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DNA Analysis: 500 वर्षों के इंतजार के बाद अयोध्या में भगवान राम के मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. बाबरी मस्जिद (Babri Masjid) और राम जन्म भूमि (Ram Janm Bhoomi) का विवाद इतिहास की बात बन चुका है. लेकिन हमारे देश में अब भी कई ऐसे मंदिर और मस्जिद हैं, जिनका विवाद अभी समाप्त नहीं हुआ है. ऐसे में आइए एक ऐसे ही ऐतिहासिक विवाद की बात करते हैं, जिस पर पिछले कुछ घंटे से हमारे देश में काफी चर्चा हो रही है. ये विवाद काशी विश्वनाथ मंदिर (Shri Kashi Vishwanath) और ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) का है, जिस पर आज तीसरे दिन के सर्वे के दौरान ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में आदि विश्वेश्वर का शिवलिंग मिलने का दावा किया गया.
ये एक बहुत बड़ी और ऐतिहासिक घटना है, जिसने 353 वर्षों पुराने इस विवाद में न्याय मिलने की उम्मीद बढ़ा दी है. हालांकि इस विश्लेषण से पहले हमारे कुछ सवाल भी हैं. मुगल शासक औरंगजेब ने वर्ष 1669 में काशी विश्व नाथ मन्दिर को ध्वस्त करके ज्ञान वापी मस्जिद का निर्माण कराया था. यानी जिस जगह अभी मस्जिद है, वहां पहले भगवान शिव को समर्पित असली ज्योतिर्लिंग मौजूद था. लेकिन बाद में औरंगजेब ने मन्दिर तुड़वा दिया और मस्जिद बनवा दी.
जब मन्दिर तोड़कर यहां मुगल शासक औरंगजेब ने मस्जिद बनवाई थी, तब किसी को आपत्ति नहीं थी. सैकड़ों वर्षों तक इस पर किसी ने कुछ नहीं कहा, लेकिन अब जब इस मामले में न्याय की बात उठ रही है तो हमारे देश के कट्टरपंथी इससे परेशान होने लगे हैं. आज जब ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वेक्षण का काम शुरू हुआ तो इस दौरान मस्जिद परिसर में प्राचीन शिवलिंग मिलने की बात कही गई. हिन्दू पक्षकारों के मुताबिक, सर्वे का ये काम आज सुबह आठ बजे शुरू हुआ, जब कोर्ट के आदेश के तहत हिन्दू पक्ष, मुस्लिम पक्ष और अदालत द्वारा नियुक्त किए गए कोर्ट कमिश्नर सर्वे के लिए मस्जिद परिसर में पहुंचे और इस दौरान सर्वे की प्रक्रिया उस तालाब से शुरू हुई, जिसे वजू खाना कहते हैं.
वजू का अर्थ उस जगह से है, जहां नमाज पढ़ने से पहले लोग अपने हाथ पैर धोते हैं. हिन्दू पक्ष की मांग थी कि इस वजू खाने यानी तालाब को खाली कराया जाए और इस जगह की वीडियोग्राफी हो. हालांकि मुस्लिम पक्ष शुरुआत में इसके खिलाफ था. लेकिन बाद में इस वजू खाने का सर्वे शुरू हुआ और तालाब को खाली करके उसका पानी एक टैंक में डाल दिया गया.
दावा है कि इसी दौरान आदि विश्वेश्वर का प्राचीन शिवलिंग प्रकट हुआ, जिससे ये आधार मजबूत होने की बात कही जा रही है कि जिस जगह पर अभी मस्जिद है, वहां पहले भगवान शिव का प्राचीन मन्दिर और शिलालेख हुआ करते थे. हिन्दू पक्षकारों का ये भी दावा है कि वजू खाने के नीचे एक दीवार है, जिसे तोड़ कर प्राचीन मंदिर से जुड़े अन्य साक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं. इसके मुताबिक इस दीवार के नीचे एक तहखाना हो सकता है, जिसमें शिलालेख और हिन्दू देवी देवताओं की अन्य मूर्तियां हो सकती हैं और बड़ी बात ये है कि हिन्दू पक्षकारों ने इसके सर्वे के लिए अदालत में अलग से जल्द एक याचिका लगाने की बात भी कही है. इसके अलावा वाराणसी कोर्ट में आज भी एक याचिका दायर की गई, जिसमें सर्वे के दौरान मिले साक्ष्यों को सुरक्षित रखने की मांग की गई. इस पर अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से लिखा है कि जिस जगह शिवलिंग मिला है, उस जगह को स्थानीय प्रशासन द्वारा सील किया जाएगा और इस क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को जाने की अनुमति नहीं होगी.
शिवलिंग मिलने के दावे के बाद अब बड़ा सवाल ये है कि क्या ये मामला वर्ष 1991 में बने Places of Worship Act यानी उपासना स्थल कानून के दायरे में आएगा या नहीं. इस कानून के तहत देश में धार्मिक स्थलों पर 15 अगस्त 1947 के दिन की यथास्थिति लागू है और सिर्फ अयोध्या मामले को इसका अपवाद माना गया है. इसलिए आज बड़ा सवाल ये है कि अब शिवलिंग मिलने के दावे के बाद इस मामले में इस कानून के तहत नई स्थिति क्या होगी?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमने संविधान विश्लेषकों से बात की. इसके अलावा हमने कानून के जानकारों से भी मदद मिली और इस दौरान हमें दो बातें पता चलीं. पहली बात ये कि, अगर शिवलिंग और दूसरे साक्ष्यों से ये बात सही साबित हो जाती है कि ज्ञानवापी मस्जिद मंदिर की जगह पर स्थित है तो इस मामले में 1991 का ये कानून बड़ी बाधा नहीं बनेगा. क्योंकि इससे ये स्पष्ट हो जाएगा कि 15 अगस्त 1947 को भी मस्जिद वाली जगह पर शिवलिंग मौजूद था, जिससे मन्दिर का दावा मजबूत हो जाता है. दूसरी बात, सार्वजनिक जगह पर नमाज पढ़ने से कोई भी जगह धार्मिक स्थल नहीं बन जाती. इसलिए ये कहना कि इस परिसर में तो 1947 से पहले से नमाज पढ़ी जा रही है और ये एक मस्जिद ही है, ये दावा कानूनी रूप से अदालत में ज्यादा देर तक नहीं टिकेगा.
वैसे ये एक बहुत बड़ा विरोधाभास है कि मुगल शासक औरंगजेब द्वारा काशी विश्वनाथ मन्दिर को तोड़े जाने के ऐतिहासिक दस्तावेज मौजूद हैं. लेकिन इसके बावजूद पिछले 353 वर्षों से हमारे देश में यही बहस हो रही है कि इस स्थान पर मन्दिर था या नहीं? जबकि सच ये है कि भारत में मुस्लिम आक्रमणकारियों के आने के साथ ही काशी विश्वनाथ मंदिर पर हमले शुरू हो गए थे. सबसे पहले 12वीं शताब्दी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने हमला किया था. इस हमले में मंदिर का शिखर टूट गया था. लेकिन इसके बाद भी पूजा पाठ होती रही. वर्ष 1585 में राजा टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था. वो अकबर के नौ रत्नों में से एक माने जाते हैं.लेकिन 1669 में औरंगजेब के आदेश पर इस मंदिर को पूरी तरह तोड़ दिया गया और वहां पर एक मस्जिद बना दी गई. वर्ष 1780 में मालवा की रानी अहिल्याबाई ने ज्ञानवापी परिसर के बगल में ही एक नया मंदिर बनवा दिया, जिसे आज हम काशी विश्वनाथ मंदिर के तौर पर जानते हैं.
लेकिन ये इस देश का दुर्भाग्य है कि अकबरुद्दीन ओवैसी जैसे नेता महाराष्ट्र के औरंगाबाद में औरंगजेब की मजार पर भी जाते हैं और वहां चादर भी चढ़ाते हैं. इससे ये पता चलता है कि आज भी हमारे देश में एक खास विचारधारा के लोग और नेता हिंदुओं का दमन करने वाले औरंगजेब को अपना नायक मानते हैं और उनका महिमामंडन करते हैं.
जबकि औरगंजेब ने अपने शासनकाल में काशी विश्वनाथ समेत कई मन्दिरों को नष्ट कराया. हिन्दुओं पर जजिया कर लगा कर उनका दमन किया और हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कराने की भी कोशिशें की और सबसे बड़ी बात, औरंगजेब वही मुगल शासक है, जिसके आदेश पर सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर की हत्या की गई थी. औरंगजेब इस बात से क्रोध में था कि उसके सैनिकों द्वारा कई यातनाएं देने के बाद भी गुरु तेग बहादुर इस्लाम धर्म को अपनाने के लिए तैयार नहीं थे और वो कश्मीरी पंडितों पर किए जा रहे अत्याचारों का भी पुरजोर विरोध कर रहे थे. यानी उस जमाने में गुरु तेग बहादुर ने इस्लामिक कट्टरपंथ के आगे अपना सिर झुकाने से बेहतर, अपना सिर कलम कराना बेहतर समझा.
इसके अलावा औरंगजेब इतना क्रूर था कि उसने अपने पिता और मुगल शासक शाहजहां को भी नजरबन्द करके जेल में डाल दिया था और अपने बड़े भाई दारा शिकोह का भी सिर कलम करवा दिया था. लेकिन इसके बावजूद हमारे देश में आज भी औरगंजेब की भक्ति करने वाले लोगों की कमी नहीं है और ये वही लोग हैं, जो ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने के दावे से परेशान हो गए हैं.
आजादी से पहले वर्ष 1936 में भी ये मामला कोर्ट में गया था. तब हिंदू पक्ष नहीं, बल्कि मुस्लिम पक्ष ने वाराणसी जिला अदालत में याचिका दायर की थी और ये याचिका दीन मोहम्मद नाम के एक व्यक्ति ने डाली थी और उन्होंने कोर्ट से मांग की थी कि पूरे ज्ञानवापी परिसर को मस्जिद की जमीन घोषित किया जाए. वर्ष 1937 में इस पर फैसला आया, जिसमें दीन मोहम्मद के दावे को खारिज कर दिया गया. लेकिन विवादित स्थल पर नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी गई. इस मुकदमे में हिंदू पक्ष को पार्टी नहीं बनाया गया था. लेकिन इस मुकदमे में कई ऐसे सबूत रखे गए थे, जो बहुत महत्वपूर्ण हैं. इसी केस की सुनवाई के दौरान अंग्रेज अफसरों ने 1585 में बने प्राचीन विश्वनाथ मंदिर का नक्शा भी पेश किया. इसमें बीच का जो हिस्सा है, वहीं पर प्राचीन मंदिर का गर्भगृह बताया जाता है. यह नक्शा जब कोर्ट में पेश किया गया तो अंग्रेज अफसरों ने बताया कि इसके ही कुछ हिस्से में मस्जिद बना दी गई है.
लेकिन इसके बावजूद मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए मंदिर के अस्तित्व को हमेशा से चुनौती दी गई और इस ऐतिसाहिक दावे को झूठा साबित करने की कोशिशें की गईं और आज जब ज्ञानवापी में शिवलिंग मिलने का दावा किया गया है, तब हमारे देश के कट्टरपंथी, बुद्धिजीवी और Liberals इससे बहुत परेशान हो गए. AIMIM पार्टी के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने तो ये कहा है कि काशी में कयामत तक ज्ञानवापी मस्जिद रहेगी और वो मन्दिर के दावे को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. यानी इस मामले में एक खास धर्म के लोगों को भड़काने की कोशिशें भी शुरू हो गई हैं.
अब इस मामले में कल सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी और सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दायर हुई है, उसमें इस सर्वे को रुकवाने की मांग की गई है. इसके अलावा एक याचिका आज इलाहाबाद हाई कोर्ट में भी दायर हुई है, जिस पर 20 मई को सुनवाई होगी. ये याचिका उस मामले से संबंधित है, जिसमें वाराणसी की सिविल कोर्ट ने पिछले साल Archaeological Survey of India को पूरे ज्ञानवापी परिसर का सर्वे करने का आदेश दिया था.
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