नई दिल्‍ली: लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) में जीत हासिल करने के लिए सभी राजनैतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. आर्थिक घोषणाओं के जरिए पक्ष और विपक्ष किसान मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर रहा है. आज से करीब 57 साल पहले कुछ ऐसा ही टकराव 1962 में हुए देश के तीसरे लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला था. यह वही चुनाव है जब किसानों और गरीबों के मुद्दे पर समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने जवाहर लाल नेहरू पर गंभीर आरोप लगाए थे. इन्‍हीं मुद्दों को लेकर लोहिया ने फूलपुर संसदीय क्षेत्र से नेहरू के खिलाफ चुनाव भी लड़ा था. चुनावनामा में जानते हैं कैसा रहा 1962 के लोकसभा चुनाव में नेहरू और लोहिया के बीच का द्वंद. 


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वैचारिक प्रतिद्वंदी थे लोहिया और नेहरू
वैचारिक कुरुक्षेत्र में जवाहर लाल नेहरू और राम मनोहर लोहिया के बीच छिड़ा द्वंद कभी रूका नहीं. नेहरू से अपने वैचारिक मतभेद के चलते लोहिया ने आजादी के बाद कांग्रेस से अपना नाता तोड़ लिया. 1949 में शोसलिस्‍ट पार्टी ने राममनोहर लोहिया को हिंद किसान पंचायत का अध्‍यक्ष बनाया. जिसके बाद, 25 नवंबर 1949 को लोहिया ने लखनऊ में करीब एक लाख किसानों को एकत्रित कर तत्‍कालीन केंद्र सरकार की नीतियों के विरुद्ध मोर्चा खोला था.  1951 में लोहिया ने 'रोजी-रोटी कपड़ा दो, नहीं तो गद्दी छोड़ दो' का नारा केंद्र सरकार के खिलाफ दिया था.


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फूलपुर संसदीय क्षेत्र से दी चुनौती 
1962 के लोकसभा चुनाव में लोहिया ने नेहरू के विरुद्ध चुनाव लड़ने का फैसला किया. उन्‍होंने जवाहर लाल नेहरू की पारांपरिक सीट फूलपुर सीट से अपना नामांकन दाखिल कर दिया. इस चुनाव के दौरान लोहिया ने नेहरू पर दो बड़े आरोप लगाए थे. उनका पहला आरोप था कि देश की दो तिहाई जनता को प्रतिदिन दो आने भी नसीब नहीं होते हैं, वहीं नेहरू पर रोजाना 25 हजार रुपए खर्च होता है. अपने दूसरे आरोप में लोहिया ने गोवा दिवस को नेहरू द्वारा जनता को दी गई घूस बताया था. अपने दूसरे आरोप में लोहिया ने कहा था कि अगर नेहरू चाहते तो गोवा बहुत पहले आजाद हो सकता था.



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लोहिया को थी अपनी हार की आशंका
चुनाव के दौरान, लोहिया ने अपनी एक जनसभा में कहा था कि 'मैं जानता हूं कि इस चुनाव में नेहरू की जीत निश्चित है, मैं इसे अनिश्चित में बदलना चाहता हूं, ताकि देश बचे और नेहरू को भी सुधनरे का मौका मिले.' इस चुनाव में जवाहर लाल नेहरू को कुल 1 लाख 18 हजार 931 वोट मिले. वहीं, राममनोहर लोहिया महज 54 हजार 360 वोट हासिल कर यह चुनाव हार गए. 1963 में फर्रुखाबाद (उत्‍तर प्रदेश) सीट पर हुए उपचुनाव में लोहिया को जीत मिली और उनके संसद पहुंचने का रास्‍ता साफ हो गया. संसद पहुंचते ही उन्‍होंने नेहरू की सरकार के खिलाफ अविश्‍वास प्रस्‍ताव पेश कर दिया.