ZEE जानकारी: जानिए, क्या है नागरिकता संशोधन विधेयक का इतिहास
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ZEE जानकारी: जानिए, क्या है नागरिकता संशोधन विधेयक का इतिहास

अब आपको इस बिल के बारे में समझऩे के लिए इससे जुड़े इतिहास को समझना होगा. कहते हैं बंटवारा चाहे परिवार का हो या किसी देश का, बंटवारा कभी अच्छा नहीं होता.

.(फाइल फोटो)

अब आपको इस बिल के बारे में समझऩे के लिए इससे जुड़े इतिहास को समझना होगा. कहते हैं बंटवारा चाहे परिवार का हो या किसी देश का, बंटवारा कभी अच्छा नहीं होता. लेखक खुशवंत सिंह ने अपनी मशहूर किताब Train to Pakistan में लिखा है कि "बंटवारे से अगर कोई सबक़ मिलता है, तो बस इतना कि भविष्य में ऐसा कभी नहीं होना चाहिए" .इसलिए अब आपको एतिहासिक तथ्यों के आधार पर ये समझना चाहिए कि आखिर में भारत में सांप्रदायिकता और बंटवारे के बीज..किन लोगों ने बोए थे और कैसे अपने हितों के लिए इन लोगों ने बंटवारे की राजनीति को जन्म दिया और देश को बांटने के बदले में अंग्रेज़ों की गुलामी स्वीकार कर ली .

आधुनिक भारत में इस सांप्रदायिक सोच का जनक Sir Syed Ahmed Khan को माना जाता है. INDIA'S STRUGGLE FOR INDEPENDENCE नामक किताब में लिखा है कि 1884 तक Sir Syed Ahmed Khan भारत को हिंदु, मुस्लिम और ईसाइयों का देश मानते थे.

ऐसा उनके लिए जरूरी भी था क्योंकि उनके द्वारा स्थापित अलीगढ़ कॉलेज में हिंदू व्यापारियों का पैसा लगा था . 1885 में Indian National Congress बनने के बाद जब British सरकार ने स्वतंत्रता सेनानियों का उत्पीड़न शुरु किया तब Sir Syed Ahmed Khan ने अंग्रेजी सरकार का पक्ष लिया था.

उन्हें उम्मीद थी कि इससे उनके कॉलेज को सरकारी समर्थन मिल जाएगा और मुस्लमानों को ज्यादा से ज्यादा सरकारी नौकरियां मिल पाएंगी . यानी आज से 134 वर्ष पहले ही राजनीतिक फायदे के लिए समाज में तुष्टिकरण के बीज..बो दिए गए थे.

14 मार्च 1888 को मेरठ में दिए एक भाषण में Sir Syed Ahmed Khan ने कहा कि अगर आज अंग्रेज देश छोड़कर चले जाते हैं तो हिंदू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते . अगर मुसलमान चाहते हैं कि इस देश में वो सुरक्षित रह सकें तो इसके लिए जरूरी है कि अंग्रेजों की सरकार चलती रहे . हिंदू और मुसलमान मिलकर इस देश को चला लेंगे, ये सोच पाना भी असंभव है . Two Nation Theory की शुरुआत एक तरीके से इसी भाषण के बाद हो गई थी .

20वीं सदी की शुरुआत में भारत में स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र कलकत्ता था . 1904 और 1905 में भारत के वायसराय लॉर्ड कर्जन (Lord Curzon) ने कहा था कि ...कलकत्ता को राष्ट्रवाद के केंद्र से हटाने के लिए बंगाल का विभाजन जरूरी है . एक भाषण में उन्होंने कहा था कि... ढाका मुसलमान Majority राज्य की राजधानी बन सकता है . ढाका में उस वक्त एक करोड़ 80 लाख मुसलमान और 1 करोड़ 20 लाख हिंदू रहा करते थे .

6 दिसंबर 1904 को ब्रिटेन की सरकार में भारत के सचिव Herbert Hope Risley ने कहा था कि अगर बंगाल एकजुट रहा तो भारत मजबूत रहेगा और अगर बंगाल बंट गया तो भारत भी टूट जाएगा . इसके बाद 19 जुलाई 1905 को बंगाल के विभाजन की घोषणा कर दी गई. और 1906 में ही मुस्लिम लीग का जन्म भी हो गया था. यानी अंग्रेज़ों ने बांटो और राज करो की जिस नीति को अपनाया...Two Nation Theory के समर्थकों ने उसी नीति के सहारे..भारत को बंटवारे की दिशा में मोड़ दिया और वो भी धार्मिक आधार पर.

1907 में अंग्रेजी सरकार ने Morley Minto Reform लागू कर दिया . जिसके बाद किसी भी चुनाव में मुसलमान सिर्फ मुसलमान को ही वोट दे सकता था .

1929 में मोहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों के अधिकारों को लेकर 14 सूत्रीय मांगें रखी थीं जिसे 1932 में सरकार ने मान लिया था .

1930 में आए साइमन कमीशन की रिपोर्ट में बताया गया था कि 1922 से 1927 तक पूरे देश में 112 सांप्रदायिक दंगे हुए .

1928 में गुलाम हसन शाह काज़मी नाम के पत्रकार ने पाकिस्तान नाम से एक अखबार शुरू करने की अर्जी दी थी . 1933 में चौधरी रहमत अली ने Now Or Never नाम से एक बुकलेट निकाली थी . इस बुकलेट में पहली बार पाकिस्तान नाम के एक मुस्लिम देश का जिक्र हुआ था . 1940 में मोहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग ने हिंदुस्तान से पाकिस्तान को अलग करने की बात कही थी .

INTRODUCTION TO THE CONSTITUTION OF INDIA नामक किताब में लिखा है कि 1942 में Sir Stafford Cripps एक प्रस्ताव लेकर भारत आए जिसमें भारत को संविधान बनाने की स्वतंत्रता देने की बात तो थी..लेकिन उसमें ये भी कहा गया था कि ये संविधान किसी पर थोपा नहीं जा सकता है . मुस्लिम लीग ने एक स्वतंत्र मुस्लिम राष्ट्र के तौर पर पाकिस्तान की मांग की.

और एक अलग संविधान सभा की मांग भी रखी . 26 जुलाई 1947 को अंग्रेजी हूकूमत ने घोषणा कर दी कि पाकिस्तान के लिए एक अलग संविधान सभा का गठन किया जाएगा . और इस तरीके से भारत का बंटवारा तय हो गया .

तो जो लोग आज धार्मिक असहनशीलता की बात कर रहे हैं, धार्मिक तुष्टिकरकण की बात कर रहे हैं, भारत के बंटवारे की बात कर रहे हैं उन्हें ये समझना चाहिए कि इस धार्मिक बंटवारे की शुरुआत किसने की थी और तब इस मांग का विरोध क्यों नहीं हुआ .

पाकिस्तान में आज़ादी के बाद हिंदुओं की आबादी 68 लाख घट गई है. आज़ादी के वक्त पाकिस्तान की कुल आबादी में 15 प्रतिशत हिंदू थे . लेकिन अब सिर्फ 1.5 प्रतिशत ही हिंदू बचे हैं.

वर्ष 2015 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार... पाकिस्तान में हर साल 1 हज़ार हिंदू लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन करा दिया जाता है . इसी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 5 हजार हिंदू... हर साल पाकिस्तान छोड़ देते हैं .... हिंदुओं के लिए बने 428 मंदिरों में से ..अब सिर्फ 20 मंदिरों में ही पूजा होती है . यानी 95 प्रतिशत मंदिरों में पूजा नहीं की जाती है .

इसी तरह बांग्लादेश में 1964 के बाद हिंदुओं की आबादी करीब 1 करोड़ घट गई है . वर्ष 1951 में बांग्लादेश में 22 प्रतिशत जनसंख्या हिंदू थी . लेकिन वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, बांग्लादेश में करीब 8 प्रतिशत हिंदू रह गए हैं .

अफगानिस्तान में भी पिछले 3 दशक में करीब 99 प्रतिशत हिंदू और सिख देश को छोड़ चुके हैं . वहां 1980 के दशक में 2 लाख 20 हजार हिंदू थे . लेकिन 1990 के दशक में इनकी जनसंख्या में तेजी से कमी आई ... और 2017 में हिंदू और सिख आबादी सिर्फ 1 हज़ार 350 तक सिमट गई.

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