कारोबारी शहर लुधियाना में नोटबंदी - GST बड़ा मुद्दा, बैंस अकाली-बीजेपी के वोट काटेंगे
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कारोबारी शहर लुधियाना में नोटबंदी - GST बड़ा मुद्दा, बैंस अकाली-बीजेपी के वोट काटेंगे

पंजाब की आर्थिक राजधानी लुधियाना में लोकसभा चुनावों का बिगुल लोगों के सर चढ़कर बोल रहा है. दुकानों, शोरूम, बसों और सभी स्थानों पर राजनीति की ही चर्चा हो रही है. कौन जीतेगा कौन हारेगा, इसपर बड़ी बहसों में पैसों से लेकर पार्टियों तक की शर्तें लग रही है.

व्यापारियों के इस शहर में कांग्रेस भी डीमोनेटाइजेशन और जीएसटी दोनों मुद्दों को ज़ोर शोर से उठा रही है.

लुधियाना: पंजाब की आर्थिक राजधानी लुधियाना में लोकसभा चुनावों का बिगुल लोगों के सर चढ़कर बोल रहा है. दुकानों, शोरूम, बसों और सभी स्थानों पर राजनीति की ही चर्चा हो रही है. कौन जीतेगा कौन हारेगा, इसपर बड़ी बहसों में पैसों से लेकर पार्टियों तक की शर्तें लग रही है. एक ओर जहां कांग्रेस के रवनीत सिंह बिट्टू लगातार दूसरी बार इस लोकसभा सीट को जीतने की कोशिशों में लगे हैं तो दूसरी ओर अपने मज़बूत ग्रामीण वोटबैंक और मोदी के नाम पर शिरोमणी अकाली दल-बीजेपी के महेशइंद्र सिंह ग्रेवाल उन्हें यहां से चुनौती दे रहे हैं. इन दोनों के बीच एक तीसरा भी है जो रवनीत की जीत हार में बड़ा रोल निभा रहा है. वो है लोक इंसाफ पार्टी (पीडीए) के सिमरीत सिंह बैंस. ये पिछली बार निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े बैंस दो लाख से ज्य़ादा वोट लेकर चौथे स्थान पर आए थे.

शहर में पिछले 40 सालों से स्टील का काम कर रहे हरजीत सिंह को राजनीति में की चर्चा में बहुत मज़ा आता है. वो बताते हैं कि पिछले एक महीने से लुधियाना में सब जगह एक ही चर्चा है कि लुधियाना में कौन जीतेगा. पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में भी सीट जीतने वाले कांग्रेस के रवनीत बिट्टू अभी भी बड़े वर्ग की पसंद है. शहर में घुमने पर पता चलेगा कि पिछले पांच सालों में पंजाब की राजनीति में दो बड़े बदलाव आए हैं. पहला अब आम आदमी पार्टी का जादू पूरी तरह से बिखर गया है और दूसरा राज्य में अब अकाली दल-बीजेपी की सरकार नहीं है. बल्कि कांग्रेस की सरकार है. ऐसे में अकाली दल का प्रभाव भी गांवों में थोड़ा कम हो गया है.

पंजाब की राजनीति में अच्छी पैठ रखने वाले पत्रकार बलबीर जी बताते हैं कि इस बार लगाता है कि रवनीत बिट्टू जीतने का अपना पिछला रिकॉर्ड तोड़ेंगे. पिछली बार तो उनके सामने एच एस फुल्का जैसे वरिष्ठ वकील सामने थे, प्रदेश में आम आदमी पार्टी का अच्छा ख़ासा रसूख था. बीजेपी की पूरे देश में लहर थी, लेकिन पंजाब में ये लहर कामयाब नहीं हो सकी. इसलिए बिट्टू के लिए बेहतर स्थिति दिखती है.

 

व्यापारियों के इस शहर में कांग्रेस भी डीमोनेटाइजेशन और जीएसटी दोनों मुद्दों को ज़ोर शोर से उठा रही है. बुधवार को महाराजा होटल में महिलाओं के साथ सम्मेलन में भी कांग्रेस ने यहीं मुद्दा उठाया. पंजाब के कैबिनेट मंत्री भारत भूषण आशू ने इस सम्मेलन में डीमोनेटाइजेशन को एक बेवकूफी भरा फैसला बताते हुए रवनीत बिट्टू को जीताने की अपील की. दरअसल कांग्रेस जानती है कि शहर की इंडस्ट्री और उससे जुड़े लोगों को बड़ा झटका डीमोनेटाइजेशन और जीएसटी के समय लगा था. लिहाजा ये मुद्दा उनका बड़ा हथियार है.

हालांकि गांवों में अकाली दल का प्रभाव अभी भी है. इसलिए अकाली-बीजेपी गठबंधन के उम्मीदवार गांवों में फोकस कर रहे हैं. लेकिन लोक इंसाफ पार्टी के बैंस की पकड़ भी गांवों पर ही है. ऐसे में सिमरीत सिंह बैंस जितने मज़बूत होंगे. अकाली-बीजेपी की सीट जीतने की कोशिश उतनी ही कम होती जाएगी.

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