विखे पाटिल परिवार के सदस्य पिछले 70 वर्षों में तकरीबन सभी प्रमुख पार्टियों का हिस्सा रह चुके हैं.
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मुंबई: कांग्रेस नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल के भाजपा में शामिल होने को महाराष्ट्र में विपक्षी दल के लिए झटका माना जा सकता है लेकिन राजनीतिक पंडितों के लिए यह हैरानी भरा नहीं है क्योंकि परिवार का इतिहास पहले भी दल बदल का रहा है. अहमदनगर जिले के रहने वाले विखे पाटिल महाराष्ट्र के राजनीतिक इतिहास में दुर्जेय नाम है और इस परिवार को राज्य में शक्कर सहकारिता आंदोलन के अग्रदूतों में से एक माना जाता है. विधानसभा में विपक्ष के नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल के बेट सुजॉय विखे पाटिल 12 मार्च को भाजपा में शामिल हो गए और उन्हें अहमदनगर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाए जाने की खबर है.
विखे पाटिल परिवार के सदस्य पिछले 70 वर्षों में तकरीबन सभी प्रमुख पार्टियों का हिस्सा रह चुके हैं. महाराष्ट्र में परिवार का सबसे बड़ा योगदान आजादी के बाद अहमदनगर में एशिया की पहली सहकारी शक्कर मिल स्थापित करना है. दिवंगत विट्ठलराव विखे पाटिल ने तत्कालीन कांग्रेस के दिग्गज नेता धनंजयराव गाडगिल के मार्गदर्शन में मिल स्थापित की थी. यह परिवार विट्ठलराव विखे पाटिल के बेटे बालासाहेब विखे पाटिल के नेतृत्व में फला फूला.
उनके नेतृत्व में परिवार ने शिक्षा क्षेत्र में प्रवेश किया और पश्चिम महाराष्ट्र में अपना प्रभाव बढ़ाते हुए स्कूलों, मेडिकल तथा इंजीनियरिंग कॉलेजों और सामाजिक संगठनों की स्थापना की. लंबे समय तक कांग्रेस में रहे बालासाहेब विखे पाटिल ने सात बार अहमदनगर उत्तर लोकसभा सीट से जीत हासिल की. कांग्रेस में शामिल होने से पहले वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े रहे.
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब 1975 में आपातकाल लागू किया तो उन्होंने उन दिनों कई अन्य नेताओं की तरह कांग्रेस छोड़ दी और 1978 में नांदेड से अपनी पार्टी के नेता शंकरराव चव्हाण के साथ महाराष्ट्र समाजवादी कांग्रेस के अध्यक्ष बने. बाद में, जब इंदिरा गांधी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौटी, दोनों कांग्रेस में लौट आए. अहमदनगर जिले के पत्रकार बीबी पाटिल ने कहा, ‘‘विखे पाटिल परिवार लंबे समय तक सत्ता से दूर नहीं रह सकता. उनके बेटे राधाकृष्ण विखे पाटिल और पोते सुजॉय ने यही प्रवृत्ति अपनाई.’’
उन्होंने बताया कि बालासाहेब विखे पाटिल ने 1989 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ फिर से बगावत कर दी थी. यह महाराष्ट्र में शरद पवार समेत कांग्रेस के अन्य नेताओं के लिए कड़ा संदेश था कि विखे पाटिल की ताकत बढ़ रही है. पत्रकार ने कहा, ‘‘कांग्रेस में सबसे बड़ी कलह तब उजागर हुई जब चुनाव में हारने वाले बालासाहेब विखे पाटिल ने 1990 में कांग्रेस नेता शरद पवार के खिलाफ एक मुकदमा दायर किया. शरद पवार को उच्चतम न्यायालय की कटु आलोचना का सामना करना पड़ा और वह यह मामला नहीं भूल पाए.’’
उन्होंने बताया कि यही कारण हो सकता है कि राकांपा ने आगामी चुनावों के लिए कांग्रेस के साथ सीटों के बंटवारे के समझौते के तौर पर अहमदनगर लोकसभा सीट पर अपना दावा वापस लेने से इनकार कर दिया. पवार के ‘हठ’ के कारण सुजॉय विखे पाटिल के पास भाजपा में शामिल होने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा. अभी तक संभवत: भाजपा ही वही पार्टी थी जिससे विखे पाटिल परिवार का कोई सदस्य नहीं जुड़ा था.