शुक्रवार को लोकसभा के शून्य काल में इस मुद्दे पर चर्चा हुई और तमाम महिला सांसदों ने एक स्वर में आज़म ख़ान के बयान का विरोध किया .
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हमारा अगला विश्लेषण देश की तमाम महिलाओं को समर्पित है. अगर आप भी एक महिला हैं तो हमारा आपसे निवेदन है कि आज आप ये विश्लेषण अपने पूरे परिवार के साथ देखें . ये DNA टेस्ट आपके परिवार के हर सदस्य के मन में, महिलाओं के प्रति सम्मान वाले संस्कार भर देगा .
हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि जिस घर में स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं . हमारे देश में स्त्रियों को देवी कहा जाता है, हम पराई महिलाओं को भी मां और बहन का दर्जा देते हैं . ये सब बातें सुनकर ऐसा लगता है कि महिलाओं का सम्मान करना इस देश के DNA में है . लेकिन असल में ऐसा नहीं है .
हमारे देश में महिलाओं के अपमान की परंपरा सदियों से चली आ रही है. हमारे इस दावे के पीछे ठोस आधार हैं . इसलिए हमारा आज का ये विश्लेषण देश के पुरुषों की आंखों में पश्चाताप के आंसू भर देगा .
जिस संसद को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है वहीं महिलाओं का अपमान हो रहा है. ये ऐसे ही जैसे आप किसी मंदिर में जाकर वहां लगी देवी की मूर्ति का अनादर कर दें . कल समाजवादी पार्टी के सांसद आज़म ख़ान ने भी कुछ ऐसा ही किया था . आज़म ख़ान ने बीजेपी की सांसद रमा देवी का अपमान किया और शायरी के बहाने उनपर अभद्र टिप्पणी की . रमा देवी उस वक्त स्पीकर की कुर्सी पर बैठी थीं . यानी आज़म ख़ान ने ना सिर्फ एक महिला सांसद का अपमान किया बल्कि संसद की गरिमा की भी धज्जियां उड़ा दी .
आज लोकसभा के शून्य काल में इस मुद्दे पर चर्चा हुई और तमाम महिला सांसदों ने एक स्वर में आज़म ख़ान के बयान का विरोध किया . कई पुरुष सांसदों ने भी इन महिला सांसदों का साथ दिया और लोकसभा अध्यक्ष से आज़म ख़ान के खिलाफ कार्रवाई की अपील की .
जब किसी एक महिला के सम्मान को ठेस पहुंचती है तो ये सभी महिलओं का अपमान होता है. इसलिए आज संसद में अलग अलग पार्टियों की महिला सांसदों ने जबरदस्त एकजुटता दिखाई . केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, NCP की सांसद सुप्रिया सुले, निर्दलीय सांसद, नवनीत राणा, तृणमूल कांग्रेस की सांसद मिमी चक्रवर्ती, और बीजेपी की सांसद संघमित्रा मौर्य ने ज़ोरदार तरीके से अपनी बात रखी .
ये सभी सांसद अलग अलग विचारधाराओं वाले राजनीतिक दलों से जुड़ी हैं . लेकिन आज संसद में इनकी एकता ने बता दिया कि क्यों महिलाएं परिवार को एक सूत्र में पिरोने के लिए जानी जाती हैं . सबसे पहले आप, संसद के शून्य काल यानी Zero Hour में दिखाई दी 100 प्रतिशत महिला शक्ति के दर्शन कीजिए फिर हम अपने इस विश्लेषण को आगे बढ़ाएंगे .
17 वीं लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 78 है . इनमें बीजेपी की 41, TMC की 9, कांग्रेस की 6, बीजेडी की 5, YSR कांग्रेस पार्टी की 4, और डीएमके की दो महिला सांसद हैं . इसके अलावा 2 निर्दलीय महिला सांसद भी 17वीं लोकसभा का हिस्सा हैं . जबकि 9 राजनीतिक दल ऐसे हैं जिनकी एक-एक महिला सांसद, लोकतंत्र के इस मंदिर का हिस्सा है .
मौजूदा लोकसभा में महिला सांसदों की हिस्सेदारी 14 प्रतिशत है . संसद में महिला सांसदों की संख्या में इज़ाफा हुआ है लेकिन ये अब भी कई देशों के मुकाबले बहुत कम है . हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली में महिला सांसदों की संख्या 70 है . लेकिन प्रतिशत के लिहाज़ से देखें तो पाकिस्तान की संसद में 20 प्रतिशत महिलाएं है. इसी तरह बांग्लादेश में 21 प्रतिशत और अमेरिका में 20 प्रतिशत महिला सांसद हैं .
लेकिन अब आप सोचिए कि हमारे देश के लोगों के मन में महिलाओं के प्रति सम्मान की मात्रा कितनी है ? इस सवाल का जवाब देना हमारे लिए मुश्किल है . लेकिन आज ये विश्लेषण देख रहे पुरुष खुद से ये पूछे कि उनके मन में महिलाओं के लिए सम्मान का प्रतिशत क्या है ? महिलाओं का अपमान करने वाले नेता अपने दिल में झांके और विचार करें कि उनकी परवरिश में कहां कमी रह गई ? ये नेता भी अपनी मां और बहनों के बीच बडे हुए होंगे, फिर इनके मन में महिलाओं के लिए इतना अपमान कहां से आया ?
हमने इस समस्या की जड़ तक जाने के लिए आज गहन रिसर्च की, कई किताबें पढ़ी, श्लोकों का अध्ययन किया, जिससे हमें कुछ आंकड़े और कुछ गहरी बातों के बारे में पता चला . जिसके बारे में हम आपको आगे बताएंगे . लेकिन उससे पहले हम आपके साथ एक विचार बांटना चाहते हैं . हमें लगता है कि हमारे देश में अगर अतीत में महिलाओं का सम्मान किया गया होता तो आज भारत कई तरह की परेशानियों से मुक्त होता .देश की आबादी में महिला और पुरुषों की हिस्सेदारी हमेशा बराबर रही है . लेकिन हमने कभी भी इस आधी आबादी को उसका सम्मान नहीं दिया . हमने महिलाओं को पढ़ने लिखने के मौके नहीं दिए, स्वतंत्रता को उनसे दूर रखा . उन्हें कमज़ोर बनाया, उन्हें हमेशा पुरुषों की पहरेदारी में रखा .
जिसका नतीजा ये हुआ कि पुरुष महिलाओं को अपनी जागीर समझने लगे, उन पर जुल्म करने लगे, उनका शोषण करने लगे और यहीं से महिलाओं के अपमान की अनैतिक परंपरा शुरू हो गई .
आज बीजेपी की सांसद संघमित्रा मौर्य ने.. शून्य काल के दौरान एक गहरी बात कही, उन्होंने कहा कि महिलाएं चाहें राजघराने से आती हों, राजनीतिक परिवार से, गरीब परिवार से, या फिर मध्यवर्ग से, हर वर्ग की महिला को अपमान का घूंट पीना पड़ता है . हमारा इतिहास भी इसका गवाह रहा है .
पौराणिक कथाओं पर किताबें लिखने वाले लेखक.. देवदत्त पटनायक के मुताबिक भगवान राम मर्यादाओं में बंधे थे, इसलिए जब एक धोबी ने मां सीता पर सवाल उठाए तो राम ने सीता को वनवास पर भेज दिया . यानी महिलाओं की स्वतंत्रता छीनने की कवायद आदि काल से चली आ रही है .
आप ज़रा कल्पना कीजिए कि अगर भगवान राम उस वक्त सीता का समर्थन करते और धोबी को सज़ा देते, तो इतिहास कुछ और ही होता
इसी तरह महाभारत में भी द्रौपदी के अपमान का जिक्र आता है . पांडवों ने एक खेल के दौरान द्रौपदी को दांव पर लगा दिया था . जिसके बाद दुर्योधन ने द्रौपदी के चीरहरण की कोशिश की . लेकिन भगवान कृष्ण ने आखिरी वक्त पर द्रौपदी को बचा लिया . अब आप सोचिए अपने अहंकार की खातिर क्या किसी महिला के सम्मान को दांव पर लगाना ठीक है ?
अगर पांडवों ने भी श्री कृष्ण की तरह द्रौपदी का साथ दिया होता यानी उनके लिए Stand लिया होता तो आज पांडवों को भी महिला अधिकारों का रक्षक माना जाता .
इसी तरह पुराणों में देवी अहिल्या का भी उल्लेख आता है. जिन पर उनके पति गौतम ऋषि ने धोखे का आरोप लगाकर श्राप दे दिया था . जबकि इसमें अहिल्या की कोई गलती नहीं थी .
ये सब पौराणिक कथाएं हैं जिनकी विवेचना हर कोई अपने मन मुताबिक कर सकता है. लेकिन हमने आपको इन महिलाओं के बारे में वो बातें बताई हैं, जो हमारे समाज में सबसे ज्यादा प्रचलित हैं . और इन सभी घटनाओं से सिर्फ ये पता चलता है कि हमने महिलाओं को हमेशा आधा अधूरा सम्मान दिया है और उनकी स्वतंत्रता को पुरुषों के अहंकार और मर्यादा के तले कुचलने की कोशिश की है .
हमारे घर परिवार में भी जब कोई छोटा लड़का रोता है तो अक्सर हम उसे ये कहकर चुप कराने की कोशिश करते हैं, कि क्यों लड़कियों की तरह रो रहे हो . जैसे रोना किसी कमज़ोर व्यक्ति की पहचान हो . हम... हाथों में चूड़ियां पहन रखी है क्या...जैसे विश्लेषणों का इस्तेमाल भी ये दिखाने के लिए करते हैं कि महिलाएं पुरुषों से कमज़ोर होती हैं .
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि महिलाओं के साथ ये छल शुरू कहां से होता है ? हमें लगता है कि इसकी शुरुआत घर से ही हो जाती है. और खुद महिलाएं भी इसके लिए जिम्मेदार हैं. अक्सर पढ़ी लिखी और सशक्त महिलाएं भी पितृसत्ता के आगे घुटने टेक देती हैं . हमने आज़म ख़ान की पत्नी तंज़ीम फातिमा में इस बारे में बात की, तो उन्होंने साफ कहा कि आज़म ख़ान को माफी नहीं मागनी चाहिए . हमने सांसद रमा देवी से भी इस बारे में बात की
पहले आप तंज़ीम फातिमा और रमा देवी के बयान सुनिए, फिर हमने इस विश्लेषण को आगे बढ़ाएंगे
तंज़ीम फातिमा खुद राज्यसभा सांसद हैं . देश की महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं . लेकिन पति के बचाव में वो जो दलील दे रही हैं वो किसी के भी गले नहीं उतर रही है .
आज़म ख़ान कई बार महिलाओं के खिलाफ ऐसी टिप्पणियां कर चुके हैं. इस साल लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अपनी प्रतिद्वंदी जयाप्रदा के खिलाफ भी अमर्यादित टिप्पणी की थी . अगर उस वक्त ही उनके परिवार ने उन्हें टोका होता तो शायद आज ये नौबत नहीं आती . अगर आज़म ख़ान के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती तो उनकी सदस्यता जा सकती है. आज़म ख़ान के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाया जा सकता है .
आज़म ख़ान ने अगर ये बयान संसद के बाहर दिया होता तो उन पर IPC की धारा 509 के तहत मामला दर्ज हो सकता था . इस धारा के तहत अपराधी को 3 साल तक की सज़ा भी हो सकती है . इस धारा के तहत किसी महिला के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करने वाले को दंडित किया जाता है.
एक अनुमान के मुताबिक इस वक़्त 135 करोड़ की आबादी वाले भारत में करीब 70 करोड़ पुरूष हैं...जबकि 65 करोड़ महिलाएं हैं . यानी देश की तरक्की में महिलाओं की हिस्सेदारी भी लगभग बराबर है .
हालांकि, ये एक दुखद विडंबना है,कि हमारे समाज में महिलाओं को आज भी वो सम्मान नहीं मिलता, जिसकी वो सही मायनों में हकदार हैं. सच तो ये है, कि जब हमारा समाज घर में महिलाओं को बराबरी नहीं दे पाता, तो बाहर इस बराबरी की उम्मीद कैसे की जा सकती है ? इसे समझने के लिए अब मैं आपको कुछ आंकड़े दिखाऊंगा, जो ये बताते हैं, कि कैसे एक महिला अपने जीवन का बड़ा हिस्सा सिर्फ अपने घर में अपने पति, बेटे, या भाई की सेवा को समर्पित कर देती है....
Organization For Economic Cooperation And Development की रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं की ज़िन्दगी के 10 साल सिर्फ रसोई में काम करते हुए ही गुज़र जाते हैं...जबकि पुरुष करीब 22 साल सोने में, यानी आराम फरमाने में गुज़ार देते हैं...
इसके बावजूद जब घर के काम काज में महिलाओं का हाथ बंटाने की बात आती है....तो एक भारतीय पुरुष, हर रोज़ औसतन 19 मिनट तक ही घर का काम करता है....जबकि दुनिया भर के पुरुष हर रोज़ करीब 141 मिनट, घर के कामकाज में अपने घर की महिलाओं की मदद करते हैं....
भारत में एक महिला 5 घंटे घर का काम करती है यानी करीब 300 मिनट और पुरुष इसके मुकाबले सिर्फ 19 मिनट ही घर के कामकाज के लिए देते हैं, लेकिन दुनिया के कई देश ऐसे हैं, जहां पुरुष बराबरी के साथ महिलाओं का हाथ बंटाते हैं...
अमेरिका में पुरुष 82 मिनटों तक घर के काम में मदद करते हैं, जबकि फ्रांस के पुरुष 98 मिनट तक घर की साफ सफाई और खाना बनाने जैसे काम करते हैं. जर्मनी और ब्रिटेन के पुरुषों का रिकॉर्ड भी इस मामले में अच्छा है...
पुरुष अक्सर ये कह कर घर के काम काज करने से बचने की कोशिश करते हैं...कि वो ऑफिस में कई घंटे तक काम करके परिवार के लिए पैसे कमाते हैं. लेकिन इन पैसों को बचाने की जिम्मेदारी महिला अपने ऊपर ले लेती है.
भारत में कामकाजी और गैरकामकाजी महिलाएं छोटी छोटी बचत के जरिए अपने परिवार की मदद करती हैं. 2016 में नोटबंदी के दौरान भी महिलाओं द्वारा की गई इन Small Savings ने कई परिवारों की मदद की .
लेकिन कमाई के मामले में भी भारत की महिलाओं को उनका हक नहीं मिल पाता है . Monster Salary Index की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में महिलाएं की सैलरी पुरुषों के मुताबिक 19 प्रतिशत कम है . इस रिपोर्ट के मुताबिक एक पुरुष औसतन प्रति घंटे 242 रुपये कमाता है. जबकि महिलाएं इस दौरान सिर्फ 196 रुपये कमा पाती हैं.
IT जैसे Sectors में तो ये अंतर बढ़कर 26 प्रतिशत हो जाता है. इसके अलावा हेल्थ केयर जैसे सेक्टर में ये अंतर 21 प्रतिशत का है . बैंकिंग और फाइनेंस के क्षेत्र में ये अंतर सबसे कम है. इस क्षेत्र में पुरुष और महिलाओं की आय के बीच सिर्फ 2 प्रतिशत का अंतर है.
ये हमारे समाज की वैचारिक बीमारी है, कि हम बेटों को तो महत्व देते हैं..लेकिन बेटियों को पराया धन मानते हैं जबकि सच्चाई यही है, कि बेटा करे ना करे...बेटी हमेशा आपके सम्मान का ख्याल रखती है .
साल 2014 में लाल किले से भाषण देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने भी देश के माता पिताओं से अपील की थी कि वो अपनी बेटियों पर पाबंदियां लगाने की बजाय, बेटों को सही और गलत की शिक्षा दें . अगर आपके घर में भी बेटे और बेटियां हैं तो आपके प्रधानमंत्री मोदी का ये बयान एक बार फिर सुनना चाहिए .
महिलाएं सिर्फ घर के बाहर ही नहीं बल्कि दफ्तरों में भी उत्पीड़न और छेड़छाड़ का सामना करती हैं . संसद को आप देश के सांसदों का Work Place कह सकते हैं . इसलिए पुरुष सांसदों को इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि वो संसद को एक आदर्श Work Place की तरह प्रस्तुत करें .
वर्ष 2014 से 2017 के बीच Lok Foundation ने एक सर्वे किया . जिसमें 25 प्रतिशत महिलाओं ने माना कि eve-teasing उनके जीवन का हिस्सा बन चुकी है. जबकि 25 प्रतिशत महिलाओं ने छेड़छाड़ को लेकर बात करने से ही इनकार कर दिया .
कुछ दिनों बाद रक्षा बंधन आने वाला है. ये बहनों की रक्षा से जुड़ा हुआ त्यौहार है. रक्षा बंधन पर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर बड़े बड़े वादे किए जाएंगे . देश भर के पुरुष अपनी बहनों को रक्षा का वचन देंगे . लेकिन आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं के प्रति हमारे वचनों और कर्मों में बहुत बड़ा विरोधाभास है .
हमारे देश में हर रोज़ महिलाओं से छेड़छाड़ के 232 मामले दर्ज होते हैं
यानी हर घंटे छेड़छाड़ के 10 मामले सामने आते हैं .
हर रोज़ 107 महिलाओं के साथ रेप होता है. यानी घर घंटे औसतन 5 महिलाएं रेप का शिकार होती हैं
हर घंटे 7 महिलाओं का अपहरण कर लिया जाता है. इतना ही नहीं हर घंटे 1 महिला दहेज हत्या का शिकार होती हैं .
महिलाओं और लड़कियों से छेड़छाड़ करने वाले ये वही लोग हैं, जो एक तरफ अपनी बहन से राखी बंधवाते हैं और उसकी रक्षा का प्रण लेते हैं लेकिन दूसरों की बहनों को परेशान करते हैं .
महिलाओं के प्रति ये आपराधिक मानसिकता आखिर आती कहां से है ? हम तो अपने देश को भी मां का दर्जा देते हैं. फिर देश की महिलाओं के खिलाफ पुरुषों की हिंसा की वजह क्या है ?
हमारे अखबारों में, टीवी चैनलों पर, किताबों में और सिनेमा के पर्दे पर महिलाओं को किसी वस्तु की तरह पेश किया जाता है . हमारे टीवी सीरियल बताते हैं कि महिलाएं सिर्फ लड़ाई झगड़ा पसंद करती हैं. साजिशें करती हैं और घरों को बर्बाद कर देती हैं . हमारे अखबारों में छपने वाले विज्ञापन महिलाओं को किसी Product की तरह पेश करते हैं . हमारा सिनेमा भी महिलाओं को सिर्फ मनोरंजन का ज़रिया मानता है .
हाल ही में कबीर सिंह नाम की एक फिल्म रिलीज़ हुई थी, इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 200 करोड़ रुपये से भी ज्यादा कमाए .
इस फिल्म का हीरो एक नेशड़ी, गुस्सैल और महिलाओं की इज्जत ना करने वाला व्यक्ति है . जो पेशे से डॉक्टर है . जो अपनी प्रेमिका को किसी गुलाम की तरह Treat करता है . रांझणा, तेरे नाम, और कबीर सिंह जैसी फिल्मों के हीरो, फिल्म की नायिका को तब तक परेशान करते हैं, छेड़ते रहते हैं, जब तक वो समर्पण नहीं कर देती .
बॉलीवुड की फिल्मों के कई गाने भी इसी मानसिकता को प्रदर्शित करते हैं. इन गानों में हीरो हीरोइन का लगातार पीछा करता है. उसके लिए गलत शब्दों का इस्तेमाल करता है . उसके लिए तरह तरह के घटिया संबोधनों का इस्तेमाल करता है .
आज कल के ज्यादातर पंजाबी Pop Songs में तो महिलाओं को सिर्फ लालची, पैसे से प्यार करने वाली और नखरेबाज़ बताया जाता है.
आज हमने महिलाओं के प्रति बॉलीवुड की घटिया सोच पर एक छोटा सा वीडियो विश्लेषण तैयार किया है. आप इन गानों के बोल सुनिए और सोचिए कैसे महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों के लिए बॉलीवुड का एक हिस्सा भी जिम्मेदार है .