चुनावनामा 1977: कांग्रेस का अस्तित्‍व बचाने के लिए इंदिरा को लेनी पड़ी दक्षिण की शरण
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चुनावनामा 1977: कांग्रेस का अस्तित्‍व बचाने के लिए इंदिरा को लेनी पड़ी दक्षिण की शरण

लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) के लोकसभा चुनाव में ज्‍यादातर राजनैतिक दल गठबंधनों में बंट गए हैं. 1977 के लोकसभा चुनाव में भी देश के सभी राजनैतिक दलों ने दो गठबंधनों में बंटकर चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में जनता पार्टी को जीत मिली थी और देश में पहली गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ था. 

1977 के इस चुनाव में देश की सभी विपक्षी पार्टियों ने इंदिरा के खिलाफ लामबंद होकर न केवल चुनाव लड़ा था

नई दिल्‍ली: लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) न केवल सत्‍तारूढ़ दल, बल्कि विपक्ष के लिए भी बेहद अहम है. सत्‍तारूढ बीजेपी को सत्‍ता से बेदखल करने के लिए सभी विपक्षी दल एक मंच पर आ चुके हैं. वहीं बीजेपी अपनी रणनीति बदलकर विपक्षी दलों को शिकस्‍त देने की कवायद में लगी हुई है. देश में कुछ ऐसा ही माहौल 1977 के लोकसभा चुनाव में भी था. 1977 के इस चुनाव में देश की सभी विपक्षी पार्टियों ने इंदिरा के खिलाफ लामबंद होकर न केवल चुनाव लड़ा था, बल्कि शानदार जीत भी हासिल की थी. हालांकि यह बात दीगर है कि 1977 के चुनाव की परिस्थितियां आज की परिस्थितियों से बिल्‍कुल अलग थी. तब, आपातकाल से खफा देश की जनता ने कांग्रेस को पूरी तरह से उखाड़ फेंका था. चुनावनामा में आज आपको बताते हैं 1977 के इस लोकसभा चुनाव के नतीजों में कांग्रेस का क्‍या हस्र हुआ और कांग्रेस को नया जीवन देने के लिए इंदिरा ने कौन से कदम उठाए. 

  1. 1977 के चुनाव से पहले देश में बने थे 2 बड़े गठबंधन
  2. रायबरेली से इस बार इंदिरा गांधी भी हार गईं चुनाव
  3. इस चुनाव के बाद बदल गई कई नेताओं की किस्‍मत

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देश की छठवीं लोकसभा के लिए 16 से 19 मार्च 1977 के बीच मतदान हुआ. मतगणना 20 मार्च से शुरू हुई और नतीजे 22 मार्च को सामने आ गए. इस चुनाव में कांग्रेस को बुरी तरह से शिकस्‍त का सामना करना पड़ा था. 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा की जिस कांग्रेस ने 352 सीटों पर जीत हासिल की थी, वही कांग्रेस 1977 के लोकसभा चुनाव में महज 154 सीटों पर सिमट कर रह गई. वहीं, जनता पार्टी इस चुनाव में बहुमत हासिल करने में सफल रही. भारतीय लोकदल के चिन्‍ह पर चुनाव लड़ने वाली जनता पार्टी ने इस चुनाव में 295 सीटों पर जीत हासिल की. इसके अलावा, सात सीटों पर सीपीआई, 22 सीटों पर सीपीएम और क्षेत्रीय दलों के प्रत्‍याशियों ने 49 सीटों पर जीत दर्ज की. 1977 के इस लोकसभा चुनाव में भारतीय लोकदल ने सर्वाधिक देश की 72.84 फीसदी सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं, कांग्रेस की सीटें महज 31.30 फीसदी ही रह गई थीं. 

1977 के चुनाव से पहले देश में बने थे 2 बड़े गठबंधन
1977 के लोकसभा चुनाव से पहले देश में दो बड़े गठबंधन हुए. पहला गठबंधन कांग्रेस ने करीब छह राजनैतिक पार्टियों के साथ तैयार किया. वहीं, दूसरा गठबंधन जनता पार्टी का था. जिसमें देश की आठ से अधिक राजनैतिक दल शामिल थे. कांग्रेस के पाले में खड़े राजनैतिक दलों में कम्‍युनिस्‍ट पार्टी ऑफ इंडिया, जम्‍मू और कश्‍मीर नेशनल कांफ्रेंस, एआईएडीएमके, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, केरल कांग्रेस और रिवॉल्‍यूशनरी सोशलिस्‍ट पार्टी का नाम शामिल है. वहीं जनता पार्टी के पक्ष में खड़ी पार्टियों में भारतीय जनसंघ, कम्‍युनिस्‍ट पार्टी ऑफ इंडिया (एम), शिरोमणि अकाली दल, ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्‍लॉक, रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया और डीएमके सहित अन्‍य पार्टियां शामिल थीं. इस दौर में, जनता पार्टी की अगुवाई समाजवादी नेता जय प्रकाश नारायण कर रहे थे. चुनाव चिन्‍ह न मिल पाने के कारण जनता पार्टी ने 1977 का लोकसभा चुनाव भारतीय लोक दल के चिन्‍ह हलधर किसान पर लड़ा था. 

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इन 10 राज्‍यों में कांग्रेस को नहीं मिली एक भी सीट 
आजादी के बाद कांग्रेस अपना सबसे बुरा दौर देख रही थी. जिस कांग्रेस का जादू लोगों के सिर पर चढ़ कर बोलता था, उस कांग्रेस का नाम सुनना भी लोगों को गवारा नहीं था. इसी गुस्‍से के असर था कि 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस आधा दर्जन से अधिक राज्‍यों में अपना खाता भी खोल नहीं पाई. कई राज्‍य ऐसे थे, जहां पर एक या दो सीट जीतकर कांग्रेस अपना नाम दर्ज कराने में सफल रही. जिन राज्‍यों में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली, उनमें बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्‍तर प्रदेश, दिल्‍ली, मिजोरम, नागालैंड, पुदुचेरी और चंडीगढ़ का नाम शामिल है. वहीं मध्‍य प्रदेश और मणिपुर, राजस्‍थान, सिक्किम और त्रिपुरा सहित चार केंद्र शासित राज्‍यों में कांग्रेस को सिर्फ एक-एक सीट हासिल हुई. हालांकि इस चुनाव में कांग्रेस को दक्षिण भारत से बेहतर परिणाम मिले. कांग्रेस ने इस चुनाव में सर्वाधिक 41 सीटें आंध्र प्रदेश और 26 सीटें कर्नाटक से जीतीं. 

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रायबरेली से इस बार इंदिरा गांधी भी हार गईं चुनाव
1977 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर उत्‍तर प्रदेश की रायबरेली सीट पर इंदिरा गांधी और राजनारायण का आमना-सामना हुआ. इस बार, जनता पार्टी की टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे राजनारायण ने करीब 55 हजार वोटों के अंतर से इंदिरा गांधी को शिकस्‍त दे दी. इस चुनाव में इंदिरा गांधी को 1 लाख 22 हजार 517 वोट मिले, जबकि राजनारायण 1 लाख 77 हजार 719 वोट पाकर जीत अपने नाम कर ली. उल्‍लेखनीय है कि 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने राजनारायण का रायबरेली सीट से ही पटखनी दी थी. जिसके बाद, राजनारायण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में केस दायर कर इंदिरा गांधी पर सरकारी मशीनरी के इस्‍तेमाल सहित 14 आरोप लगाए थे. अदालत ने अपने फैसले में आरोपों को सही ठहराते हुए इंदिरा का न केवल चुनाव रद्द कर दिया था, बल्कि उनके चुनाव लड़ने पर भी पांच वर्षों के लिए प्रति‍बंध लगा दिया था. इसी घटना के बाद, इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाने का फैसला लिया था. 

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इस चुनाव के बाद बदल गई कई नेताओं की किस्‍मत
आपातकाल के बाद हुए 1977 के लोकसभा चुनाव ने कई नेताओं की किस्‍मत बदल दी थी. 1977 के ही लोकसभा चुनाव में जिन नेताओं की किस्‍मत चमकी, उसमें लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान का नाम अहम है. इस चुनाव में, रामविलास पासवान ने हाजीपुर से चार लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी. इसी चुनाव में लालू प्रसाद यादव पहली बाहर छपरा से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे. 1977 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने वाले नेताओं में अटल बिहारी वाजपेयी, राम जेठमलानी, सुब्रमण्‍यम स्‍वामी, जार्ज फर्नाडीस, जनेश्‍वर मिश्र का नाम भी शामिल है. अटल बिहारी ने दिल्‍ली, जेठमलानी ने बंबई नार्थ वेस्‍ट और सुब्रमण्‍यम स्‍वामी ने ईस्‍ट बंबई से जीत दर्ज की थी. जार्ज फर्नाडीस ने मुजफ्फरनगर से और करपूरी ठाकुर ने समस्‍तीपुर से जीत हासिल की थी.

 

 

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