पिछले 45 सालों से हवा में हाथ उठाए हुए है ये साधु, बस इतनी सी है गुजारिश
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पिछले 45 सालों से हवा में हाथ उठाए हुए है ये साधु, बस इतनी सी है गुजारिश

भोलेनाथ के भक्त अमर भारती पिछले 45 सालों से अपना एक हाथ हवा में उठाए हुए हैं. उन्होंने ऐसा शिव के प्रति आस्था और दुनिया को शांति का संदेश देने के लिए किया है. किसी जमाने में बैंककर्मी रहे भारती अब पूरी तरह से शिव की भक्ति में रम गए हैं और चाहते हैं कि लोगों के बीच की नफरत खत्म हो जाए.

फोटो: डेली स्टार

नई दिल्ली: दो मिनट भी यदि हाथ खड़े रखने की सजा मिले तो पूरा हाथ दर्द करने लगता है, लेकिन एक शख्स एक-दो नहीं बल्कि पूरे 45 सालों से अपना एक हाथ हवा में उठाए हुए है (Man Kept Hand Raised for Past 45 Years). इस दौरान एक पल के लिए उसने अपना हाथ नीचे नहीं किया है. खास बात ये है कि शख्स ऐसा किसी मन्नत के पूरा होने के इंतजार में नहीं कर रहा, उसकी इच्छा केवल आस्था और शांति को बढ़ावा देने की है.  

  1. एक पल के लिए भी नीचे नहीं किया हाथ
  2. दुनिया को शांति का संदेश दे रहे अमर भारती
  3. हाथ नीचे करने की कोई योजना नहीं

भगवान शिव के भक्त हैं भारती

‘डेली स्टार’ की रिपोर्ट के अनुसार, अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से दुनिया को चौंकाने वाले इस शख्स का नाम अमर भारती है. संन्यासी अमर भारती (Yogi Amar Bharati) आस्था और शांति के लिए पिछले 45 सालों से अपने एक हाथ को हवा में उठाए हुए हैं और उनकी इसे नीचे करने की कोई योजना भी नहीं है. भारती भगवान शिव के भक्त हैं और वह चाहते हैं कि भारत सहित दुनियाभर के लोग शांति और भाई-चारे के साथ रहें.

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शुरू के दो साल हुई परेशानी

उन्होंने कहा, 'मैं कुछ ज्यादा नहीं मांगता. हम आपस में क्यों लड़ते हैं? हमारे बीच इतनी नफरत और शत्रुता क्यों है? मैं केवल यही चाहता हूं कि समस्त देशवासी शांति के साथ रहें. पूरी दुनिया में शांति की राह पर चले’. अमर भारती ने जब अपना एक हाथ हवा में उठाने का फैसला किया, तब शुरूआती दो साल उनके लिए काफी मुश्किल भरे गुजरे. उनके हाथ में असहनीय दर्द होता था, लेकिन धीरे-धीरे दर्द भी खत्म हो गया. अब यह उठा हुआ हाथ उनकी जिंदगी का हिस्सा बन गया है और उन्हें इसमें कुछ भी असामान्य नहीं लगता.

कभी Bank में करते थे काम

वैसे, अमर भारती शुरू से संन्यासी नहीं बनना चाहते थे. वह एक बैंक कर्मचारी थे. उनके पास पत्नी थी, बच्चे थे, घर-परिवार था, लेकिन एक दिन अचानक उनका मन आध्यत्म की ओर खिंचा चला आया और उन्होंने सब कुछ त्याग कर धर्म की राह पकड़ ली. अपनी जिंदगी के बचे हुए दिन उन्होंने भोलेनाथ भगवान शिव को समर्पित कर दिए और लोगों को शांति का पाठ पढ़ाने लगे. 

 

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