लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी गुजरात की 26 में से 26 सीटें हासिल कर 2014 की तर्ज पर करिश्मा दोहराने की कोशिश में है. बीजेपी की यह कोशिश कितनी सफल होती है, इसका फैसला 23 मई को मतों की गणना के बाद ही हो सकेगा.
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नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 के लिए आज 14 राज्यों की 115 सीटों पर मतदान जारी है. 14 राज्यों की जिन 115 सीटों पर आज मतदान हो रहा है, उसमें गुजरात की 26 सीटें भी शामिल हैं. चूंकि गुजरात सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से जुड़ा हुआ है, लिहाजा पूरे देश की निगाहें खासतौर पर गुजरात में हो रहे मतदान की तरफ है. 2019 के इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी यह मानकर चल रही है कि 2014 के लोकसभा चुनाव की तरह उसे इस बार भी गुजरात से बड़ी जीत हासिल होगी, वहीं बीते विधानसभा चुनाव की सफलता को देखते हुए इस बार कांग्रेस भी गुजरात से अच्छी खबर की आस लगाए हुए हैं. हालांकि, इस चुनाव में किसके खाते में खुशी आती और किसके खाते में गम, इसका फैसला 23 मई को लोकसभा चुनाव 2019 के अंतिम नतीजे सामने आने के बाद ही हो सकेगा.
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इन एक दर्जन इलाकों में कांग्रेस ने झोंकी अपनी पूरी ताकत
लोकसभा चुनाव 2014 में गुजरात की सभी 26 सीटें बीजेपी के खाते में गईं थीं. बीजेपी एक बार फिर इन नतीजों को गुजरात में दोहराना चाहती है. वहीं, 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 77 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी. बीते विधानसभा की जीत को कायम रखने के लिए कांग्रेस ने गुजरात की करीब एक दर्जन क्षेत्रों का चिन्हित किया है, जहां पर वह बीजेपी को कड़ी टक्कर देकर जीत हासिल कर सकती है. कांग्रेस ने जिन एक दर्जन क्षेत्रों को चिन्हित किया है, उसमें जूनागढ़, अमरेली, आनंद, बारडोली, बलसाड, खंभात, सुरेंद्र नगर, छोटा उदयपुर, खेडा, पाटन, सावरकांठा और बनासकांठा शामिल हैं. वहीं, इन क्षेत्रों में कांग्रेस का गणित बिगाड़ने के लिए बीजेपी ने भी राजनैतिक और वैचारिक घेरेबंदी मजबूत कर दी है. जिससे, उनके पाले का कोई भी मतदाता किसी भी सूरत में कांग्रेस के पाले में न जा पाए.
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किसानों की नाराजगी कहीं बिगाड़ न दे चुनावी समीकरण
चुनाव विशेषज्ञ विभास मिश्र के अनुसार, गुजरात में किसानों की नाराजगी इस बार चुनावी समीकरण को बिगाड़ सकती है. गुजरात में सौराष्ट्र का किसान इस समय बेहद खफा है. उनकी इस नाराजगी की मूल वजह फसल बीमा और फसल की सही कीमत नहीं मिलना है. उन्होंने बताया कि गुजरात में अपेक्षा से कम बारिश का सीधा असर कपास की खेती पर पड़ा है. किसानों की अपेक्षा थी कि फसल में हुए नुकसान के एवज में उन्हें करीब 60 फीसदी तक फसल बीमा मिलेगा. लेकिन, फसल बीमा के जरिए 17 से 41 फीसदी के बीच मुआवजा दिया गया. वहीं मूंगफली की खरीद में देरी और सही कीमत न मिलने से भी किसान नाराज दिख रहे हैं. विभास मिश्र ने बताया कि गुजरात में किसानों की यह नाराजगी नतीजे तो नहीं बदल पाएंगे, पर हार और जीत का अंतर जरूर कम कर कसते हैं.
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क्या पाटीदार निभाएंगे इस चुनाव में निर्णायक भूमिका?
चुनाव विशेषज्ञ विभास मिश्र के अनुसार, 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में पाटीदारों ने अहम भूमिका अदा की थी. पाटीदारों के आंदोलन का असर था कि 60 से 70 फीसदी पाटीदारों ने अपना पाला बदल दिया था. उन्होंने बताया कि लोकसभा चुनाव 2019 में ऐसी स्थिति नहीं है. पाटीदारों का बड़ा वर्ग है जो हार्दिक के कांग्रेस में जाने से नाराज है. फिलहाल, गुजरात में दिख रही स्थिति के अनुसार, आंदोलनरत पाटीदारों की संख्या 30 से 35 फीसदी तक सिमट गई है. विभास मिश्र के अनुसार, 30 से 35 फीसदी पाटीदार हमेशा से कांग्रेस के पक्ष में रहे हैं. पाटीदारों की यह टूट चुनाव में कहीं न कहीं बीजेपी के लिए मददगार साबित हो सकती है. उन्होंने बताया कि अर्बन और सब-अर्बन इलाकों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू अभी भी बरकरार है. यह जादू बीजेपी के पक्ष में नतीजे परिवर्तित कर सकता है.
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बीजेपी के पक्ष में गुजरात में एनआरआई ने किया था प्रचार
चुनाव विशेषज्ञ विभास मिश्र के अनुसार, लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी के पक्ष को मजबूत करने के लिए इस बार बड़ी तादाद में एनआरआई चुनाव प्रचार में उतरे थे. इसके अलावा, मुंबई में रहने वाले गुजराती भी इस बार गुजरात के चुनाव प्रचार में सक्रिय नजर आए हैं. बीजेपी की कोशिश है कि विदेशों में रहने वाले गुजराती एनआरआई और दूसरे राज्यों में रहने वाले गुजरातियों को मतदान के लिए गुजरात लाया जाए. अब चुनाव जीतने के लिए बीजेपी और कांग्रेस द्वारा किए जा रहे प्रयास कितने कारगर साबित होते हैं, इसका फैसला 23 मई को लोकसभा चुनाव 2019 के अंतिम नतीजे आने के बाद ही हो सकेगा.