वर्ष 1947 में अंग्रेज़ तो भारत से चले गये...लेकिन आज 72 साल बाद भी Ceremonial Protocol वाला सिस्टम ज़िंदा है. Ceremonial Protocol...यानी औपचारिकताओं और तामझाम से भरा वो सिस्टम, जिसमें भारत में हर क्षेत्र में दो वर्ग पैदा किये हैं. इसके तहत एक वर्ग को ज़रूरत से ज़्यादा अहमियत दी जाती है, जबकि दूसरे वर्ग से ग़ुलाम या सेवक की तरह बर्ताव किया जाता है.
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भारतीय नौसेना के नए प्रमुख एडमिरल कर्मबीर सिंह नौसेना से VIP कल्चर हटाना चाहते हैं. उन्होंने 31 मई को नौसेना की कमान संभाली है और चार दिन के अंदर ही उन्होंने पूरी Force के लिये ऐसे निर्देश जारी किये हैं....जो भारतीय नौसेना के क़रीब 40 हज़ार नौसैनिकों और क़रीब 9 हज़ार अफ़सरों के लिये ही नहीं...बल्कि पूरे देश के लिये मिसाल बन सकते हैं, क्योंकि आज के भारत को 21 तोपों की सलामी वाली मानसिकता से बाहर आने की ज़रूरत है. वर्ष 1947 में अंग्रेज़ तो भारत से चले गये...लेकिन आज 72 साल बाद भी Ceremonial Protocol वाला सिस्टम ज़िंदा है. Ceremonial Protocol...यानी औपचारिकताओं और तामझाम से भरा वो सिस्टम, जिसमें भारत में हर क्षेत्र में दो वर्ग पैदा किये हैं. इसके तहत एक वर्ग को ज़रूरत से ज़्यादा अहमियत दी जाती है, जबकि दूसरे वर्ग से ग़ुलाम या सेवक की तरह बर्ताव किया जाता है.
भारतीय नौसेना के 24वें प्रमुख एडमिरल कर्मबीर सिंह ने अपने निर्देश में एक Line लिखी है. उन्होंने कहा है कि Juniors be encouraged to be disciplined and respectful but not Sub-servient (सर्विएंट).
यानी जूनियर अफ़सर अनुशासन में रहें और अपने सीनियर का सम्मान करें...लेकिन वो ख़ुद को उनका ग़ुलाम ना समझें. इस तरह उन्होंने जवानों और अफ़सरों के बीच समानता लाने पर ज़ोर दिया है. वो Protocol के नाम पर अफ़सरों के लिये होने वाले कई विशेष इंतज़ाम ख़त्म करना चाहते हैं. उन्होंने नौसैनिकों और अफ़सरों के लिये एक जैसी खाने-पीने की व्यवस्था की बात कही है. वो चाहते हैं कि अफ़सरों के लिये कई गाड़ियों वाले क़ाफ़िले का तामझाम ख़त्म हो...यहां तक कि अधिकारियों को गुलदस्ते देने वाली परंपरा भी ग़ैर ज़रूरी है. इससे नौसेना के कार्यक्रम में VIP दौरों पर होने वाला ख़र्च कम होगा. इसकी शुरुआत उन्होंने ख़ुद से की है. और अपने लिये ज़रूरत से ज़्यादा दिखावे और फ़िज़ूलख़र्ची पर रोक लगाने को कहा है.
सेना एक टीम की तरह होती है. सेना के जवान अपने वरिष्ठ अफ़सरों के आदेश का पालन करते हैं. एडमिरल कर्मबीर सिंह की नीयत बहुत साफ़ है. उन्होंने संदेश देने की कोशिश की है कि जवान और अफ़सरों के रिश्ते के बीच उनकी Rank, दूरी नहीं...बल्कि सम्मान की भावना पैदा करें. ज़ाहिर है कि जवान और अफ़सर...दोनों दुश्मन से मिलकर लड़ते हैं...युद्ध भूमि में दोनों एक दूसरे के लिये अपनी जान तक क़ुर्बान कर देते हैं. इसलिये नौसेना प्रमुख के नये निर्देश जवान और अफ़सर को और क़रीब लाएंगे.
नौसेनाध्यक्ष के इस आदेश से ये भी साफ़ है कि अनुशासन के नाम पर एड़ी बजाने की फ़ौजी परंपरा को भी बदलने का वक़्त...कम से कम नौसेना में आ चुका है. सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने भी सेना में फिजूलखर्ची और VIP कल्चर को ख़त्म करने के लिए कई क़दम उठाए हैं. जनरल रावत ने रिटायर हो चुके अफ़सरों के घरों में सैनिकों को सहायक के तौर पर रखने पर पिछले साल मई में रोक लगा दी थी. इसका सेना के बहुत से अफ़सरों ने विरोध भी किया था. पिछले महीने ही जनरल रावत ने मणिपुर की लीमाकांग छावनी में चल रहे कई ग़ैरज़रूरी मेस बंद करने के आदेश दिए हैं. अब सेना ने सीनियर अफ़सरों की मीटिंग के लिए दौरों के बजाए Video कॉन्फ्रेंसिंग का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.
भारत की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक बड़ी सेना रखना ज़रूरी है. इसमें सीनियर और जूनियर वाला सिस्टम रखना भी ज़रूरी है...तभी एक फ़ौज एक संगठन के तौर पर बेहतर काम करती है. लेकिन सेना में VIP कल्चर और Protocol के नाम पर चल रही बहुत सी परंपराओं को बदलने की शुरुआत हो चुकी है.
Protocol एक तरह की औपचारिकता होती है, जो एक सिस्टम को बेहतर चलाने के लिये बनाई जाती है. ये एक तरह की प्रक्रिया है जिसके मुताबिक़ किसी काम को व्यवस्थित तरीक़े से पूरा किया जाता है. भारत में इसे सरकारी संस्कार भी कह सकते हैं. Protocol को Greek शब्द 'प्रोटो-कोलान' से लिया गया है. इसका अर्थ 'पहली गोंद' है, जो किसी दस्तावेज़ को सील करते वक़्त लगाई जाती है. ताकि वो दस्तावेज़ ज़्यादा प्रमाणिक नज़र आएं.
इस शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर अंतरराष्ट्रीय संबंधों में होता है. हर देश में एक Chief Protocol Officer होता है जो विदेश से आने वाले नेताओं का स्वागत करता है. ऐसे दौरों पर Protocol के तहत विदेशी मेहमानों के एक-एक मिनट का कार्यक्रम तय किया जाता है. Protocol के बारे में अमेरिका के John Hopkins विश्वविद्यालय के प्रोफेसर P.M. फॉर्नी ने कहा है कि - इस शब्द ने अंतरराष्ट्रीय संबंध बनाना आसान बना दिया है.
अंतरराष्ट्रीय मेहमानों के आने पर एक देश का Protocol उसकी कूटनीति, संस्कृति और शिष्टाचार का चेहरा बन जाता है. विदेशी नेता इसे द्विपक्षीय समझौतों से ज़्यादा याद रखते हैं. ऐसा कई बार हुआ है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश यात्राओं पर गये हैं और वहां के राष्ट्रध्यक्ष ने Protocol तोड़कर उनका एयरपोर्ट आकर स्वागत किया है.
ऐसा ही प्रधानमंत्री मोदी ने भी कई बार किया है जब अमेरिका, इज़रायल और फ्रांस के राष्ट्रध्यक्ष का एयरपोर्ट जाकर स्वागत किया है. वर्ष 2017 में जब नरेंद्र मोदी इज़राएल गए थे. तब वहां के प्रधानमंत्री Benjamin Netanyahu ने उन्हें एयरपोर्ट पर Receive भी किया था. और वो उन्हें छोड़ने के लिए भी एयरपोर्ट आए थे.
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप दो दिन पहले जब ब्रिटेन के दौरे पर गये थे...तब उन्होंने वहां की महारानी एलिज़ाबेथ की सराहना करते हुए उनकी पीठ पर हाथ रख दिया. बकिंघम पैलेस में हुए डिनर के दौरान ये बहुत सामान्य बात थी. लेकिन अब कहा जा रहा है कि उन्होंने Protocol तोड़ा है क्योंकि किसी को ब्रिटेन की Royal Family को छूने की इजाज़त नहीं है.
ऐसी ही एक बात के लिये इमरान ख़ान भी चर्चा में हैं. सऊदी अरब में 31 मई को हुई Organisation of Islamic Conference में इमरान ख़ान वहां के किंग सलमान से मिले थे. इस दौरान उन्होंने किंग सलमान से हाथ मिलाकर कुछ शब्द कहे...और उनका जवाब सुने बग़ैर वहां से चले गये. कहा जा रहा है कि ऐसा करके इमरान ख़ान ने वहां का Protocol तोड़ा है. मुमकिन है ये सामान्य बात हो...लेकिन इस पर विवाद हुआ है...यानी दुनिया के ये देश Protocol के बंधन से बाहर नहीं आना चाहते.
अंतरराष्ट्रीय संबंधों में Protocol बहुत ज़रूरी भी है. इसीलिये भारत में विदेश मंत्रालय के Protocol विभाग में 50 से ज़्यादा लोगों का स्टाफ है. लेकिन भारत जैसे देश के लिये दुर्भाग्य है कि यहां Protocol के अलग मायने निकाल लिये जाते हैं. भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेज़ों ने भारतीयों को छोटा और कमतर साबित करने के लिये ख़ुद को बड़ा दिखाने की कोशिश की. उन्होंने भारत के ही पैसे से अपनी शानो-शौकत में कोई कसर नहीं छोड़ी. इसी तरह उन्होंने ख़ुद को मुग़ल शासन और बाक़ी राजे रजवाड़ों से भी ज़्यादा बड़ा साबित किया. ये सिलसिला आज़ादी के बाद भारत में भी जारी रहा...जिसे अब ख़त्म करने की कोशिश हो रही है.
कुछ लोग इसमें भव्यता, धूमधाम और चमक-धमक चाहते हैं. यानी वो अपने लिये Special Treatment की उम्मीद करते हैं. भारत में इस शब्द का इस्तेमाल दिखावे के लिये ज़्यादा किया जाता है. नेता और रसूख़दार लोग इसका इस्तेमाल ख़ुद को आम नागरिक से अलग दिखाने में करते हैं.
भारत में लाल बत्ती का कल्चर वर्ष 2017 में खत्म कर दिया गया...लेकिन आज भी ख़ुद को VIP मानने वाले लोग Toll Plaza पर 50 रुपये का Tax देने के बजाय लड़ने को तैयार हो जाते हैं. एयरपोर्ट पर अपनी सुरक्षा जांच होने पर उन्हें ग़ुस्सा आ जाता है. वो आम नागरिक की तरह कतार में लगना पसंद नहीं करते हैं. इस मानसिकता पर प्रधानमंत्री मोदी भी प्रहार कर चुके हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान कहा था कि जब कोई उनसे मिले तो वो गुलदस्ता नहीं...बल्कि किताब या रूमाल तोहफ़े में दे. और इसी बात को उन्होंने पूरे देश से अपनाने की भी अपील की थी.
वैसे अब राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति और राज्यपालों की गाड़ियों में भी नंबर प्लेट लगाना ज़रूरी हो गया है. वर्ष 2018 में केंद्रीय परिवहन मंत्रालय ने इसकी जानकारी दिल्ली हाई कोर्ट को दी थी. इससे पहले उनकी कार में नंबर प्लेट की जगह सिर्फ़ अशोक स्तंभ लगा होता था. जब प्रणब मुखर्जी भारत के राष्ट्रपति थे...तब उन्होंने कहा था कि उनके लिये महामहिम शब्द का इस्तेमाल ना किया जाये. इसलिये अब ज़रूरत है कि ऐसी ही सादगी वाली सोच देश अपनाये...और Protocol वाले व्यवहार से बाहर आये, क्योंकि ये देश कुछ ख़ास लोगों का नहीं...कुछ विशेष परिवारों का नहीं...बल्कि 135 करोड़ भारतीयों का देश है.