लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) में चर्चा का केंद्र बनी इंदिरा गांधी का राजनैतिक जीवन खात्मे की कगार पर आ खड़ा हुआ था. इस दौरान में, इंदिरा गांधी को कर्नाटक के एक छोटे से शहर से राजनैतिक पुनर्जीवन मिला था.
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नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) में एक तरफ सत्तारूढ़ बीजेपी लगातार कांग्रेस के शासन में हुए गलत निर्णयों का जिक्र कर रही है. वहीं कांग्रेस देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के शासनकाल को उपलब्धि के तौर पर गिना रही है. अब जब बात रह-रह कर इंदिरा गांधी के शासनकाल की हो रही है, तब हम आपको ऐसे दौर में लेकर चलते हैं, जब इंदिरा गांधी का राजनैतिक जीवन खात्मे की दहलीज पर खड़ा था. उस दौर, में 'छोटी बेटी के शहर' में न केवल इंदिरा को राजनैतिक शरण मिली, बल्कि उन्हें राजनैतिक पुनर्जीवन मिला. आइए, चुनावनामा में आज हम आपको 'छोटी बेटी के शहर' और इंदिरा के इस राजनैतिक दौर से रूबरू कराते हैं.
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1977 में रायबरेली से चुनाव हार गई थी इंदिरा गांधी
आपातकाल के बाद 1977 में एक बार फिर देश में आम चुनाव कराए गए. आपातकाल और नसबंदी अभियान के चलते जनता न केवल इंदिरा, बल्कि कांग्रेस से बेहद खफा थी. इसका नतीजा यह हुआ कि 1977 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी अपनी पारंपरिक सीट रायबरेली से चुनाव हार गईं. इस चुनाव में जनता पार्टी के राज नारायण ने करीब 55 हजार से अधिक वोटों से इंदिरा को शिकस्त दी थी. इस चुनाव में राजनारायण को 1,77,719 और इंदिरा गांधी को 1,22,517 वोट मिले थे. आपातकाल के बाद देश में फैली इंदिरा विरोध की लहर और रायबरेली से इस हार के चलते इन बातों को बल मिलने लगा था कि इंदिरा का राजनैतिक कैरियर लगभग खात्मे पर खड़ा है.
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'छोटी बेटी के इस शहर' से मिला राजनैतिक पुनर्जीवन
1977 के इस लोकसभा चुनाव में उत्तर भारत में कांग्रेस की जबरदस्त हार हुई थी. कई राज्य ऐसे भी थे, जहां पर कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थीं. इन परिस्थितियों के बावजूद इंदिरा ने हार नहीं मानी. कांग्रेस को पुनर्जीवन देने के लिए इंदिरा को दक्षिण भारत से आशा की किरण नजर आ रही थी. लिहाजा, उन्होंने कर्नाटक के अंतर्गत आने वाली 'छोटी बेटी के शहर' राजनीति में आने का फैसला किया. रणनीति के तहत इस शहर से कांग्रेस के सांसद डीबी चन्द्रे गाव्डा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. चुनाव आयोग द्वारा घोषित उपचुनाव में इंदिरा ने कांग्रेस की तरफ से दावेदारी पेश की. वहीं उनके खिलाफ वीरेंद्र पाटिल चुनाव मैदान में थे. इस उपचुनाव में इंदिरा एक बार फिर चुनाव जीत कर संसद पहुंचने में कामयाब हो गईं.
बेहद खूबसूरत है कर्नाटक स्थित 'छोटी बेटी का शहर'
छोटी बेटी के जिस शहर से इंदिरा गांधी को राजनैतिक पुनर्जीवन मिला, उसका नाम चिकमंगलूर है. मुल्लयनागिरी पर्वत श्रेणियों के बीच इस स्थित इस खूबसूरत शहर चिकमंगलूर का शाब्दिक अर्थ 'छोटी बेटी का शहर' है. चाय और कॉफी के बागानों से सजे इस शहर के शाब्दिक अर्थ ने इंदिरा को चुनाव जिताने में खासी मदद की. दरअसल, चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने इंदिरा को लगभग चिकमंगलूर की छोटी बेटी घोषित कर दिया. कांग्रेसी कार्यकता प्रचार में अपनी बेटी को चुनाव जिताने की अपील करते थे. इस दौरान, 'एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर – चिकमंगलूर' का नारा बेहद लोकप्रिय हुआ था. चिकमंगलूर में कांग्रेस की भावनात्मक रणनीति काम आई और इस चुनाव में इंदिरा गांधी करीब 70 हजार वोटों से चुनाव जीत गईं. इंदिरा की इस जीत के बाद कांग्रेसियों में नई ऊर्जा का प्रवाह हुआ. कांग्रेसियों की यही ऊर्जा उनके लिए 1980 के लोकसभा चुनाव में बेहद काम आई.