नई दिल्‍ली: लोकसभा चुनाव 2019 के छठवें चरण का मतदान पूरी तरह से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर केंद्रित हो चुका है. राजीव गांधी को लेकर हुए इस विवाद की शुरूआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक जनसभा से हुआ. इस जनसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले राजीव गांधी पर तल्‍ख टिप्‍पणी की, जिसके बाद, कांग्रेस के लगभग सभी नेताओं ने बीजेपी के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया. इस चुनावी तल्‍खी के बीच आज हम 1991 के लोकसभा चुनाव का जिक्र कर रहे हैं, जिसके प्रचार अभियान के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्‍या कर दी गई थी. राजीव गांधी की हत्‍या के बाद देश में सहानुभूति की लहर चली और कांग्रेस एक बार फिर सत्‍ता के गलियारों तक पहुंचने में कामयाब रही और पामुलापति वेंकट नरसिंह राव (पीवी नरसिंह राव) को देश का दसवां प्रधानमंत्री बनाया गया


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वीपी सिंह की बगावत के बाद मुश्किल में आई थी कांग्रेस 
1984 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्‍या के बाद नौंवी लोकसभा का चुनाव कांग्रेस ने राजीव गांधी के नेतृत्‍व में लड़ा था. देश में इंदिरा की हत्‍या के बाद फैली शोक की लहर का सीधा फायदा कांग्रेस को मिला. इस चुनाव में कांग्रेस ने 404 सीटों पर अभूतपूर्व विजय दर्ज की थी. राजीव गांधी के नेतृत्‍व वाली इस सरकार को कुछ साल ही बीते थे, तभी विश्‍वनाथ प्रताप सिंह (वीपी सिंह) ने राजीव के खिलाफ बगावत छेड दी थी. इसका नतीजा यह हुआ कि वीपी सिंह को न केवल मंत्रिमंडल से बाहर किया गया, बल्कि कांग्रेस से भी बाहर का रास्‍ता दिखा दिया गया. जिसके बाद, वीपी सिंह ने नई पार्टी का गठन किया और 1989 के चुनाव में राजीव के खिलाफ चुनावी मैदान में कूद पड़े. वीपी सिंह को बीजेपी और लेफ्ट का सहारा मिला. इसी सहारे की मदद से वीपी सिंह 1989 का चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बनने में कामयाब रहे.


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इस तरह तय हुई 1991 के लोकसभा चुनाव की भूमिका
1989 में विश्‍वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्‍व में नेशनल फ्रंट की सरकार बनने के कुछ महीनों बाद बीजेपी ने राम मंदिर पर देशव्‍यापी अभियान शुरू कर दिया था. इसी अभियान के तहत बीजेपी के वरिष्‍ठ नेता लालकृष्‍ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्‍या के बीच रथ यात्रा करने का फैसला किया. बीजेपी के इस फैसले से सरकार के तमाम घटक दल नाराज थे. परिणामस्‍वरूप, लाल कृष्‍ण आडवाणी को बिहार में गिरफ्तार कर लिया है. इस गिरफ्तारी से नाराज बीजेपी ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और विश्‍वनाथ प्रताप सिंह की सरकार गिर गई. विश्‍वनाथ प्रताप सिंह की सरकार गिरते ही कांग्रेस को सत्‍ता में वापसी का रास्‍ता नजर आने लगा. राजनीतिक कूटनीति के तहत कांग्रेस ने पहले चंद्रशेखर को समर्थन देकर प्रधानमंत्री बनाया, फिर कुछ महीनों बाद समर्थन वापस लेकर देश में मध्‍यवधि चुनाव का रास्‍ता साफ कर दिया.


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मंडल-मंदिर और सहानुभुति की लहर के बीच हुआ चुनाव
1991 के लोकसभा चुनाव को तीन चरणों में कराया जाना था. पहले चरण का चुनाव 20 मई को था, जबकि 12 जून और 15 जून को तीसरे चरण का चुनाव होना था. लोकसभा चुनाव 1991 के पहले चरण का चुनाव मंदिर और मंडल के मुद्दे पर हुआ. दरअसल, 1990 में बीजेपी के लाल कृष्‍ण आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद अयोध्‍या में राम मंदिर के मुद्दे ने जोर पकड़ लिया था. वहीं, अपने शासनकाल के दौरान वीपी सिंह ने मंडल कमीशन की सिफारिशों के तहत अन्य पिछड़ी जातियों को सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान कर दिया था. जिसको लेकर पूरे देश में व्‍यापक स्‍तर पर हिंसा हुई थी. पहले चरण के मतदान के बाद, 21 मई को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की हत्‍या तमिलनाड़ु के श्रीपेरंबदूर में कर दी गई. जिसके बाद, पूरे देश में शोक की लहर दौड गई और दो फेज का चुनाव सहानुभूति की लहर पर हुआ.   


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कांग्रेस के हक में आया 1991 के लोकसभा चुनाव का फैसला 
तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में राजीव गांधी की हत्‍या के बाद पूरे देश में सहानुभूति की लहर दौड़ गई. जिसका सीधा फायदा चुनाव में कांग्रेस को मिला. 1991 के इस चुनाव में कांग्रेस ने 487 सीटों पर अपने उम्‍मीदवार खड़े किए थे. जिसमें 232 उम्‍मीदवार चुनाव जीतकर संसद पहुंचने में सफल रहे. हालांकि, इस चुनाव में कांग्रेस के 60 उम्‍मीदवार ऐसे भी थे, जो अपनी जमानत भी नहीं बचा सके. 1991 के नौवें लोकसभा चुनाव में 120 सीट जीतकर बीजेपी दूसरे सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई. इसके अलावा, इस चुनाव में सीपीआई 14, सीपीएम 35, जनता दल 59 और जनता पार्टी 5 सीटें जीतने में कामयाब रहे. वहीं दक्षिण की एडीएमके ने इस चुनाव में 11 संसदीय सीटों पर अपने उम्‍मीदवार उतारे. जिसमें सभी उम्‍मीदवार चुनाव जीतकर संसद पहुंचने में कामयाब रहे. 


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पीवी नरसिंह राव ने ली देश के दसवें प्रधानमंत्री के तौर शपथ
1991 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 232 सीटें जीतकर देश में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई. 21 जून को पी. वी. नरसिंह राव ने देश के दसवें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की. चूंकि पीवी नरसिंह राव ने 1991 का चुनाव नहीं लड़ा था, लिहाजा प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्‍होंने आंध्र प्रदेश की नांदयाल सीट से उपचुनाव लड़ा. इस चुनाव में पीवी नरसिंह राव ने करीब पौने छह लाख वोटों से जीत दर्ज की. प्रधानमंत्री बनने से पहले पीवी नरसिंह राव आंध्र प्रदेश की कांग्रेस सरकार में कई महत्‍वपूर्ण जिम्‍मेदारी संभाल चुके थे. वे आंध्र प्रदेश सरकार में 1962 से 1964 तक कानून एवं सूचना मंत्री रहे. इसके अलावा, 1964 से 1967 तक कानून एवं विधि मंत्री, 1967 में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री और 1968 से 1971 तक शिक्षा मंत्री के पर पर भी कार्य किया. 1971 से 1973 के बीच उन्‍होंने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर भी कार्य किया था. पीवी नरसिंह राव ने पहली बार 1977 में लोकसभा का चुनाव जीता था. 


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