DNA: एक- एक सीट के लिए क्षेत्रीय पार्टियों के सामने गिड़गिड़ा रही कांग्रेस, आखिर 10 साल में कैसे हो गए पार्टी के ये हालात?
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DNA: एक- एक सीट के लिए क्षेत्रीय पार्टियों के सामने गिड़गिड़ा रही कांग्रेस, आखिर 10 साल में कैसे हो गए पार्टी के ये हालात?

Lok Sabha Elections 2024 and Congress: देश पर करीब 70 साल तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी की हालत आज ये हो गई है कि उसे एक- एक सीट के लिए क्षेत्रीय पार्टियों के आगे गिड़गिड़ाना पड़ रहा है. आखिर पिछले 10 साल में उसके ये हालात कैसे हो गए.

 

DNA: एक- एक सीट के लिए क्षेत्रीय पार्टियों के सामने गिड़गिड़ा रही कांग्रेस, आखिर 10 साल में कैसे हो गए पार्टी के ये हालात?

DNA on Lok Sabha Elections 2024 and Congress: क्या से क्या हो गया. एक समय था जब लोकसभा चुनावों में, क्षेत्रीय पार्टियां, राष्ट्रीय पार्टी से सीटों की गुज़ारिश करती थीं. यूपीए में शामिल क्षेत्रीय पार्टियां गठबंधन धर्म निभाते हुए, छोटी और राष्ट्रीय स्तर पर कमजोर होने की वजह से कांग्रेस के सीट दान पर निर्भर थीं. लेकिन पिछले 10 वर्षों में देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के हालात बदल गए, जज्बात बदल गए.

अब स्थिति ये है कि कांग्रेस पार्टी को क्षेत्रीय पार्टियों से लोकसभा सीटें मांगनी पड़ रही हैं. क्षेत्रीय पार्टियां अपने शर्तों पर कांग्रेस के लिए सीटें दे रही हैं. सीटों के बंटवारे का सीक्रेट फॉर्मूला कुछ भी हो, लेकिन इतना तय है कि 2024 के चुनावी मैदान में, कांग्रेस पार्टी एक छोटी और कमजोर राजनीति दल की तरह मैदान में उतर रही हैं. कांग्रेस चाहती तो पूरे देश में अपने दम पर चुनाव लड़ सकती थी, या फिर ज्यादा से ज्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकती है. लेकिन सत्ताधारी दल बीजेपी से लड़ते लड़ते, स्थिति ये आ गई है कि देश पर सबसे ज्यादा समय तक शासन चलाने वाली कांग्रेस, आज अलग-अलग राज्यों में सीटें मांगकर ले रही हैं.

बिगड़ गया इंजन, स्लीपर बनकर रह गई कांग्रेस

ये वही कांग्रेस पार्टी है जिसे यूपीए का इंजन माना जाता था, और अन्य सहयोगी पार्टियों को उसकी बोगियां. लेकिन आज यूपीए जैसे कुछ नजर नहीं आ रहा है, एक INDI गठबंधन जरूर बना है, जिसमें इंजन नहीं है, बस बोगियां ही बोगियां हैं, और कांग्रेस तो इसमें ही एक स्लीपर क्लास की बोगी बनकर रह गई है. जो क्षेत्रीय पार्टियों से भी पीछे है.

अब जैसे आम आदमी पार्टी, जो INDI गठबंधन का हिस्सा है, उसके आगे कांग्रेस को सीटों के लिए हाथ फैलाने पड़ गए है. आम आदमी पार्टी पहले ही पंजाब में कांग्रेस के साथ सीट शेयर करने से इनकार कर चुकी है. कांग्रेस पंजाब में उनसे सीटें नहीं मांग पाएगी. लेकिन दिल्ली की सीटों को लेकर आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के प्रति नर्म रुख अपनाया है.

दिल्ली में AAP के साथ हुआ कांग्रेस का समझौता

खबर ये आ रही है कि दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों को लेकर सीट शेयरिंग फॉर्मूले पर बात बन गई है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को 3 सीटें दी हैं. यानी आम आदमी पार्टी 4 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी. साउथ दिल्ली, नॉर्थ वेस्ट दिल्ली, नई दिल्ली और वेस्ट दिल्ली में आम आदमी पार्टी अपना उम्मीदवार उतारेगी. वहीं चांदनी चौक, ईस्ट दिल्ली, नॉर्थ ईस्ट दिल्ली सीट से कांग्रेस पार्टी अपना उम्मीदवार उतार सकती है.

सिर्फ यही नहीं, खबर ये भी है कि सीट शेयरिंग के फॉर्मूले के तहत आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से गुजरात में दो सीटें मांगी तो कांग्रेस ने उसे दे दीं. गुजरात की भरूच और भावनगर लोकसभा सीट से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतर सकते हैं. यही नहीं चंडीगढ़ सीट भी आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को दी है. गोवा में आम आदमी पार्टी का चुनाव लड़ने का कोई इरादा नहीं है, इसलिए साउथ गोवा की जिस सीट पर उसने अपना उम्मीदवार घोषित किया था, वो सीट उसने कांग्रेस के लिए खाली कर दी है.

हरियाणा में एक सीट छोड़ेगी कांग्रेस

कांग्रेस पार्टी, आम आदमी पार्टी को हरियाणा में भी एक सीट दे सकती है. कांग्रेस के लिए दिल्ली एक ऐसी नब्ज है, जो उसे पुराने सुखद दिनों की याद दिलाती है. दरअसल दिल्ली एक ऐसा राज्य रहा है, जिस पर लंबे समय तक कांग्रेस की सत्ता रही है. अगर हम विधानसभा चुनाव की बात करें तो दिल्ली में पहली विधानसभा का गठन 1993 में हुआ था, जिसमें भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज करके सरकार बनाई थी.

उसके बाद वर्ष 1998, वर्ष 2003 और वर्ष 2008, में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज की. यानी लगातार 15 वर्षों तक दिल्ली में कांग्रेस का शासन रहा. वर्ष 2013 में पांचवी विधानसभा के लिए हुए चुनाव में आम आदमी पार्टी ने सरकार बनाई, लेकिन उसके 2 वर्ष बाद दोबारा चुनाव हो गए, जिसमें फिर से आम आदमी पार्टी ने सरकार बना ली.

अगर हम पिछले 7 लोकसभा चुनावों के डेटा का विश्लेषण करें, तो इससे ये पता चलता है कि 1996 से लेकर 2019 तक हुए सात लोकसभा चुनावों में एक समयकाल ऐसा रहा है, जब दिल्ली की विधानसभा और लोकसभा पर कांग्रेस का सिक्का चलता था. वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 5 और कांग्रेस को 2 सीटें मिली थीं. इसके बाद वर्ष 1998 के चुनाव में बीजेपी को 6 और कांग्रेस को 1 सीट मिली थी.

दिल्ली में क्यों नहीं जीत पा रही कांग्रेस 

वर्ष 1999 के चुनाव में तो कांग्रेस के हाल और ज्यादा खराब हो गए थे, इस चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी और सारी सीटे बीजेपी के खाते में गई थीं. लेकिन इसके बाद कांग्रेस ने रफ्तार पकड़ ली. वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 6 सीटें जीतीं और बीजेपी को 1 सीट मिली. फिर 2009 के चुनाव में कांग्रेस सभी सात सीटें जीत गई. आप अगर गौर करें तो देखेंगे कि 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों के दौरान दिल्ली राज्य में कांग्रेस पार्टी की ही सरकार थी. इस समय शीला दीक्षित मुख्यमंत्री हुआ करती थीं. यानी उनके कार्यकाल में कांग्रेस पार्टी का दिल्ली में एकछत्र राज था.

वर्ष 2013 में शीला दीक्षित के जाते ही कांग्रेस पार्टी के हालात बदल गए. उसके बाद 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को दिल्लीवालों ने एक भी सीट नहीं जीतने दी. यही वजह है कि कांग्रेस पार्टी दिल्ली की सीटों के लिए आम आदमी पार्टी की दया पर निर्भर है. इसी वजह से खबर यही आई है कि कांग्रेस को 7 में से केवल 3 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए कहा गया है.

दिल्ली की तरह ही उत्तर प्रदेश, कांग्रेस की पारंपरिक सीटों वाला राज्य है. अमेठी और रायबरेली जैसी सीटें तो गांधी-नेहरू परिवार की पारिवारिक सीट रही है. केंद्र में सत्ता हासिल करने के लिए उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना, हर पार्टी की चाहत है.

क्षेत्रीय पार्टियों से मांगनी पड़ रही हैं सीटें

कांग्रेस भी उससे अछूती नहीं है. लेकिन कांग्रेस की जो स्थिति है, उसमें, उसके लिए ज्यादा हाथ पांव मारने की जगह नहीं है. कांग्रेस जैसी पार्टी को आज के दौर में समाजवादी पार्टी जैसी क्षेत्रीय पार्टी से यूपी की सीटें मांगनी पड़ रही हैं. भले ही इसे सीट शेयरिंग फॉर्मूला कहा जा रहा हो, लेकिन कहीं ना कहीं, कांग्रेस पार्टी को भी पता है कि सत्ता में अगर आना है, तो यूपी से ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतनी होंगी.

पिछले 1 दशक में कमजोर हो चुकी कांग्रेस पार्टी के लिए क्षेत्रीय पार्टियों की छोड़ी गई सीटें चुनने के अलावा, कोई चारा नहीं है. यूपी में भी यही हाल है. समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने हाल ही में कहा था कि जब तक कांग्रेस पार्टी के साथ सीटों को लेकर मामला सुलझ नहीं जाता तब तक वो राहुल गांधी की न्याय यात्रा में शामिल नहीं होंगे. कल इन दोनों के बीच सीट का बंटवारा हो गया.

खबर ये आई है कि समाजवादी पार्टी ने यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस को मात्र 17 सीटें दी हैं. कांग्रेस को अमेठी, रायबरेली, प्रयागराज, वाराणसी, महाराजगंज, देवरिया, बांसगांव, सीतापुर, अमरोहा, बुलंदशहर, गाजियाबाद, कानपुर, झांसी, बाराबंकी, फतेहपुर सीकरी, सहारनपुर और मथुरा सीट दी गई है. खबर ये भी है कि इन सीटों के बंटवारे के दौरान कुछ सीटों को लेकर पेंच फंस गया था. लेकिन प्रियंका गांधी की एंट्री के बाद मामला सुलझा गया.

दक्षिण भारत तक सिमटकर रह गई पार्टी

कई राजनीतिक विश्लेषकों को हैरानी इस बात पर है कि कांग्रेस जैसी बड़ी राष्ट्रीय पार्टी, यूपी में लोकसभा सीटों को लेकर मात्र 17 सीटें लेने पर राज़ी हो गई है. यही नहीं कांग्रेस पार्टी ने इस बार मध्यप्रदेश की खजुराहो सीट को समाजवादी पार्टी के लिए छोड़ दिया है. हालांकि मध्यप्रदेश में समाजवादी पार्टी की स्थिति बहुत खराब रही है.

कांग्रेस पार्टी ने हमेशा से अपना चुनावी फोकस दक्षिण भारत पर रखा है. दक्षिण से ही कांग्रेस को संजीवनी मिलती रही है. 2024 चुनावों के लिए भी कांग्रेस ने दक्षिण भारत को ही टारगेट किया है, क्योंकि 2019 के चुनावों में उत्तर भारत में कांग्रेस का जो हाल हुआ, उससे कांग्रेस ने सीख ली है. 2019 के चुनाव में अगर हम उत्तर भारतीय राज्यों की लोकसभा सीटों का विश्लेषण करें, तो पता चलता है कि उत्तर भारत में पड़ने वाले 9 राज्यों में कांग्रेस की बुरी स्थिति रही थी. 

  • 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 9 में से उत्तर भारत के 7 राज्यों में खाता भी नहीं खोल पाई थी.

  • जम्मू कश्मीर की 6 सीटों में से 5 पर उसने चुनाव लड़ा था लेकिन एक भी सीट नहीं जीती थी.

  • हिमाचल प्रदेश की कुल 4 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा और यहां भी एक भी सीट नहीं जीती

  • उत्तराखंड की सभी 5 सीटों पर चुनाव लड़ा और यहां भी वही हाल हुआ था.

  • हरियाणा की सभी 10 सीटों पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था और यहां भी वही हाल था.

  • राजस्थान की कुल 25 सीटों पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था, एक भी सीट नहीं मिली.

  • दिल्ली की सभी 7 सीटों पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था, और यहां भी हाल शून्य था.

  • चंडीगढ़ सीट पर भी कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था, ये भी नहीं जीत पाए थे.

  • उत्तर प्रदेश की 80 में से 67 सीटों पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था, यहां केवल 1 सीट मिली थी.

  • पंजाब की कुल 13 सीटों पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था, यहां उन्हें 8 सीटें मिली थीं.

जानें कितनी हैं दक्षिण भारत में सीटें

यानी उत्तर भारत में कांग्रेस को कुछ खास हासिल होने की उम्मीद नहीं है. उन्हें उम्मीद है दक्षिण भारत से. दक्षिण भारत में 7 राज्य आते हैं. जिसमें 131 लोकसभा सीटें पड़ती हैं. इनमें तमिलनाडु की 39 लोकसभा सीटें, केरल की 20, कर्नाटक की 28, आंध्रप्रदेश की 25 और तेलंगाना की 17 लोकसभा सीटें शामिल हैं. इसके अलावा लक्षद्वीप और पुडुचेरी सीट भी है.

अगर हम लक्षद्वीप और पुडुचेरी को अलग रख दें तो बाकी बचें पांच दक्षिण भारतीय राज्यों की 129 सीटों पर वर्ष 2009 के चुनावों में कांग्रेस ने 60 सीटें हासिल की थीं. वर्ष 2014 में कांग्रेस को इन दक्षिण भारतीय राज्यों की 129 सीटों में से 19 सीटें मिली थीं. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को यहां से 27 सीटें हासिल हुई थीं.

समय के साथ कांग्रेस पार्टी देश के हर राज्य में दूसरे दर्जे की पार्टी बन गई है. इसलिए क्षेत्रीय पार्टियां, या फिर वो पार्टियों जिनको बने कुछ वर्ष ही हुए हैं, वो भी उन्हें अपनी सहूलियत के हिसाब से सीटें दे रही हैं और शर्तों पर कांग्रेस से उनकी सीटें ले भी रही हैं.

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