Who is Anand Mohan: अगर आरजेडी को लग रहा है कि आनंद मोहन के बाहर आने का क्रेडिट उसको मिल जाएगा, तो यह तो नामुमकिन ही लगता है. आनंद मोहन की लालू यादव से पुरानी दुश्मनी भी है. अगर आनंद मोहन सोचते हैं कि IAS जी कृष्णैया की हत्या मामले में वह दोषी नहीं थे तो यह तो जरूर उनके मन में होगा कि उनको फंसवाया किसने.
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Anand Mohan in Bihar: आखिरकार आनंद मोहन जेल से बाहर आ ही गए. वह कैसे रिहा हुए या उस पर कितनी आलोचना हुई, अब इस पर बात करने का वक्त नहीं रहा. बिहार में नीतीश कुमार 7 दलों की समर्थन वाली महागठबंधन सरकार चला रहे हैं. इस सरकार में दो ही लोग फैसला लेने वाले हैं- पहला सीएम नीतीश कुमार और दूसरा तेजस्वी यादव, जो डिप्टी सीएम हैं.
जब तेजस्वी के पिता लालू यादव की सरकार थी, तब आनंद मोहन सलाखों के पीछे गए थे. लेकिन सवाल यह है कि क्या आनंद मोहन से अब भी बिहार में सियासी लाभ मिल पाएगा? हालांकि नीतीश के लिए तो यह नुकसानदायक ही लगता है क्योंकि 2005 में जब उन्होंने गद्दी संभाली थी तो कई बड़े बदमाशों को जेल की हवा खिलाई थी. ऐसा तब इसलिए भी जरूरी था क्योंकि आरजेडी के जंगलराज को कोसकर ही उनको सत्ता मिली थी. उनके बारे में कहा जाता है कि वह न तो किसी अपराधी का पक्ष लेते हैं और न ही बख्शते हैं. क्रिमिनल्स के लिए तो दिल में दया है ही नहीं.
आरजेडी के लिए क्या हैं संभावनाएं
वहीं अगर आरजेडी को लग रहा है कि आनंद मोहन के बाहर आने का क्रेडिट उसको मिल जाएगा, तो यह तो नामुमकिन ही लगता है. आनंद मोहन की लालू यादव से पुरानी दुश्मनी भी है. अगर आनंद मोहन सोचते हैं कि IAS जी कृष्णैया की हत्या मामले में वह दोषी नहीं थे तो यह तो जरूर उनके मन में होगा कि उनको फंसवाया किसने.
एक जमाने में जब बिहार में सवर्णों को लगने लगा था कि लालू की सत्ता को हिलाने का माद्दा सिर्फ आनंद मोहन में है तो उन्होंने उनको जेल भेजने की स्क्रिप्ट तैयार कर दी. लेकिन कमाल की बात ये है कि जिस आरजेडी की सरकार में आनंद मोहन जेल गए और सजा पाई, उसी पार्टी के टिकट से उनके बेटे चेतन और पत्नी लवली ने चुनाव लड़ा था. हालांकि लवली तो चुनाव हार गई थीं लेकिन चेतन विधायक बन गए थे.
जेल से छूटने का कितना पड़ेगा असर?
अब चर्चा होने लगी है कि आनंद मोहन की रिहाई से लोकसभा और विधानसभा चुनाव पर कितना असर पड़ेगा? 90 का दौर याद करके यह लग सकता है कि उनमें अब भी माद्दा बचा होगा लेकिन हकीकत बहुत अलग है. चुनावों में उनकी पत्नी को मात मिली थी. अगर वह अपनी पत्नी को चुनाव में नहीं जितवा सके तो असर को समझा जा सकता है. हालांकि बिहार में सारण और औरंगाबाद समेत 10 जिले ऐसे हैं, जहां राजपूत वोटों पर प्रभाव पड़ सकता है. लेकिन अब बिहार की नई पीढ़ी को आनंद मोहन के बारे में ज्यादा मालूम ही नहीं है. ऐसे में अगर किसी को लगता है कि वह चुनावों पर कोई असर डालेंगे तो यह दिव्य स्वप्न ही लगता है.