एआई की आवाज में होने वाले छोटे-छोटे परिवर्तनों को पहचानने की क्षमता ने पार्किंसंस मरीजों के लिए एक नई उम्मीद पैदा कर दी है.
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हाल ही में एक शोध में यह बात सामने आई है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित एल्गोरिदम व्यक्ति की आवाज में छोटे- छोटे परिवर्तनों को पहचानने में सक्षम है. इस तकनीक का उपयोग पार्किंसंस रोग का जल्द पता लगाने में भी किया जा सकता है. यह न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारी का पता लगाने का एक नया और प्रभावी तरीका साबित हो सकता है.
पार्किंसंस रोग, जो वर्तमान में 8.5 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित करता है, का पता लगाना पारंपरिक तरीकों से काफी जटिल और धीमा होता है, जिससे शुरुआती पहचान में अक्सर देर हो जाती है. लेकिन अब एआई की मदद से आवाज में बदलाव के आधार पर इस रोग का प्रारंभिक चरण में पता लगाया जा सकता है, जिससे इलाज और रोगी की स्थिति में सुधार हो सकता है.
पार्किंसंस का लक्षण
बगदाद में मिडिल टेक्निकल यूनिवर्सिटी के मेडिकल इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियर अली अल-नाजी ने कहा, आवाज में बदलाव पार्किंसंस रोग का एक प्रमुख संकेत है. जब मरीज की आवाज में बदलाव होता है तो यह बीमारी के शुरुआती चरण का संकेत हो सकता है. यह बदलाव तब होता है जब मांसपेशियों पर नियंत्रण कम हो जाता है, जिसके कारण बोलने में परेशानी होती है और आवाज में लय का बदलाव आ जाता है.
पार्किंसंस रोग का निदान
पारंपरिक तरीके से पार्किंसंस रोग का पता लगाने में समय लगता है और यह अक्सर धीमे होते हैं. शोधकर्ताओं ने इस बात को स्वीकार किया कि अगर बीमारी का शुरुआती चरण में पता लगाया जाए तो इसका इलाज अधिक प्रभावी हो सकता है और मरीज के जीवन में सुधार हो सकता है. एआई मॉडल्स इस प्रक्रिया को तेज और प्रभावी बना सकते हैं. अल-नाजी ने बताया, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस न केवल प्रारंभिक पहचान में मदद कर सकती है, बल्कि यह रोगी की निगरानी में भी सहायक हो सकती है.
पार्किंसंस रोग के तेजी से बढ़ते मामले
पार्किंसंस रोग अब दुनिया भर में तेजी से फैल रहा है. वर्तमान में यह 8.5 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित करता है और पिछले 25 वर्षों में इसकी घटना दोगुनी हो गई है. प्रत्येक वर्ष करीब 330,000 मौतें पार्किंसंस के कारण होती हैं. हालांकि इसका इलाज अभी तक संभव नहीं है, लेकिन समय पर पहचान और सही उपचार से मरीजों की स्थिति में काफी सुधार हो सकता है.
-एजेंसी-