Zee जानकारी: एंबुलेंस को रास्ता देना हमारी नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी है
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Zee जानकारी: एंबुलेंस को रास्ता देना हमारी नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी है

आज हम सबसे पहले नेताओं की रैली और धरने प्रदर्शन में छिपी हुई संवेदनहीनता का विश्लेषण करेंगे। हमारे देश में रैलियों और धरने प्रदर्शन की ख़बर सुनते ही आम लोगों की आंखों के सामने से ट्रैफिक जाम में फंसने के दृश्य गुज़रने लगते हैं किसी धरने प्रदर्शन या रैली की विशालता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जाता है कि उसकी वजह से सड़कों पर कितना लंबा ट्रैफिक जाम लगा।

Zee जानकारी: एंबुलेंस को रास्ता देना हमारी नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी है

नई दिल्ली: आज हम सबसे पहले नेताओं की रैली और धरने प्रदर्शन में छिपी हुई संवेदनहीनता का विश्लेषण करेंगे। हमारे देश में रैलियों और धरने प्रदर्शन की ख़बर सुनते ही आम लोगों की आंखों के सामने से ट्रैफिक जाम में फंसने के दृश्य गुज़रने लगते हैं किसी धरने प्रदर्शन या रैली की विशालता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जाता है कि उसकी वजह से सड़कों पर कितना लंबा ट्रैफिक जाम लगा।

यानी जो धरना प्रदर्शन या रैलियां जनता के मुद्दे उठाने के नाम पर की जाती हैं उनकी बुनियाद होती है जनता की परेशानी। हमें लगता है कि ये एक तरह की संवेदनहीन राजनीति है और ये नेताओं और आम लोगों के बीच VIP कल्चर की खाई खोदने वाली सोच है। नेता ये सोचते हैं कि हम तो रैली करेंगे फिर चाहे जनता को कितना भी परेशान क्यों ना होना पड़े।

ये बुराई देश की हर पार्टी में है और इसके विरोध में ही हम एक DNA टेस्ट कर रहे हैं। इस विश्लेषण का आधार है एक दुखद ख़बर जो पंजाब के लुधियाना से आई है। लुधियाना में एक राजनीतिक रैली की वजह से एक एंबुलेंस को रास्ता नहीं मिला, और एंबुलेंस में इलाज के लिए तड़प रही 60 वर्ष की एक महिला की मौत हो गई।

हो सकता है कि आप इस ख़बर के बारे में ना जानते हों और ये भी हो सकता है कि आपने ये ख़बर आज अखबार के अंदर के किसी पन्ने में देखी हो और उसे नज़रअंदाज़ कर दिया हो। लेकिन यहां हम आपको सावधान करना चाहते हैं कि इस ख़बर को छोटी ख़बर समझने की भूल मत कीजिए, क्योंकि ये घटना कभी भी किसी के भी साथ हो सकती है।

ये तस्वीर अवतार कौर की है। अवतार कौर आज ज़िंदा होती, अगर उनकी एंबुलेंस राजनीतिक संवेदनहीनता की शिकार ना हुई होती। अवतार कौर को सांस लेने में दिक्कत होने के बाद अस्पताल में भर्ती करवाया गया था।रविवार को डॉक्टरों ने उन्हें दूसरे हॉस्पिटल के लिए रेफर कर दिया। दूसरा अस्पताल सिर्फ ढाई किलोमीटर की दूरी पर था।

लेकिन अवतार कौर के परिवार वालों का आरोप है कि उन्हें ले जा रही एंबुलेंस अरविंद केजरीवाल की एक राजनीतिक रैली की वजह से ट्रैफिक जाम में फंस गई। इस रैली की वजह से सिर्फ ढाई किलोमीटर की दूरी तय करने में एंबुलेंस को 25 मिनट का वक्त लग गया। और अवतार कौर ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया । हमें लगता है कि ये गंभीर आरोप है और इस मामले की गहराई से जांच होनी चाहिए।

इस मामले में सबसे बड़ा विरोधाभास ये है कि नेता जब जनता से वोट मांगते हैं, तो वो आम आदमी के सबसे बड़े हितैषी होने का दावा करते हैं। लेकिन वोट मांगने की प्रक्रिया में वो आम लोगों की ही मौत की वजह बन जाते हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल भी आजकल पंजाब में घूम घूमकर लोगों के वोट मांग रहे हैं और उन्हें तमाम समस्याओं से निजात दिलाने का दावा भी कर रहे हैं। 

लेकिन उन्हें इस बात की फिक्र नहीं है कि उनकी राजनीतिक रैली की वजह से किसी आम आदमी की जान भी जा सकती है। आप ये भी कह सकते हैं कि सिस्टम और नेता पहले तो जनता को एंबुलेंस की सुविधा नहीं देते और अगर एंबुलेंस मिल भी जाए.. तो फिर उसे समय पर मंज़िल तक पहुंचने नहीं देते। 

भारत में एंबुलेंस को रास्ता देने का कोई ख़ास रिवाज नहीं है, हमारे देश में आम आदमी हों या आम आदमी के नाम पर राजनीति करने वाले नेता हों एंबुलेंस को रास्ता देने की सोच ज़्यादातर लोगों के अंदर दिखाई नहीं देती। ऐसा नहीं है कि भारत में इसे लेकर कोई कानून नहीं है भारत में इमरजेंसी वाहनों का रास्ता रोकने पर या रास्ता ना देने पर अलग-अलग राज्यों में 500 रूपये से लेकर 2 हज़ार रूपये तक के जुर्माने का प्रावधान है।

लेकिन शायद ही कोई इस नियम के बारे में जानता होगा और अगर जानता भी होगा, तो कम ज़ुर्माने की वजह से इस कानून का सम्मान नहीं होता है। आम आदमी के लिए ये कानून है लेकिन संवेदनहीन नेताओं के लिए हमारे देश में कोई कानून है ही नहीं।

भारत में अकसर ऐसी तस्वीरें आम होती हैं, जब ट्रैफिक सिग्नल पर कोई एंबुलेंस रास्ता मिलने का इंतज़ार कर रही होती है। लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता एंबुलेंस को रास्ता देना हमारी नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी है, जिसका एहसास करना बहुत ज़रूरी है।भारत के अलग अलग शहरों की अलग अलग सड़कों पर ऐसा हर रोज़ कई बार होता है, लेकिन अगर ऐसी घटना को हम जर्मनी और सिंगापुर के नज़रिए से देखें, तो वहां हमें एक दूसरी ही तस्वीर दिखाई देती है।

अभी आपकी टीवी स्क्रीन पर जर्मनी की तस्वीर है। जिसमें एंबुलेंस को रास्ता देने के लिए सड़क पर चल रही गाड़ियां दोनों किनारों पर खड़ी हो जाती हैं। और जिस गाड़ी को रास्ता नहीं मिलता है, वो भी किसी तरह एंबुलेंस के रास्ते से हट जाती है, ताकि घायल या ज़रूरतमंद व्यक्ति तक मदद पहुंचाई जा सके। 

ठीक इसी तरह सिंगापुर में भी एंबुलेंस को रास्ता देने के लिए सड़क पर चल रही गाड़ियां किनारे हो जाती हैं। यहां तक कि रेड लाइट ग्रीन हो जाने के बाद भी गाड़ियां पहले एंबुलेंस को जाने का रास्ता देती है। ताकि मरीज़ सही समय पर हॉस्पिटल पहुंच सके। ये सिर्फ कुछ तस्वीरें हैं, दुनिया में बहुत सारे देश ऐसे हैं जहां इंसान की जान की कीमत समझी जाती है। इसके लिए कई कठोर क़ानून भी बनाए गए हैं।

अमेरिका में अगर कोई एंबुलेंस का रास्ता रोकता है तो उस पर 200 डॉलर यानी 13 हज़ार रुपये से ज़्यादा का जुर्माना या 7 दिन की जेल हो सकती है। ब्रिटेन में किसी आपातकालीन वाहन को जान-बूझकर रास्ता ना देने वाले पर, 5 हजार पाउंड यानी करीब 5 लाख रुपये का जुर्माना लगता है।

वहीं जर्मनी में अगर कोई ड्राइवर सायरन बजाती हुई एंबुलेंस को साइड नहीं देता, तो उसपर 726 यूरो यानी करीब 53 हज़ार रुपये का ज़ुर्माना लगाया जाता है। इसी तरह चीन में भी एंबुलेंस का रास्ता रोकने की सज़ा के तौर पर 10 दिन की जेल या 200 युआन यानी करीब 2 हजार रुपये का जुर्माना देना पड़ता है।

यानी भारत में कानूनों को और कड़ा करने की ज़रूरत है हालांकि सिर्फ कानून बनाने या ज़ुर्माना बढ़ाने से कुछ नहीं होगा ये एक वैचारिक समस्या है जब तक लोगों को और नेताओं को ये महसूस नहीं होगा कि उनकी लापरवाही से किसी की जान जा सकती है.. तब तक वो एंबुलेंस को रास्ता नहीं देंगे। 

अब सवाल ये है कि इसका समाधान क्या है

तो हमारी नज़र में इसका एक ही समाधान है और वो ये है कि राजनीतिक रैलियां ऐसे इलाक़ों में कभी नहीं होनी चाहिएं जहां आपातकालीन सुविधाएं प्रभावित होती हों या आम लोगों को ट्रैफिक जाम जैसी तकलीफ का सामना करना पड़ता हो अगर कोई नेता आपसे ऐसी किसी रैली में शामिल होने की अपील करता है तो आपको इससे साफ इनकार कर देना चाहिए।

हम तमाम पार्टियों के कार्यकर्ताओं से और रैलियों में भाग लेने वाले लोगों से अपील करते हैं कि वो आम लोगों की तकलीफों का ख्याल रखें।

 

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