DNA: अवैध कब्जे की जमीन पर 'मजहबी' स्थल क्यों बना? क्या फिक्स थी हल्द्वानी हिंसा
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DNA: अवैध कब्जे की जमीन पर 'मजहबी' स्थल क्यों बना? क्या फिक्स थी हल्द्वानी हिंसा

DNA on Uttarakhand Haldwani Violence: उत्तराखंड के हल्द्वानी में हुई हिंसा क्या पहले से फिक्स थी. क्या अवैध कब्जे की जमीन पर मजहबी स्थल बनाना सही होता है. ये सवाल इस हिंसा के बाद वायरल हो रहे हैं. 

 

DNA: अवैध कब्जे की जमीन पर 'मजहबी' स्थल क्यों बना? क्या फिक्स थी हल्द्वानी हिंसा

Zee News DNA on Uttarakhand Haldwani Violence Reasons: उत्तराखंड का शहर हल्द्वानी गुरुवार को हिंसा की आग में झुलस गया. इस हिंसा की वजह एक सरकारी जमीन पर धार्मिक प्रतिष्ठान का अवैध निर्माण था. इस हिंसा में 6 लोगों की मौत की खबर है, जबकि 100 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. गुरुवार को पूरे 6 घंटे तक पत्थरबाजी, नारेबाज़ी, भगदड़ और लाठीचार्ज का दौर चलता रहा, शाम होते होते, इस हिंसा ने आगजनी का रूप ले लिया था. कानून व्यवस्था कायम रखने के लिए नौबत ये आ गई कि उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने के आदेश दे दिए गए थे. इस आदेश से ही आप अंदाजा लग सकते हैं कि देवभूमि उत्तराखंड की शांति बचाने के लिए अधिकारियों को किस हद तक फैसले लेने पड़े.

आखिर किस वजह से भड़की हिंसा?

इस हिंसा का डरावना परिणाम, लोगों को नजर आ रहा है. गुरुवार रात जो पत्थरबाजी और आगजनी हुई, अब उसके निशान नजर आ रहे हैं. अब सवाल ये है कि उत्तराखंड जो आमतौर पर एक शांत राज्य माना जाता है, वहां अचानक इतने बड़े पैमाने पर हिंसा कैसे शुरू हो गई? ये भी आप जानना चाहते होंगे कि आखिर वो कौन सा मामला था जिसने ये हालात पैदा कर दिए. 

दरअसल कल नगर निगम की टीम हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके में एक सरकारी जमीन पर कब्जा छुड़ाने पहुंची थी. पिछले काफी समय से हल्द्वानी में एक मुहिम के तहत ऐसा किया जा रहा है. लेकिन बनभूलपुरा में सरकारी जमीन पर कब्जा करके जो इमारत बनाई गई थी वो कोई आम इमारत नहीं थी. बताया जाता है कि यहां पर मस्जिद, मज़ार और मदरसा बना लिया गया था.

सरकारी जमीन पर बना दी इमारत

यानी सरकारी जमीन पर कब्जा करके, यहां के कुछ लोगों ने धार्मिक इमारत बना दी थी. शायद निर्माण करवाने वाले लोगों को लगा हो, कि सरकारी जमीन पर ऐसा करने पर कोई पूछने नहीं आएगा और आगे चलकर इस कब्जे को हटाना मुश्किल हो जाएगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. जिस जगह पर ये इमारत बनाई गई है, इस जगह पर पहले इलाके के मुस्लिम नमाज पढ़ने आते थे, फिर लोगों की संख्या बढ़ती गई और धीरे-धीरे ये सरकारी जमीन जो नमाज पढ़ने के काम में लाई जा रही थी, उस पर धार्मिक इमारत बना दी गई.

अगर हम आपको इस हिंसा की पूरी कहानी समझाएं, तो वो कुछ इस तरह से होगी कि..

बनभूलपुरा के कुछ लोगों की नजर, खाली सरकारी मैदान पर पड़ी.

इस जमीन पर लोगों का जमावड़ा बढ़ा, जो यहां पर नमाज पढ़ने आने लगे.

इस जमीन को 'नमाज स्थल' कहकर पुकारा जाने लगा.

अवैध रूप से नमाज स्थल बता दी गई जमीन पर धार्मिक इमारत बना दी गई.

जब अवैध निर्माण तोड़ने के लिए नगर निगम की टीम पहुंची तो दंगाइयों ने हिंसा शुरू कर दी.

कार्रवाई से पहले भेजा था नोटिस

पिछले कुछ समय से नगर निगम इस इमारत को हटाने के लेकर लगातार नोटिस जारी कर रहा था. वो लगातार इस तथाकथित मस्जिद, मज़ार या मदरसा के रखरखाव करने वालों को इसे हटाने को लेकर कानूनी नोटिस भी भेजा रहा था. हमारे पास नगर निगम के नोटिस की कॉपी है.

ये नोटिस 30 जनवरी 2024 को जारी किया गया था.

ये नोटिस मलिक का बगीचा नाम के इलाके के अब्दुल मलिक नाम के व्यक्ति को जारी किया गया था.

उसमें साफ़ शब्दों में लिखा गया है कि बिना अनुमति के नमाज़ का भवन और मदरसा भवन का अवैध संचालन किया जा रहा है.

इन्हें कहा गया था कि 1 फरवरी 2024 तक सरकारी ज़मीन खाली कर दी जाए, नहीं तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी.

लोगों को सरकार के खिलाफ भड़काया

ये हिंसा जिस इमारत को तोड़ने को लेकर शुरू हुई, वो अवैध थी. वो कब्जा करके बनाई गई धार्मिक इमारत थी, जिसका टूटना तय था. जिन लोगों ने ये अवैध निर्माण किया था, उन्हें भी मालूम होगा कि वो लोग मस्जिद जैसी पवित्र जगह को, अवैध रूप से कब्जा करके बना रहे हैं. बावजूद इसके उन लोगों ने ऐसा किया. इससे पता चलता है कि जिन लोगों ने ये अवैध निर्माण बनाया था, उन्हें भी मालूम था कि ऐसा कुछ होगा. उन्हें ये भी मालूम था कि 1 फरवरी तक उन्हें ये जमीन खाली करनी ही होगी. बावजूद इसके उन्होंने इसे खाली नहीं किया, बल्कि आसपास के लोगों को नगर निगम और कानून व्यवस्था के खिलाफ भड़काया.

इस धार्मिक इमारत का संचालन करने वालों ने इस नोटिस का कोई सार्थक जवाब नहीं दिया. इस नोटिस के जवाब में संचालकों ने कोई कागज़ भी नहीं दिखाए, वो साबित नहीं कर पाए, कि ये जमीन उन्हें किसी से दान में मिली है. वो यूं ही लोगों में भ्रम फैलाते रहे कि ये जगह एक मस्जिद या मदरसा है. जबकि आपको हैरानी होगी कि ये जानकर कि उत्तराखंड के मदरसा बोर्ड में ये मदरसा रजिस्टर्ड ही नहीं है. इस अवैध इमारत को मदरसा भी बताया जा रहा है, जबकि मदरसा भी अवैध रूप से ही चल रहा था.

पुलिसकर्मियों पर फेंके गए पेट्रोल बम

1 फरवरी को ज़मीन खाली करने के नोटिस का पालन जब नहीं किया गया, तो उसके पूरे 7 दिन बाद 8 फरवरी को नगर निगम ने पूरी योजना बनाकर, इस अवैध निर्माण को हटाने का काम शुरू किय. लेकिन उन्हें अंदाजा नहीं था कि उनपर पथराव करने की योजना पहले से ही बना ली गई थी. स्थिति ये थी कि जब ये कार्रवाई हुई तो आसपास के घरों से पथराव किया गया, लोगों ने नगर निगम और पुलिस की टीम पर पत्थर फेंके. सिर्फ यही नहीं, पुलिसकर्मियों पर पेट्रोल बम भी फेंके गए. प्रशासन को भी अंदाजा नहीं था कि उन लोगों पर हमला सुनियोजित तरीके से किया जाएगा. ऐसा लग रहा था जैसे लोगों ने पहले से ही पत्थर या पेट्रोल बम जैसा सामान इकट्ठा करके रखा था.

यहां के लोगों का कहना है कि ये इमारत कई सालों से मौजूद थी. कुछ तो ये भी कह रहे हैं कि इस इमारत को ही जानबूझकर अवैध बताकर हमला किया गया. स्थानीय व्यक्ति मोहम्मद रशीद का दावा है कि 15 साल पुरानी मस्जिद मजार थी लेकिन तोड़ दी गई. जब बन रही थी, तब कोई नहीं आया लेकिन इस बार सीधा तोड़ दिया गया. 

क्या सरकारी जमीन पर कब्जा सही है?

अवैध निर्माण को हटाने को लेकर जब भी झड़प या हिंसा की खबरें आती हैं, तो मासूम लोगों का एक सवाल होता है कि जब सरकारी जमीन पर कब्जा किया जा रहा है, तो तब कोई क्यों नहीं आया. ये सही है कि प्रशासन को अलर्ट होना चाहिए लेकिन ये हमें खुद से पूछना चाहिए कि क्या इस लॉजिक से किसी सरकारी जमीन या किसी अन्य व्यक्ति की जमीन पर कब्जा करना जायज़ हो जाता है?

उपद्रवियों का भी लॉजिक थोड़ा अलग होता है, जैसे कि सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा सही है. अवैध कब्जे को छुड़वाना गलत. पत्थरबाजी करना अहिंसा होता है और पुलिस का लाठीचार्ज हिंसा. महिला पुलिसकर्मियों पर हमला अहिंसा और पुलिस के लाठीचार्ज में महिला पत्थरबाजों का पिटना हिंसा. 

पुलिस के लाठीचार्ज को गलत बताने वाले अक्सर ये भूल जाते हैं, कि पत्थरबाजी भी सही नहीं है. अगर अवैध जमीन पर कब्जा करके कोई इमारत बनी है, और कानूनी रूप से उसे हटाने की तैयारी चल रही है, तो इसका जवाब पत्थरबाजी नहीं है. कानूनी रूप से भी ये लड़ाई लड़ी जा सकती है. 

उपद्रवियों ने छतों से किया पथराव

जिस वक्त हल्द्वानी नगर निगम की टीम अवैध मजहबी स्थल को हटा रही थी. उस वक्त पुलिस फोर्स भी मौजूद थी. उपद्रवियों ने घरों की छतों से पत्थराव फेंके जिसमें नीचे मौजूद पुलिस कांस्टेबल मनीष बिष्ट की नाक पर पत्थर आकर लगा. मनीष ने बताया कि उपद्रवियों ने कैसे उनकी जान लेने की कोशिश की.

हल्द्वानी के बनभूलपुरा में तनाव है. कर्फ्यू लगा है. आज DGP हल्द्वानी पहुंचे. डीजीपी ने हिंसा के दोषियों को कह दिया है. कहीं भी छिप लें. किसी को नहीं छोड़ा जाएगा. हल्द्वानी में अब स्थिति कंट्रोल में है, लेकिन यहां की फिजा में अब भी तनाव है. जिस तरह से उपद्रवियों ने हिंसा को अंजाम दिया है, उससे ये साफ है कि इसके पीछे एक साजिश थी. जिसकी पड़ताल में अब एजेंसियां लगी हुई है.

तौकीर रजा ने दी मारने की धमकी

उत्तराखंड के हल्द्वानी में हुई हिंसा का हाल आपने जाना. इसके बावजूद तौकीर रज़ा जैसे कुछ लोग सरेआम धमकी दे रहे है और कह रहे हैं कि अगर कोई हम पर हमलावर करेगा तो उसे जान से मार देंगे. तौकीर रज़ा ने कहा कि अब बुलडोजर को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. दरअसल आज बरेली में भड़काऊ मौलाना ने हल्द्वानी हिंसा और ज्ञानवापी पर कोर्ट के फैसले के खिलाफ विरोध का ऐलान किया था. इसके बाद हजारों की भीड़ सड़कों पर उतर आई. इस दौरान तौकीर रजा ने आपत्तिजनक टिप्पणी भी की.  

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