कर्नाटक चुनाव 2018 : कांग्रेस, कर्नाटक और काम
Advertisement

कर्नाटक चुनाव 2018 : कांग्रेस, कर्नाटक और काम

कर्नाटक में पिछले 32 सालों से मतदाताओं ने किसी भी पार्टी को दूसरा मौका नहीं दिया है. 1985 से यहां की जनता ने छह सरकारों को बाहर का रास्ता दिखाया है.

कर्नाटक चुनाव 2018 : कांग्रेस, कर्नाटक और काम

कर्नाटक चुनाव को 2019 के बड़े मुकाबले की नेट प्रैक्टिस के तौर पर तो सभी राजनीतिक पंडित देख रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही इसी साल होने वाले मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव भी दोनों पार्टियों के लिए अहमियत रखते हैं. खासकर कांग्रेस के लिए माहौल बनेगा या बिगड़ेगा, ये भी कर्नाटक से काफी हद तक तय होगा. कर्नाटक में पिछले 32 सालों से मतदाताओं ने किसी भी पार्टी को दूसरा मौका नहीं दिया है. 1985 से यहां की जनता ने छह सरकारों को बाहर का रास्ता दिखाया है. जबकि इनमें से कुछ ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया था. ऐसे में सिद्दारमैया की अगुवाई वाली सरकार के लिए चुनौती और भी बढ़ जाती है. लेकिन वर्तमान की कांग्रेस सरकार के साथ एक अहम बात है जो उनके मजबूत होने का कारण है. मुख्यमंत्री सिद्दारमैया की बेदाग छवि और दलितों के लिए उनकी कुछ अहम योजनाएं. जिसने कांग्रेस के हौसले बुलंद किए हैं. यही वजह रही कि इस बार के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष की बजाए सिद्दारमैया रहे. और वो कई मायनों में कड़ी टक्कर भी देते नजर आए. कर्नाटक चुनाव के पार्टीवार परिणाम देखने के लिए क्लिक करें- ताजा रुझान

सिद्दारमैया की छवि
दो बार कर्नाटक के उपमुख्‍यमंत्री रह चुके सिद्दारमैया ने मई 2013 को प्रदेश के 22वें मुख्‍यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी. किसान परिवार से संबंध रखने वाले सिद्दारमैया के लिए यहां तक का सफर काफी मुश्किलों भरा रहा है. शिक्षा से लेकर राजनीति तक उन्होंने हर जगह बहुत संघर्ष करके सफलता हासिल की थी. उनकी छवि एक ईमानदार और जमीन से जुडे नेता की है. अपने पिछले कार्यकाल में उन पर कोई भी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा है, वहीं भाजपा के मुख्यमंत्री के दावेदार येदियुरप्पा बड़े खनन घोटाले का सामना कर चुके हैं.

देखें- कर्नाटक चुनाव में प्रमुख चेहरों का हाल

सिद्दारमैया का कन्नड़ गौरव कार्ड
सिद्धारमैया ने बीजेपी की चाल उनके साथ ही चली और 'कन्नड़ गौरव' का कार्ड खेला.
भाजपा ने जिस तरह गुजरात चुनाव में कांग्रेस पर गुजरातियों के अपमान का आरोप गढ़ा था, उसी तरह सिद्दारमैया ने खुद को कन्नड़ गौरव का नेता बनाने की कोशिश की, वहीं भाजपा पर अपनी संस्कृति थोपने का आरोप लगाया. झंडे के मामले से लेकर कन्नड़ भाषा तक सभी जगह सिद्धारमैया आक्रामक नज़र आए. साथ ही उन्होंने लिंगायतों को हिंदू धर्म से अलग अल्पसंख्यक का दर्जा देने की राजनीति छोड़कर चुनाव का रुख बदल दिया.

अंडा और दूध बना कांग्रेस की ताकत
कर्नाटक के मधुगिरी निर्वाचऩ क्षेत्र में स्थित आंगनवाड़ी वहां की महिलाओं और बच्चों के लिए राहत लेकर आया है. सरकार की मथरू पूर्ना स्कीम के तहत यह आंगनवाड़ी गरीबों को खाना मुहैया करवा रही है. बताया जाता है कि ‘कर्नाटक कल्याण मॉडल’ के तहत आहार और खाद्य सुरक्षा पर खास जोर दिया गया. गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को चावल और दाल उपलब्ध करवाने के लिए अन्ना भाग्य नाम के अहम कार्यक्रम का भी संचालन किया गया है.

देखें- कर्नाटक चुनाव में वोट शेयर

वैसे दक्षिण के राज्यो में शिशु मृत्यु दर औऱ मातृ मृत्यु दर में कर्नाटक के आंकड़े सबसे खराब तस्वीर पेश करते हैं. यहां शिशु मृत्यु दर (24 प्रति 100 जीवित जन्मे बच्चे) और मातृ मृत्यु दर (133 मृत्यु प्रति एक लाख जन्म देते हुए जीवित मां) है. ऐसे में मोट्टे भाग्य और क्षीर भाग्य स्कीम के तहत बच्चों को हफ्ते में दो दिन अंडे और हर दिन दूध का ग्लास दिया जाता है. कुपोषण से निपटने के लिए सिद्धारमैया सरकार ने इस रास्ते पर चलना शुरू किया. सरकार का दावा है कि मथरू पूर्णा कार्यक्रम से 8.3 लाख महिलाओं को फायदा पहुंचा है. वैसे मथरू पूर्णा कार्यक्रम की शुरुआत को ज्यादा वक्त नहीं हुआ है. फरवरी 2017 में चार पायलेट स्कीम के सात इसकी शुरुआत हुई थी और अक्टूबर तक ये पूरे राज्य में संचालित की जाने लगी थी. राज्य सरकार की मानव विकास रिपोर्ट 2014 के मुताबिक दक्षिण कर्नाटक की तहसीलें, स्वास्थ्य के मामले में बहुत पीछे है.

लिंगायत का समर्थन
लिंगायतों के आंदोलन का साथ देकर सिद्दारमैया ने एक अहम वोटबैंक को कांग्रेस के पक्ष में करने की पहल की थी. खास बात ये रही कि पिछले साल जून से चल रहे इस आंदोलन में भाजपा और आरएसएस जहां पीछे रह गए थे वहीं सिद्दारमैया ने इसे एक मौके की तरह लेते हुए तुरंत लपक लिया था. ठीक चुनाव के वक्त लिंगायतों की बहुत पुरानी मांग के साथ खड़े होकर और उसे राजनीतिक प्रशासनिकल समर्थन देकर कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने पूरी राजनीति को प्रभावित कर दिया.

हालांकि अलग-अलग रिपोर्टों में कहा गया कि स्कीम के अच्छा होने के बावजूद महिलाएं वहां के कांग्रेस कार्यकर्ताओं के रवैये से बहुत खुश नहीं थी. उनका कहना था कि सिर्फ कांग्रेस समर्थकों की ही बात सुनी जाती है, जहां आंगनवाड़ी में खाना तो मुहैया करवाया गया लेकिन बिजली के बिल में कोई राहत नहीं मिली.

सिद्धारमैया का दलित मुख्यमंत्री को समर्थन
सिद्धारमैया ने जिस तरह से दलित मुख्यमंत्री का समर्थन करना और इसे अपना आखिरी चुनाव बताना कहीं ना कहीं ये जाहिर करता है कि उन्हें अपनी जीत को लेकर शक रहा है. हालांकि उन्होंने इसे पूरी तरह से पार्टी का फैसला बताया, लेकिन साथ ही वो दलित मुख्यमंत्री का समर्थन करते नज़र आए जो उनकी दूरंदेशी दिखाता है.

Trending news