चुनावनामा: BJP के उदय के साथ 34 महीनों में बिखर गई देश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार
लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) में एक बार फिर देश का विपक्ष एक जुट होकर चुनाव लड़ रहा है. कुछ इसी तरह 1977 के लोकसभा चुनाव में भी विपक्षी दलों ने गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में गठबंधन चुनाव जीतने में कामयाब रहा और देश में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन किया. यह बात दीगर है कि गठबंधन की यह सरकार आपसी मतभेद के चलते महज 34 महीनों में ही गिर गई थी.
नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) में एक बार फिर विपक्षी पार्टियों का गठबंधन सत्तारूढ़ दल के सामने है. देश में कुछ ऐसा ही माहौल 1977 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी था, जब विपक्षी दलों ने सत्तारूढ़ दल के खिलाफ एक जुट होकर चुनाव लड़ा था. इन दोनों चुनाव में अंतर सिर्फ इतना ही है कि तब इंदिरा की कांग्रेस के खिलाफ सभी विपक्षी दल एकजुट हुए थे और अब सत्तारूढ़ बीजेपी के खिलाफ सभी विपक्षी दल एक जुट दिख रहे हैं. आपातकाल के ठीक बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी न केवल कांग्रेस को शिकस्त देने में कामयाब रही थी, बल्कि 24 मार्च 1977 को देश में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ था. हालांकि यह बात दीगर है कि इस सरकार ने महज 34 महीनों में दम तोड़ दिया और देश को एक बार फिर आम चुनाव का सामना करना पड़ा. चुनावनामा में आज आपको बताते हैं कि वो कौन सी वजह थी, जिसके चलते देश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार ने बेहद अल्प समय में सत्ता से दूर हो गई.
चुनाव में जीत के साथ प्रधानमंत्री पद को लेकर शुरू हुई तकरार
1977 के लोकसभा चुनाव में 295 सीटों पर जीत हासिल कर जनता पार्टी ने सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत हासिल कर लिया था. चुनाव में जीत के साथ पार्टी में इस बात को लेकर बहस शुरू हो गई थी कि प्रधानमंत्री कौन बनेगा. चूंकि यह चुनाव भारतीय लोकदल के चुनाव चिन्ह 'हलधर किसान' पर लड़ा गया था, लिहाजा पार्टी के अध्यक्ष चौधरी चरण सिंह ने प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी पेश कर दी. चौधरी चरण सिंह के अलावा प्रधानमंत्री पद के लिए दो दावेदारों में मोरारजी देसाई और बाबू जगजीवन राम का नाम भी शामिल था. आखिर में, प्रधानमंत्री का चुनाव करने की जिम्मेदारी जयप्रकाश नारायण को सौंपी गई. बाबू जगजीवन राम की तरह जय प्रकाश नारायण भी बिहार के बड़े नेता में एक थे. लंबी जद्दोजहद के बाद बाबू जगजीवन राम और कृपलानी के बीच प्रधानमंत्री पद के लिए मोरार जी देसाई के नाम पर सहमति बनी. जिसके बाद, देश के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बनने का अवसर मोरारजी देसाई को मिला.
28 महीनों में ही गिर गई मोरार जी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार
मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली पहली गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन 24 मार्च 1977 को हुआ. इस सरकार में चौधरी चरण सिंह को गृह, बाबू जगजीवन राम को रक्षा, अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश, मधु दंडवते को रेल, जार्ज फर्नांडिस को उद्योग और राजनारायण को स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई. मोरारजी देसाई की यह सरकार 28 जुलाई 1979 तक चली. अतीत के पन्नों को पलते तो पता चलता है कि जनता पार्टी की सरकार जिन मुद्दों पर जीत कर सत्ता तक पहुंची थी, वे मुद्दे जस के तस बने रहे. उस दौर में जनता की सबसे बड़ी नाराजगी संजय गांधी के 'नसबंदी अभियान' को लेकर थी. मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री बनने के बाद 'नसबंदी अभियान' का नाम बदलकर 'परिवार नियोजन' कर दिया गया. समय के साथ जनता पार्टी पूरी तरह से तीन गुटों में बंट गई. पार्टी में गुटबाजी इस कदर बढ़ी कि मोरारजी ने अपने मंत्रिमंडल से गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह और स्वास्थ्य मंत्री राज नारायण को बाहर कर दिया. इसके बाद, पार्टी में हुई बगावत के चलते 15 जुलाई 1979 को मोरार जी देसाई ने प्रधानमंत्री पर से इस्तीफा दे दिया.
इंदिरा की मदद से चौधरी चरण सिंह बने देश के अगले प्रधानमंत्री
1977 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली से चुनाव हार चुकी इंदिरा गांधी ने कर्नाटक के रास्ते संसद में पहुंचने का फैसला किया. बीते चुनाव के नतीजों को देखने के बाद इंदिरा गांधी को इस बात का अंदाजा हो गया था कि जनता पार्टी का दक्षिण भारत में कोई असर नहीं था. लिहाजा, उन्होंने कर्नाटक के रास्ते संसद में वापसी का मन बना लिया. इंदिरा गांधी की इच्छा को देखते हुए चिकमंगलूर संसदीय सीट से कांग्रेस के सांसद डीबी चन्द्रे गाव्डा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. जिसके बाद, इस सीट पर उपचुनाव हुए. इस उपचुनाव में कांग्रेस की तरफ से इंदिरा गांधी को उम्मीदवार बनाया गया. इंदिरा गांधी चिकमंगलूर का उपचुनाव करीब 70 हजार वोटों से जीत गईं. इधर, मोरारजी देसाई की सरकार अल्पमत में आने के बाद इंदिरा ने सियासी दाव खेला. उन्होंने चौधरी चरण सिंह को समर्थन दे दिया. चौधरी चरण सिंह ने 28 जुलाई 1979 को बतौर प्रधानमंत्री शपथ ग्रहण की. कांग्रेस की मदद से चौधरी चरण सिंह की सरकार 14 जनवरी 1980 तक चली. जनवरी 1980 में इंदिरा गांधी के समर्थन लेने की वजह से चौधरी चरण सिंह की सरकार गिर गई थी.
जनता पार्टी टूटने के बाद 1980 में हुआ भारतीय जनता पार्टी का उदय
भारतीय जनता पार्टी को जनसंघ का दूसरा रूप कहा जा सकता है. दरअसल, भारतीय जनसंघ की स्थापना श्यामाचरण मुखर्जी ने 1951 में किया था. भारतीय जनसंघ की राजनीति शुरू से कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ रही है. आपातकाल के बाद, जब इंदिरा को सत्ता से बेदखल करने के लिए विपक्षी दलों ने गठबंधन कर जनता पार्टी का गठन किया. जनता पार्टी में शामिल होने वाली पार्टियों में भारतीय जनसंघ भी एक था. जनता पार्टी की सरकार में जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री बनाया गया था. 1980 में जनता पार्टी के टूटने के बाद जनसंघ की मूल भावनाओं के तहत भारतीय जनता पार्टी का गठन किया गया. जिसके बाद, अटल विहारी बाजपेयी को भारतीय जनता पार्टी का पहला अध्यक्ष बनाया गया था.
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