बंकिम चंद्र चटर्जी को आधुनिक भारत के महान निर्माताओं में से एक माना जाता है .
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आज हम सबसे पहले जापान के 'हिन्दुस्तानी संस्करण' का एक विश्लेषण करेंगे. भारत के बुद्धिजीवी वर्ग को 'जय श्री राम', 'भारत माता की जय' और 'वंदे मातरम' कहने में आज कल बड़ी परेशानी होती है. ऐसे लोगों के लिए आज देश की राजधानी दिल्ली से साढ़े 5 हज़ार किलोमीटर दूर, जापान के Kobe शहर से चुभने वाली आवाज़ आई है. कल से जापान के Osaka में G-20 Summit की शुरुआत होगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए जापान गए हैं. वो जब भी किसी विदेशी दौरे पर जाते हैं, तो वहां मौजूद भारतीय समुदाय के लोगों के साथ संवाद ज़रूर करते हैं. आज भी उन्होंने ऐसा ही किया. और जापान के Kobe शहर में भारतीय समुदाय के लोगों को संबोधित किया. क़रीब आधे घंटे के भाषण में वैसे तो उन्होंने बहुत सी बातें कहीं. भविष्य का भारत कैसा होगा, इसकी भी चर्चा की. लेकिन सबसे दिलचस्प तस्वीर उस वक्त दिखाई दी, जब उन्होंने अपना भाषण ख़त्म किया. क्योंकि, मोदी-मोदी के शोर के बीच...सबसे ऊंची आवाज़ आई...'जय श्री राम', 'भारत माता की जय' और 'वंदे मातरम'.
अब इसी ख़बर का विरोधाभास देखिए. जापान में जय श्री राम के नारे लग रहे हैं. भारत माता की जय और वंदे मातरम् के नारे लग रहे हैं. लेकिन हमारे देश में क्या हो रहा है ? हमारे देश का बुद्धिजीवी वर्ग Twitter पर, Say No To Jai Shri Ram को Trend करा रहा है. इनमें कई सांसदों सहित वो सभी लोग शामिल हैं, जो ऐसे नारों पर आपत्ति जताते हैं.
कुछ दिन पहले ही लोकसभा में शपथ ग्रहण समारोह के दौरान एक सांसद ने वंदे मातरम् कहने से इंकार कर दिया था. जबकि, उन सांसद महोदय को तो शपथ के दौरान वंदे मातरम् कहना भी नहीं था. लेकिन अपने क्षेत्र के वोट बैंक के तुष्टिकरण के लिए उन्होंने देश के राष्ट्रगीत का अपमान करने से परहेज़ नहीं किया. लेकिन, जापान में ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा. जापान में जिन लोगों ने ये नारे लगाए, वो अच्छे परिवार से हैं. पढ़े-लिखे हैं. और उन्हें अच्छी तरह पता है कि जय श्री राम या वंदे मातरम् कहना शर्म की नहीं, गर्व की बात है.
आज से 64 साल पहले राजकपूर की एक फिल्म आई थी. जिसका नाम था...श्री 420....इस फिल्म में एक गीत था. जिसके बोल थे, मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिशतानी, सर पे लाल टोपी रुसी, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी. लेकिन जिस प्रकार से आज जापान में जय श्री राम, वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगे हैं. उसे देखकर यही कहा जा सकता है, कि 21वीं सदी के जापान में भारत का दिल धड़कता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे से भी मुलाकात की. दोनों के बीच Bullet Train Project और वाराणसी में एक Convention Center बनाए जाने को लेकर चर्चा हुई. हालांकि, इस वक्त सबकी नज़रें जापान के Osaka शहर पर टिकी हुई हैं. जहां कल से औपचारिक तौर पर G-20 सम्मेलन की शुरुआत होगी.
G-20 का मतलब होता है Group of Twenty...यानी एक ऐसा समूह जिसमें 19 देश हैं और 20वां सदस्य है European Union...
इस Group में शामिल देश साल में एक बार.. एक दूसरे से मिलते हैं. इन बैठकों में राष्ट्र अध्यक्षों के अलावा इन देशों के केंद्रीय बैंकों के गवर्नर भी शामिल होते हैं.
इन देशों के बीच मुख्य रूप से आर्थिक विषयों और आर्थिक सहयोग पर चर्चा होती है.
G-20 को समझने के लिए G-7 के बारे में भी जानकारी होना जरूरी है.
1975 में दुनिया में एक आर्थिक संकट आया था और तब दुनिया के 6 बड़े देशों ने एक समूह में एक जुट होने का फैसला किया. ये देश थे फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका. एक साल बाद Canada भी इसमें शामिल हो गया और इस तरह से G-7 की शुरुआत हुई. 1998 में Russia इससे जुड़ गया और ये समूह G-7 से G-8 बन गया.
इसके बाद जून 1999 में जर्मनी में G-8 देशों की बैठक हुई. और उस वक्त एशिया के आर्थिक संकट पर चर्चा की गई. जिसके बाद दुनिया की 20 सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाओं को एक मंच पर लाने का फैसला किया गया. और इसी के बाद G-20 संगठन बना.
G-20 Summit के दौरान नरेंद्र मोदी, अमेरिका के राष्ट्रपति Donald Trump, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और Russia के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सहित कई शीर्ष नेताओं से भी मिलेंगे. लेकिन सबसे दिलचस्प मुलाकात ट्रम्प के साथ हो सकती है.
क्योंकि, ट्रम्प ने इस मुलाकात से पहले ही भारत को धमकी भरे लहज़े में एक प्रकार की चेतावनी दी है. उन्होंने Tweet किया है कि वो प्रधानमंत्री मोदी से मिलने के लिए उत्सुक हैं. लेकिन साथ ही साथ ये भी कह दिया कि भारत, अमेरिका पर काफी टैक्स लगा रहा है. और हाल ही में इसे और बढ़ा दिया गया है. ये अस्वीकार्य है. और भारत को नए शुल्क वापस लेने चाहिए. भारत ने इसी महीने अमेरिका के 28 उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया था. जिससे ट्रम्प खुश नहीं हैं. इसीलिए उन्होंने ये Tweet किया.
इसके अलावा भी उन्होंने कुछ अजीबोगरीब Tweets किए हैं. उदाहरण के तौर पर एक Tweet में उन्होंने Boring शब्द का ज़िक्र किया है. उनका इशारा शायद, अमेरिका के दो News Channels पर हो रहे Debate के संदर्भ में था. जिसे वो अक्सर Fake News कहकर संबोधित करते हैं.
ट्रंप ने जापान और अमेरिका के Defence Alliance पर भी कटाक्ष किया है. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा है, कि अगर जापान पर हमला होता है, तो अमेरिका तीसरा विश्व युद्ध लड़ेगा. और किसी भी क़ीमत पर जापान की रक्षा करेगा. लेकिन अगर अमेरिका पर हमला हुआ, तो जापान कुछ नहीं कर पाएगा. वो बैठकर इस हमले का प्रसारण Sony TV पर देखेगा.
वैसे गंभीर माहौल के बीच आज हमारे पास जापान के OSAKA से एक दिलचस्प तस्वीर भी आई है. जिसमें 60 से 70 साल की महिलाओं ने, G-20 और Osaka को दुनिया भर में Promote करने के लिए एक Performance दी है. दिलचस्प बात ये है, कि इन सभी महिलाओं को अंग्रेज़ी नहीं आती. फिर भी, उन्होंने पूरी मेहनत की. और दुनिया को अपनी संस्कृति की एक मनमोहक छवि दिखाई है. इन महिलाओं का Video, Social Media पर Viral है. जिसे 90 हज़ार से ज़्यादा लोग देख चुके हैं.
और अब हम राष्ट्रवाद के ऋषि बंकिम चंद्र चटर्जी के जीवन का Special DNA टेस्ट करेंगे. असली राष्ट्रवाद का जो वृक्ष आज पूरे भारत में फैल चुका है. उसका बीज बोने का काम बंकिम चंद्र चटर्जी ने किया था. बंकिम चंद्र चटर्जी को आधुनिक भारत के महान निर्माताओं में से एक माना जाता है .
लेकिन आज हम आपको ये बताएंगे कि बंकिम चंद्र चटर्जी जैसे महान देशभक्त का निर्माण किन परिस्थितियों में हुआ ? अगर आप आज भारत के सामान्य नागरिक से ये पूछें कि आपको बंकिम चंद्र चटर्जी के बारे में क्या पता है ? तो उसका जवाब होगा कि बंकिम चंद्र चटर्जी ने भारत के राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की रचना की थी . लेकिन बंकिम चंद्र चटर्जी के बारे में सिर्फ इतना ही जानना काफी नहीं है . बंकिम चंद्र चटर्जी की जीवन यात्रा बहुत दिलचस्प है . आज के हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की राजनीति को गहराई से समझने के लिए बंकिम चंद्र चटर्जी के जीवन को समझना बहुत ज़रूरी है .
बंकिम चंद्र चटर्जी का जन्म पश्चिम बंगाल के North 24 Pargana ज़िले में वर्ष 1838 में हुआ था . उनके जन्म की सही तारीख क्या है ? इस पर विद्वानों में मतभेद है . कुछ लोग ये मानते हैं कि बंकिम चंद्र का जन्म 25 जून को हुआ . कुछ का कहना है कि वो 26 जून को पैदा हुए और कुछ लोग ये भी दावा करते हैं कि उनकी जन्मतिथि 27 जून है . उनका जन्म कब हुआ ? इस पर मतभेद हो सकता है . लेकिन उनकी महानता पर किसी को मतभेद नहीं है.
बंकिम चंद्र स्कूल के दिनों से ही पढ़ने-लिखने में बहुत तेज़ थे . सिर्फ 14 वर्ष की उम्र में पहली बार उन्होंने संबाद प्रभाकर नामक एक बंगाली पत्रिका में लिखना शुरू किया .
बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि बंकिम चंद्र चटर्जी ने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से कानून की पढ़ाई भी की थी. आज कलकत्ता को कोलकाता कहा जाता है .
भारतीय सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा प्रकाशित किताब Bankim Chandra Chatterjee, Builders Of Modern India के मुताबिक बंकिम चंद्र 1858 में ग्रेजुएशन करके डिप्टी कलेक्टर बन गए थे. उस वक्त बंकिम चंद्र की उम्र सिर्फ 20 वर्ष थी. यानी सिर्फ 20 वर्ष की उम्र में ही बंकिम चंद्र डिप्टी कलेक्टर बन गए .
बंकिम चंद्र चटर्जी ने अंग्रेज़ों की नौकरी तो की. लेकिन, उनके विचार कभी अंग्रेज़ों के गुलाम नहीं रहे . अपनी देशभक्ति की वजह से नौकरी में उनको बहुत ज़्यादा परेशानियां झेलनी पड़ी. कई बार अंग्रेज़ अधिकारियों से उनका झगड़ा हुआ.
बार-बार उनके ट्रांसफर किए गए. आखिरी बार बंकिम चंद्र का ट्रांसफर 1888 में हुआ था . इन्हीं वजहों से बंकिम चंद्र ने रिटायरमेंट से पहले ही 1891 में नौकरी छोड़ दी . तब उनकी उम्र 53 वर्ष थी . बंकिम चंद्र बांग्ला भाषा के साथ-साथ अंग्रेज़ी और संस्कृत भाषा के भी प्रकांड विद्वान थे .
1864 में सिर्फ 26 वर्ष की ही उम्र में उन्होंने अंग्रेज़ी में एक प्रसिद्ध उपन्यास लिखा.. जिसका नाम था... Rajmohan's Wife. 1872 में वो बंग दर्शन नाम की एक पत्रिका के संपादक बने . तब उनकी उम्र सिर्फ 34 वर्ष थी .
अपनी युवा अवस्था से ही नौकरी के साथ-साथ वो साहित्य के क्षेत्र में भी बड़े-बड़े कीर्तिमान बनाते गए . प्रसिद्ध उपन्यास आनंद मठ लिखने से पहले ही वो एक साहित्यकार के रूप में स्थापित हो चुके थे .
1865 में उनका उपन्यास दुर्गेश-नंदिनी प्रकाशित हुआ . इस उपन्यास ने बंकिम चंद्र की लोकप्रियता को बहुत बढ़ा दिया . ये उपन्यास एक राजपूत सेनापति और एक बंगाली नायिका की प्रेमकथा पर आधारित था .
बंकिम चंद्र ने 'कपाल कुण्डला', 'मृणालिनी', 'विषवृक्ष', 'रजनी', 'चन्द्रशेखर', 'देवी चौधरानी', और सीताराम जैसे प्रसिद्ध उपन्यास लिखे. लेकिन, उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास आनंद मठ वर्ष 1882 में प्रकाशित हुआ.
दुनिया के बहुत सारे विद्वान आज भारत के राजनीतिक और सामाजिक माहौल को हिंदू राष्ट्रवाद का युग कहते हैं. ये एक ऐसा राष्ट्रवाद है जिसमें हिंदू धर्म का गौरव भी शामिल है . बहुत सारे लोगों को आज भी इस बात की जानकारी नहीं है कि भारत में राष्ट्रवाद के सबसे बड़े प्रेरणास्रोत बंकिम चंद्र चटर्जी थे .
विनायक दामोदर सावरकर ने इसी भाव को एक नाम दिया था... हिंदुत्व . लेकिन सावरकर से भी पहले लोगों में राष्ट्रवाद के इस भाव को जन्म देने वाले व्यक्ति बंकिम चंद्र चटर्जी थे. बंकिम चंद्र चटर्जी के साहित्य में मौजूद राष्ट्र प्रेम को साहित्य के विद्वानों ने Romantic Idealism कहा है . यानी आदर्शवाद के प्रति हद से ज्यादा समर्पण और प्रेम .
बंकिम चंद्र के उपन्यासों में नायक बहुत देशभक्त और चरित्रवान थे . वो बहुत गर्व से ये बात कहते थे कि मैं अपनी मातृभूमि के लिए अपनी जान भी दे सकता हूं . यही नायक, गुलाम भारत में लोगों की प्रेरणा बन गए. बंकिम चंद्र ने लोगों के अंदर एक दीवानगी और जुनून पैदा कर दिया . यही वजह है कि बहुत से क्रांतिकारी वंदे मातरम कहते हुए फांसी के तख्ते पर झूल गए. बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास आनंद मठ में हिंदू राष्ट्रवाद के इस भाव की पराकाष्ठा देखने को मिलती है.
आनंद मठ की कहानी संन्यासियों के विद्रोह की ऐतिहासिक घटना पर आधारित है. 1757 में प्लासी का युद्ध जीतने के बाद अंग्रेजों ने बंगाल पर कब्जा कर लिया. उन्होंने सिराजुद्दौला की जगह मीर जाफर को बंगाल का नवाब बना दिया. अब बंगाल का नवाब अंग्रेजों की कठपुतली बन गया था. उस वक्त बंगाल की हिंदू जनता को नवाब के अत्याचारों के साथ-साथ अंग्रेज़ों के अत्याचारों का भी शिकार होना पड़ रहा था. इसके खिलाफ वर्ष 1770 में एक विद्रोह हुआ जिसे संन्यासी विद्रोह कहा गया .
हमारे देश में वर्ष 1857 की लड़ाई को भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है. लेकिन इस लड़ाई से भी 87 वर्ष पहले वर्ष 1770 में बंगाल में संन्यासी विद्रोह हुआ था. संन्यासी विद्रोह, अंग्रेज़ों के खिलाफ पहला युद्ध था. बंगाल और बिहार के कई हिस्सों में करीब 40 वर्षों तक संन्यासियों ने अंग्रेज़ों से लड़ाई की थी.
यही विद्रोह आनंद मठ की पृष्ठभूमि है जिसमें वंदे मातरम् गीत भी शामिल था .
आनंद मठ में बंकिम चंद्र ने संन्यासी विद्रोहियों को भारत माता की संतान कहा है.
विद्रोही वंदे मातरम् गीत गाकर ही अंग्रेजों और बंगाल के नवाब के खिलाफ संघर्ष की शपथ लेते हैं.
वर्ष 1894 में बंकिम चंद्र चटर्जी की मृत्यु हो गई . लेकिन आनंद मठ में मौजूद उनका गीत वंदे मातरम् अमर हो गया .
20वीं शताब्दी के भारत में क्रांतिकारियों के लिए वंदे मातरम की शपथ लेना अनिवार्य था. ये वैसी ही शपथ थी... जैसी आनंद मठ उपन्यास में विद्रोही संन्यासियों ने बंगाल के नवाब और अंग्रेजों के खिलाफ ली थी .
आनंद मठ और वंदे मातरम् इस्लाम के खिलाफ नहीं था . बंगाल के नवाब का विरोध, इस्लाम का विरोध नहीं था . विद्रोही, बंगाल के नवाब के ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे थे . वंदे मातरम् गीत बंगाल के उस नवाब के खिलाफ था जिसने अकाल में भी टैक्स वसूल करने के लिए बंगाल की जनता पर भयंकर अत्याचार किए.
लेकिन कुछ कट्टरपंथी मुसलमानों की पार्टी मुस्लिम लीग ने वोट बैंक की राजनीति करने के लिए वंदे मातरम का इस्तेमाल किया. मुस्लिम लीग ने ये कहकर गीत का विरोध किया था कि इस में मूर्ति पूजा का भाव है .
वंदे मातरम, अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में विद्रोह का पहला गीत है. और इस गीत का अपमान बंद होना चाहिए.
वंदे मातरम आजादी के बाद भी भारत की हर पीढ़ी की जुबान पर रहा है. क्योंकि इस गीत के साथ बदलते भारत में कई संगीतमय प्रयोग हुए हैं. आज आपको वंदे मातरम की इस संगीतमय यात्रा का भी आनंद उठाना चाहिए.