DNA: आजादी के 75 साल बाद लोकसभा में पेश हुआ पेपर लीक रोकने वाला बिल, क्या अब माफिया तंत्र पर लग जाएगी लगाम?
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DNA: आजादी के 75 साल बाद लोकसभा में पेश हुआ पेपर लीक रोकने वाला बिल, क्या अब माफिया तंत्र पर लग जाएगी लगाम?

Paper Leak Prevention Bill: आजादी के 75 साल बाद केंद्र सरकार लोकसभा में पेपर लीक रोकने वाला बिल लेकर आई है. क्या इस बिल के कानून बनने के बाद देश में पेपर लीक माफिया पर लगाम लग पाएगी. 

 

DNA: आजादी के 75 साल बाद लोकसभा में पेश हुआ पेपर लीक रोकने वाला बिल, क्या अब माफिया तंत्र पर लग जाएगी लगाम?

DNA on Paper Leak Prevention Bill: एक अदद सरकारी नौकरी की ख्वाहिश में देश के करोड़ों युवा कई-कई सालों तक जी-तोड़ मेहनत करते हैं और फिर जब परीक्षा का वक्त आता है तो पता चलता है कि पेपर लीक हो गया है और परीक्षा रद्द हो गई है. ये Trend इतना Common हो चुका है कि देश में बड़ी से बड़ी भर्ती और प्रतियोगी परीक्षा में इस बात की कोई गारंटी नहीं ले सकता कि पेपर लीक नहीं होगा. देश में शायद ही कोई राज्य बचा हो, जहां कभी कोई पेपर लीक ना हुआ हो और ना ही कोई ऐसा Competitive Exam बचा है, जो पेपर लीक माफिया से बचा हो. ऐसा लगता है मानो प्रतियोगी परीक्षाओं और पेपर लीक का चोली-दामन का साथ हो. इस Nexus को खत्म करने की कोशिशें और वादे तो बार-बार होते हैं लेकिन पेपर लीक रूकने का नाम ही नहीं लेती. हमारे देश में पेपर लीक अब एक संगठित उद्योग का रूप ले चुका है. जिसका Black Market साइज हजारों करोड़ रुपये है.

आजादी के बाद पहली बार बनने जा रहा ये कानून

आप भी सोचते होंगे कि आखिर पेपर लीक माफिया इतना ताकतवर कैसे हो गया है कि बड़ी से बड़ी प्रतियोगी परीक्षा का पेपर लीक हो जाता है. आपको जानकर Shock लग सकता है कि हमारे देश में आवारा कुत्तों को नुकसान पहुंचाने पर जेल की सजा का प्रावधान है. लेकिन हमारे देश में आजादी के 75 वर्षों बाद भी देश के भविष्य को नुकसान पहुंचाने वालों को सजा देने के लिए कोई कानून ही नहीं है क्योंकि आजतक किसी सरकार को महसूस ही नहीं हुआ कि देश में पेपर लीक रोकने के लिए कोई कानून होना जरूरी है.

आजादी के 75 वर्ष बाद अब मोदी सरकार देश का पहला The Public Examination (Prevention Of Unfair Means) Bill लेकर आई है. जिसे आज लोकसभा में पेश किया गया है. इस बिल के पहले ही पन्ने पर लिखा है कि ये बिल आजाद भारत के 75वें साल में संसद के अंदर लाया गया पहला बिल है. जिसमें प्रतियोगी परीक्षाओं में अनुचित तरीकों को रोकने के प्रावधान हैं. जिसमें पेपर लीक और नकल शामिल है. इस बिल में सजा के क्या प्रावधान हैं. आपको बताते हैं:

  • किसी व्यक्ति को पेपर लीक या नकल करवाने का दोषी पाया जाता है तो तीन से पांच साल तक की जेल और दस लाख तक का जुर्माना.

  • दूसरे के स्थान पर परीक्षा देने के मामले में दोषी पाए जाने पर तीन से पांच साल की जेल होगी और 10 लाख का जुर्माना.

  • किसी भी संस्थान की मिलीभगत साबित होती है तो उससे परीक्षा का पूरा खर्च वसूला जाएगा. इसके अलावा एक करोड़ रूपये तक का जुर्माना भी होगा और उस संस्थान की संपत्ति भी जब्त की जा सकती है.

  • दोषी पाए गए संस्थान के डायरेक्टर, मैनेजमेंट या इंचार्ज अगर पेपर लीक या नकल करवाने का दोषी पाया गया तो तीन से दस साल सजा के साथ एक करोड़ रूपये के जुर्माने का प्रावधान भी इस बिल में किया गया है.

  • पेपर लीक और नकल का संगठित अपराध करने के दोषी लोगों को भी पांच साल से दस साल की सजा और एक करोड़ रूपये के जुर्माने की बात इस बिल में कही गई है.

इन परीक्षाओं पर लागू होगा कानून

आज लोकसभा में पेश हुए इस बिल का मकसद नकल और पेपर लीक माफियाओं और सिंडिकेट पर शिकंजा कसना है. जिन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर लीक को धंधा बना दिया है. ये बिल जब कानून बन जाएगा तो इस कानून के दायरे में कौन-कौन सी प्रतियोगी परीक्षाएं आएंगी, ये भी इस बिल में बताया गया है...

  • Union Public Service Commission यानी UPSC

  • Staff Selection Commission यानी SSC

  • Railway Recruitment Boards

  • Institute Of Banking Personnel Selection

  • Central Government से जुड़े मंत्रालय और विभागों द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षाएं

  • National Testing Agency

आखिर 75 साल बाद देश को क्यों याद आई?

इन सारी Testing Agencies द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर लीक और नकल पर इस बिल के प्रावधान लागू होंगे. अभी ये बिल लोकसभा में सिर्फ पेश हुआ है. ये पहले लोकसभा में पास होगा. फिर राज्यसभा में पास होने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए जाएगा और उसके बाद ही ये बिल कानून की शक्ल लेगा.

अब दो सवाल हैं. पहला ये कि आखिर आजादी के 75 वर्ष बाद ही किसी सरकार को नकल और पेपर लीक के खिलाफ कानून लाने की याद क्यों आई? और दूसरा सवाल ये कि इन 75 वर्षों में पेपर लीक ने देश के भविष्य को कितना नुकसान पहुंचाया है. इन दोनों सवालों के जवाब बिल के Draft में बताए गए हैं. लेकिन आज हम आपको विस्तार से पेपर लीक के संगठित उद्योग का विश्लेषण दिखाएंगे.

केंद्र सरकार का तर्क है कि पेपर लीक और फिर परीक्षा रद्द होने से करोड़ों छात्रों को नुकसान उठाना पड़ता है. उनके भविष्य पर इसका प्रभाव पड़ता है. सरकार के इस तर्क के पीछे पुख्ता वजह भी है. वर्ष 2017 से 2023 के बीच सात सालों में Paper Leak के 70 से ज्यादा Case सामने आए. Paper Leak होने के बाद Exam रद्द किये गये और जिससे 1 करोड़ 50 लाख छात्र प्रभावित हुए. 

देश में विकराल हो चुकी है पेपर लीक की समस्या

इस Data से समझना मुश्किल नहीं है कि भारत में Paper Leak की समस्या कितनी गंभीर हो चुकी है? देश में ऐसी कोई परीक्षा नहीं बची जिसके पेपर लीक ना हुए हों. JEE एग्जाम हो या फिर NEET की परीक्षा, पटवारी भर्ती परीक्षा हो या फिर कांस्टेबल भर्ती. हर परीक्षा में पेपर लीक के मामले सामने आते रहते हैं. पहले कभी-कभार ही भर्ती परीक्षाओं के Paper Leak होते थे. लेकिन पिछले एक दशक में 10वीं, 12वीं और Entrance एग्जाम के पेपर भी लीक होने लगे हैं.

  • वर्ष 2017 से 2023 के बीच देश के कई राज्यों में सिलसिलेवार ढंग से पेपर लीक की घटनाएं हुई, जिनकी वजह से देश के करोड़ों छात्रों का भविष्य अधर में लटका है.
  • उत्तर-प्रदेश भी Paper Leak के केस से अछूता नहीं रहा, यहां वर्ष 2017 से 2022 के बीच Paper Leak के 8 मामले सामने आए.
  • राजस्थान में वर्ष 2018 से 2022 के बीच अलग-अलग सरकारी नौकरी की परीक्षाएं कुल 12 बार रद्द हुई.
  • गुजरात में वर्ष 2017 से 2023 के बीच 7 वर्षों में अलग-अलग Paper Leak के 14 मामले सामने आए.
  • इन्हीं 7 वर्षों के दौरान बिहार बोर्ड की दसवीं की परीक्षा का Paper 6 बार Leak हुआ.
  • पश्चिम बंगाल में राज्य बोर्ड परीक्षा का पेपर कम से कम 10 बार Leak हुआ.

बड़ी मछलियां बच जाती हैं

पिछले सात वर्षों में जिन परीक्षाओं के पेपर लीक हुए, उनमें बोर्ड Exam से लेकर प्रतियोगी परीक्षाएं और सरकारी नौकरी के लिए हुए Exam थे. Paper Leak होने के बाद संबंधित विभाग के पास एक ही रास्ता बचता है, Paper रद्द कर देना. Paper रद्द कर देने से ना परीक्षा कराने वाले विभाग को कोई फर्क पड़ता है, ना परीक्षा लेने वाले विभाग को. Paper Leak करने वाले सिंडिकेट के कुछ चुनिंदा लोगों पर कानूनी कार्रवाई होती है और बड़ी मछली बच जाती हैं. Paper Leak का अगर किसी को सबसे ज्यादा नुकसान होता है, तो परीक्षा देने वाले छात्र हैं.

राज्यों में नकल रोकने के कानून

अगर आपको लगता है कि केंद्र सरकार के नए कानून के बाद तस्वीर पूरी तरह बदल जायेगी. ना पेपर लीक होंगे और ना छात्र नकल कर पायेंगे तो ऐसा सोचना भी बेकार है क्योंकि देश में भले ही राष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाने की कवायद शुरु हुई हो लेकिन चार राज्यों में पेपर लीक के खिलाफ पहले से कानून हैं. फिर भी इन कानूनों का कोई असर या कोई डर पेपर लीक माफिया पर नहीं पड़ता. कम से कम आंकड़े तो इसकी गवाही नहीं दे रहे.

  1. राजस्थान में Paper Leak और नकल कराने वालों के खिलाफ पहले से कानून है. जिसमें दोषी को उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है .

  2. गुजरात में भी Paper Leak के दोषियों को 3 से 10 साल तक की सजा देने का कानूनी प्रावधान है. इसके अलावा 1 लाख से 1 करोड़ रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है. गुजरात में पेपर खरीदने वाले छात्रों को भी 2 साल से 10 साल तक की सजा हो सकती है.

  3. उत्तराखंड में Paper Leak और नकल कराने का दोषी पाए जाने पर 10 साल से उम्रकैद की सजा का प्रावधान है. दोषी पर 10 लाख से 10 करोड़ तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है. उत्तराखंड में Paper Leak का अपराध गैरजमानती है.

  4. हरियाणा में Paper Leak के दोषियों को 7 से 10 साल जेल और 10 लाख रुपये तक जुर्माना लग सकता है. इतना ही नहीं दोषी की प्रोपर्टी नीलाम करके नुकसान की भरपाई का प्रावधान है. 

नकल माफियाओं को क्यों नहीं मिलती सजा?

ऐसे में अगर कड़े कानून से पेपर लीक की घटनाओं को रोका जा सकता, तो राजस्थान, उत्तर-प्रदेश, गुजरात और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य पेपर लीक के मामले में अव्वल नहीं होते. अब जो बिल संसद में लाया गया है, उसमें जो प्रावधान है..उससे कड़े प्रावधान इन चार राज्यों के कानूनों में हैं. लेकिन फिर भी वहां ना तो सिस्टम नकल रोक पा रहा है और ना पेपर लीक. अगर कुछ रोक पा रहा है तो पेपर लीक होने वाली प्रतियोगी परीक्षाएं और इसका खामियाजा अगर किसी को उठाना पड़ रहा है तो वो हैं देश के युवा,  जो सरकारी नौकरी या प्रतियोगी परीक्षाओं में पास होने के लिए कड़ी तपस्या करते हैं..और बदले में उन्हें मिलता है पेपर रद्द होने का मैसेज. 

 

आपने अक्सर सुना होगा कि कभी REET की परीक्षा का पेपर लीक हो गया, कभी NEET, तो कभी JEE की परीक्षा का पेपर लीक हो गया. इसके बाद पेपर लीक करने वालों की गिरफ्तारी की ख़बर आती है. लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि किसी पेपर लीक माफिया को सजा हुई.

ऐसी ख़बरें सुनने को तब मिलेगी जब किसी माफिया को सजा होगी. पेपर लीक माफियाओं का सिंडिकेट इतना बड़ा हो चुका है कि छोटी मछली ही कानून के जाल में फंसती है, जबकि बड़े मगरमच्छ बच निकलते हैं. इसलिए जमीनी हकीकत ये है कि पेपर लीक माफिया खुद को कानून से ऊपर समझने लगे हैं. क्योंकि उनका नेटवर्क इतना मजबूत हो चुका है, जिसने सिस्टम में ही छेद कर दिया है. और इसी सिस्टम लीकेज को ठीक करने की जरूरत है.

कैसे लीक हो जाते हैं पेपर?

ज्यादातर प्रतियोगी या भर्ती परीक्षाओं के पेपर तैयार होने और उनके एग्जाम सेंटर तक पहुंचने की प्रक्रिया एक जैसी होती है और इसी प्रक्रिया के दौरान 5 ऐसे सिस्टम हैं, जहां से पेपर लीक होने की सबसे ज्यादा संभावना रहती है.

  • पहली सिस्टम, जहां पेपर तैयार किया गया

  • दूसरी सिस्टम, जहां पेपर को प्रिंट किया गया

  • तीसरी सिस्टम, बीच रास्ते से पेपर लीक हो

  • चौथी सिस्टम यानी स्ट्रॉन्ग रूम से पेपर लीक

  • और पांचवीं एग्जाम सेंटर से पेपर लीक हो जाए

  • पेपर तैयार किये जाने से लेकर एग्जाम सेंटर तक पहुंचाने के बीच ही पेपर Leak हो सकता है. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान पेपर लीक ना हो, इसकी जिम्मेदारी प्रशासनिक अधिकारियों की होती है. जब इस सिस्टम में सेंध लगती है, तभी कोई Paper Leak हो सकता है.

ऐसे तैयार किए जाते हैं परीक्षा पत्र

पेपर माफिया कैसे काम करते हैं और उनके लिए Paper Leak कराना कैसे संभव होता है, इसके लिए आपको पूरी प्रक्रिया को Detail में समझना होगा. प्रक्रिया के तहत सबसे पहले जिस भी विभाग में भर्ती होनी होती है, उसका आयोग या बोर्ड पेपर तैयार करने के लिए प्रोफेसर का सिलेक्शन करता है.

पेपर तैयार करने वाले प्रोफेसर का सिलेक्शन अनुभव, ईमानदारी, क्रेडिबिलिटी और फीडबैक के आधार पर होता है.

आयोग की तरफ से प्रोफेसर को सिलेबस, किताबें और जरूरी चीजें उपलब्ध करवाई जाती हैं.

प्रोफेसर को पेपर तैयार करने से पहले एफिडेविट लिखित गोपनीयता और विश्वसनीयता की शपथ लेनी होती है.

भर्ती करने वाला विभाग एक परीक्षा के 5 पेपर, अलग-अलग पांच प्रोफेसर से तैयार करवाता है.

इसके बाद पांचों पेपर से सवालों को Mix करके या पांच में से किसी एक पेपर को आयोग के सदस्यों की टीम फाइनल करती है.

इस दौरान पेपर तैयार करने वाले प्रोफेसर या जहां पेपर फाइनल किया गया है, वहां से पेपर लीक होने की संभावना रहती है.

प्राइवेट प्रिंटिंग प्रेस पर रहते हैं निर्भर

जरूरी नहीं की किसी एक प्रोफेसर का पेपर फाइनल हो, लेकिन उसके दिये गये कुछ प्रश्न पेपर में हो सकते हैं. जिन्हें लीक किया जा सकता है. हालांकि, इसके बाद फाइनल पेपर को प्रिंटिंग के लिए प्रेस पर भेज दिया जाता है. और यही दूसरी जगह होती है जहां से पेपर लीक होने संभावना बनी रहती है. ज्यादातर राज्य सरकारों के पास अपनी सरकारी प्रिंटिंग प्रेस नहीं है, ऐसी स्थिति में प्राइवेट प्रिंटिंग प्रेस में पेपर प्रिंट कराने पड़ते हैं.

आमतौर पर प्रिंटिंग प्रेस का चुनाव भर्ती विभाग के अध्यक्ष करते हैं और प्रिंटिंग प्रेस की गोपनीयता का ख्याल रखा जाता है. इसी वजह से प्रिंटिंग प्रेस के लिए Open टेंडर नहीं निकाला जाता. वैसे तो प्रिंटिंग प्रेस को प्रिंट होने वाले पेपर की गोपनीयता का एफिडेविट देना होता है और पेपर नजरबंद करके छपवाए जाते हैं. लेकिन, यहां काम करने वाले कर्मचारियों के पेपर की फोटो खींचकर उसे लीक करने की आशंका बनी रहती है. पेपर लीक करने वाला गिरोह या नकल कराने वाले प्रिंटिंग प्रेस के कर्मचारियों से मिलीभगत करके पेपर लीक कराते हैं.

किसी भी परीक्षा से कुछ समय पहले ही पेपर प्रिंट करा लिया जाता है, फिर इन पेपर्स को स्ट्रॉन्ग रूम में सुरक्षित रखा जाता है. स्ट्रॉन्ग रूम तक जब पेपर को लेकर जाया जाता है, तब भी पेपर के लीक होने की आशंका बनी रहती है. पेपर लीक होने की आशंका स्ट्रॉन्ग रूम से भी रहती है. वर्ष 2021 में राजस्थान में REET पेपर लीक हुआ था, जिसे लेकर खूब हल्ला हुआ. जांच में पता चला था कि REET का पेपर स्ट्रॉन्ग रूम से ही लीक किया गया था.

राजस्थान में सुरक्षाकर्मी ने ही लीक किया था पेपर

REET का पेपर एग्जाम से दो दिन पहले जयपुर के Education Complex के स्ट्रॉन्ग रूम से लीक किया गया था. स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा में तैनात राम कृपाल मीणा ने ही REET पेपर लीक किया था. राम कृपाल मीणा ने डील के तहत पेपर 1 करोड़ 25 लाख रुपये में मुख्य आरोपी उदाराम विश्नोई को बेचा था. 

इससे समझना मुश्किल नहीं कि स्ट्रॉन्ग रूम में भी पेपर सुरक्षित नहीं है और यहां से किसी भर्ती परीक्षा के पेपर के लीक होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. पांचवें सिस्टम के तहत स्ट्रॉन्ग रूम के बाद किसी भी पेपर को एग्जाम सेंटर तक पहुंचाया जाता है. इस दौरान पेपर की सुरक्षा में पुलिस भी तैनात रहती है. पेपर परीक्षा शुरू होने से कुछ घंटे पहले ही एग्जाम सेंटर पर पहुंचा दिए जाते हैं. यहां से भी पेपर लीक होने की आशंका बनी रहती है.

एग्जाम सेंटर पर परीक्षा से सिर्फ एक घंटे पहले पेपर सेंटर Superintendent के सामने बॉक्स से लिफाफे निकाले जाते हैं. लिफाफे पर सेंटर Superintendent और एग्जाम कराने वाली कंपनी के मैनेजर के साइन होते हैं. यहां एग्जाम कराने वाली कंपनी के स्टाफ और स्कूल संचालक की मिलीभगत से पेपर लीक हो सकते हैं. पेपर माफिया के लोग लिफाफा पहले से निकालकर पेपर लीक करते हैं और फिर फर्जी सील लगाकर लिफाफा बंद कर दिया जाता है.

सुप्रीम कोर्ट भी जता चुका है चिंता

पेपर लीक करने वाले शख्स को गिरोह के लोग मोटी रकम देते हैं, जैसा की राजस्थान के REET केस में हुआ. स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा में तैनात राम कृपाल मीणा को बदले में सवा करोड़ रुपये मिले थे. इतनी मोटी रकम के लिए कुछ लोगों का ईमान डगमाने में देर नहीं लगती और इसका फायदा पेपर लीक करने वाले उठाते हैं. माफिया जितनी रकम पेपर लीक के बदले चुकाते हैं, उससे कई गुना ज्यादा रकम वो खुद कमाते हैं. यही एक बड़ी वजह है कि पेपर लीक की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं और कुछ चुनिंदा लोगों की गिरफ्तारी के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है.

देश में पेपर लीक के बढ़ते मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी चिंता जाहिर कर चुका है, सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि पेपर लीक देश की शिक्षा प्रणाली को बर्बाद कर रहा है. ऐसे में जरूरत ना सिर्फ सख्त कानून बनाने की है, बल्कि सिस्टम में जो माफियाओं ने छेद किया है, उसे भरने और सिस्टम को दुरूस्त करने की है. ताकि देश के करोड़ों युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ ना हो.

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