंचना चाहते थे. आपको फिरोज़पुर के इस Flyover से हमारी ये ग्राउंड रिपोर्ट ज़रूर देखनी चाहिए. हालांकि पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह ने इस पूरे मामले सफाई दी है. उनका कहना है कि उनके किसी जानने वाले को कोरोना हो गया था, जिसकी वजह से वो प्रधानमंत्री मोदी को रिसीव करने के लिए एयरपोर्ट नहीं गए. उनका ये भी कहना है कि उन्होंने इसकी जानकारी एक दिन पहले ही रात को  प्रधानमंत्री कार्यालय को दे दी थी. चन्नी ने प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक की बात से भी इनकार किया है.

पंजाब सरकार की मंशा पर खतरनाक सवाल

हालांकि बीजेपी अध्यक्ष जे.पी नड्डा ने अपने एक ट्वीट में आरोप लगाया है कि जिस समय प्रधानमंत्री का काफिला फिरोज़पुर में फंसा हुआ था, उस समय SPG द्वारा मुख्यमंत्री से सम्पर्क करने की कोशिश की गई. इसके अलावा मुख्यमंत्री कार्यालय में भी चरणजीत सिंह चन्नी से बात करने के लिए फोन किया गया, लेकिन मुख्यमंत्री से कोई बात नहीं हो पाई. ये भी आरोप है कि चरणजीत सिंह चन्नी ने प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए तत्काल कोई कदम नहीं उठाया. जिससे पंजाब सरकार और उसकी मंशा पर ख़तरनाक सवाल खड़े होते हैं. आज इस पर केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इस घटना के पीछे साज़िश का शक जताया है.

'मैं यहां तक जिन्दा लौट पाया'

जब प्रधानमंत्री मोदी बठिंडा एयरपोर्ट से वापस दिल्ली लौट रहे थे, तब उन्होंने एयरपोर्ट पर मौजूद अधिकारियों से कहा कि 'अपने मुख्यमंत्री को धन्यवाद देना कि मैं यहां तक ज़िन्दा लौट पाया' प्रधानमंत्री मोदी के ये शब्द बताते हैं कि इस घटना के दौरान उन्होंने कैसा महसूस किया होगा. इस पूरे मामले मे दो बड़े सवाल खड़े होते हैं. पहला.. प्रधानमंत्री की सुरक्षा में हुई ये चूक पंजाब सरकार और पुलिस की नाकामी का नतीजा है?.. या किसी साज़िश के तहत ऐसा होने दिया गया? क्योंकि, सोचिए 200 से ज्यादा पुलिसवाले आन्दोलन कर रहे 50 लोगों को नहीं हटा पाते.  

देश में एक खतरनाक परम्परा की शुरुआत

यहां ये बात समझनी ज़रूरी है कि नरेन्द्र मोदी बीजेपी के प्रधानमंत्री नहीं है. वो इस देश के प्रधानमंत्री हैं. वो इस देश के संवैधानिक पद पर बैठे हुए नेता हैं. विचारधारा चाहे कोई भी हो लेकिन इस संवैधानिक पद का सबको सम्मान करना चाहिए. लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ. और हमें लगता है कि ये देश में एक ख़तरनाक परम्परा की शुरुआत है. जब प्रधानमंत्री की सुरक्षा में ये चूक हुई तो Indian Youth Congress के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीनिवास बी.वी. ने इस पर ट्वीट करके लिखा.. Modi ji,How's the Josh? .. सोचिए, जब देश के प्रधानमंत्री की जान को इतना बड़ा ख़तरा था, उस समय कांग्रेस के नेता उनसे उनका जोश पूछ रहे थे. यानी एक तरह से इस घटना को सेलिब्रेट कर रहे थे.

कांग्रेस को नहीं दिख रही चूक

डॉक्टर अचर्ना शर्मा नाम के ट्विटर हैंडल से लिखा गया कि दलित सीएम चन्नी जी की देन है कि पीएम वापस आए. वर्ना जनता तो उन्हें चौराहे पर खोज रही थी. इस ट्विटर हैंडल पर लिखा है कि डॉक्टर अचर्ना शर्मा कांग्रेस की प्रवक्ता हैं. राजस्थान कांग्रेस के एक और प्रवक्ता डॉक्टर विपिन यादव ने प्रधानमंत्री मोदी के कार्यक्रम का दस्तावेज सोशल मीडिया पर लीक कर दिया. एक ट्वीट में वो ये भी लिखते हैं कि.. किसानों पर अत्याचार किया, इसलिए किसानों ने बहिष्कार किया. ये भी बड़ा विरोधाभास है कि जो ताकतें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के लिए दोषी थे, कांग्रेस उन्हीं का समर्थन कर रही है. इससे आप समझ सकते हैं कि हमारे देश में राजनीति का स्तर कहां तक गिर चुका है.

पीएम का काफिला रोकने वाले कौन?

फिरोज़पुर में प्रधानमंत्री मोदी का काफिला रोकने वाले लोग अलग-अलग किसान संगठनों के बताए जा रहे हैं. ये वही किसान संगठन हैं, जो दिसम्बर महीने तक दिल्ली की सीमाओं पर कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे. और इस आन्दोलन में मौजूद खालिस्तान समर्थित कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी को जान से मारने की भी धमकी दी थी. नवम्बर 2020 की एक वीडियो क्लिप में इस आन्दोलन में मौजूद एक व्यक्ति ये कहते दिखा था कि इंदिरा गांधी को ठोक दिया तो मोदी क्या चीज है?

ये ताकतें फिर से सक्रिय

जिन ताक़तों ने इंदिरा गांधी की हत्या की थी, वही ताक़तें आज प्रधानमंत्री मोदी के भी ख़िलाफ़ हैं. इंदिरा गांधी ने खालिस्तान आन्दोलन को खत्म करने के लिए वर्ष 1984 में ऑपरेशन Blue Star को अंजाम दिया था, जिसमें अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर में छिपे जरनैल सिंह भिंडरांवाले और उसके साथियों को मार दिया गया था. इसके बाद 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी के ही एक सिख सुरक्षाकर्मी ने उनकी हत्या कर दी थी. इससे पहले इन्हीं खालिस्तानी ताक़तों ने वर्ष 1983 में पंजाब पुलिस के DIG ए.एस. अटवाल को स्वर्ण मन्दिर की सीढ़ियों पर मार गिराया था. और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की भी वर्ष 1995 में कार धमाके में हत्या कर दी थी. और किसान आन्दोलन के बाद ये ताकतें फिर से सक्रिय हो गई हैं.

पीएम मोदी की हत्या की साजिश का हो चुका है खुलासा

आपको याद होगा वर्ष 2018 में जब महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में हिंसा हुई थी, उस समय सुरक्षा एजेंसियों को ऐसे कई सबूत मिले थे, जिनसे ये पता चला था कि Urban Naxals प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साज़िश रच रहे हैं. तब इन सबूतों में एक चिट्ठी भी थी. इसमें लिखा था कि हिन्दुत्वादी ताक़तों से देश को बचाने का एक ही तरीक़ा है प्रधानमंत्री मोदी की हत्या. इसी में आगे लिखा है कि मोदी को उसी तरह से ख़त्म किया जा सकता है, जैसे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की गई. यानी एक रोड इवेंट के दौरान. और ये संयोग ही है कि प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा में चूक रोड इवेंट के दौरान ही हुई.

..तो उनकी जान कैसे बचती?

राजीव गांधी की हत्या 21 मई 1991 को हुई थी, जब वो तमिल नाडु की एक चुनावी सभा में शामिल होने के लिए गए थे. इस दौरान श्रीलंका के आतंकवादी संगठन LTTE की एक Suicide Bombers ने राजीव गांधी का स्वागत करते हुए खुद को धमाके में उड़ा लिया था. और उनकी हत्या कर दी थी. और बुधवार को भी लगभग वैसी ही स्थिति थी. सोचिए, अगर प्रधानमंत्री के काफिले के आसपास जमा इस भीड़ में कोई भी Suicide Bombers होता तो उनकी जान कैसे बचती?

पंजाब सरकार और सुरक्षा तंत्र पूरी तरह फेल

वर्ष 2015 में जब प्रधानमंत्री मोदी अफगानिस्तान दौरे से भारत लौट रहे थे, तब उन्होंने अचानक पाकिस्तान जाने का फैसला किया था. उस समय उनका विमान इस्लामाबाद लैंड हुआ था और वहां से वो पाकिस्तान के एक हेलिकॉप्टर में लाहौर गए थे, जहां पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ का घर था. उस समय नवाज़ शरीफ़ का जन्मदिन भी था और उनकी पोती की भी शादी थी. सोचिए.. प्रधानमंत्री अचानक पाकिस्तान जाते हैं तो उनकी सुरक्षा में कोई कमी नहीं रहती. लेकिन जब वो अपने ही देश के एक राज्य में कार्यक्रम के लिए जाते हैं, तो वहां की सरकार और सुरक्षा तंत्र पूरी तरह फेल हो जाता है.

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