'चूहा-बिल्ली' के खेल में बसपा दिख रही भारी, आखिर अखिलेश चुप रहकर बेचारे क्‍यों बने हैं?
Advertisement
trendingNow1544724

'चूहा-बिल्ली' के खेल में बसपा दिख रही भारी, आखिर अखिलेश चुप रहकर बेचारे क्‍यों बने हैं?

लोकसभा चुनाव में बीजेपी के हाथों सपा-बसपा गठबंधन के यूपी में धराशायी होने के बाद इन दोनों दलों की राहें अब पूरी तरह एक बार फिर जुदा हो गई हैं.

'चूहा-बिल्ली' के खेल में बसपा दिख रही भारी, आखिर अखिलेश चुप रहकर बेचारे क्‍यों बने हैं?

लखनऊ: लोकसभा चुनाव (lok sabha elections 2019) में बीजेपी के हाथों सपा-बसपा गठबंधन के यूपी में धराशायी होने के बाद इन दोनों दलों की राहें अब पूरी तरह एक बार फिर जुदा हो गई हैं. बसपा प्रमुख मायावती ने अब पूरी तरफ से साफ कर दिया है कि बसपा आगे के सभी चुनाव अपने दम पर लड़ेगी. यहां तक चलो ठीक है लेकिन जिस तरह उन्‍होंने अखिलेश यादव पर हमला बोला है, उससे दोनों दलों के बीच खटास बढ़ना तय माना जा रहा है. लेकिन इसमें हैरान करने वाली बात ये है कि इन हमलों के बावजूद सपा और पार्टी अध्‍यक्ष अखिलेश यादव ने चुप्‍पी क्‍यों साध रखी है? सपा मायावती के किसी भी हमले पर प्रतिक्रिया देने से भी कतरा रही है. सवाल उठता है आखिर क्यों?

  1. यूपी में सपा-बसपा गठबंधन टूटा
  2. चुनाव में बसपा को मिली 10 और सपा को 5 सीटें
  3. दोनों दलों के बीच बढ़ी खटास

सपा की रणनीति
राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल के अनुसार, "सपा की ओर से अगर मायावती के किसी बयान का उत्तर दिया गया तो मायावती चारों तरफ से अखिलेश को घेर लेंगी. पिता-चाचा का उदाहरण देकर उन्हें बहुत उधेड़ देंगी. अभी देखा जाए तो चूहा-बिल्ली के खेल में बसपा भारी है." उन्होंने कहा, "अभी अखिलेश को अक्रामक जवाब देने से कोई फायदा नहीं है. इसीलिए वह शांत हैं. अखिलेश सोच रहे होंगे कि शायद कुछ बात बन जाए. सपा अभी बीच का रास्ता निकालने का भी प्रयास कर रही होगी. इसीलिए वह 'वेट एंड वाच' की स्थित में है."

एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक राजकुमार सिंह ने कहा, "समाजवादी पार्टी में अखिलेश यादव के अलावा कोई बोलने वाला नहीं है. अभी वह राजनीतिक सदमे में हैं. पहले वह संगठन को आंतरिक रूप से मजबूत करेंगे. अभी अखिलेश के पास कोई जवाब नहीं है. मायावती ने लीड ले ली है."

हवाई गठबंधन सुर्खियां बटोर सकते हैं वोट नहीं...

राजकुमार ने बताया, "अखिलेश तथ्यों के साथ जवाब देना चाह रहे हैं. इसलिए अभी वह मुस्लिम और यादवों का एक डेटा तैयार करा रहे हैं, जिसमें एक-एक विधानसभा में कोर वोटर का हिसाब दें. वह बताना चाहेंगे कि उन्होंने कितनी ईमानदारी के साथ गठबंधन को निभाया है. इसलिए वह खमोश हैं."

लोकसभा चुनाव में संतोषजनक सीटें न मिलने से मायावती खफा हैं. वह 12 सीटों पर होने वाले विधानसभा के उपचुनाव और 2022 में होने वाले चुनाव को लेकर पार्टी में बड़े बदलाव कर रही हैं. मायावती ने लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद से ही सपा पर हमले शुरू कर दिये थे.

सपा के मुरादाबाद से सांसद डॉ़ एस.टी. हसन ने मायावती के हमले पर तो प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन उन्होंने कहा, "पहले भी हम अकेले लड़ते थे, आगे भी अकेले लड़ेंगे. अखिलेश यादव कभी फोन करके हिंदू-मुस्लिम की बात नहीं करते हैं. हमारी पार्टी के पास जनाधार है. बसपा के पास एक भी सीट नहीं थी, अब वह 10 पर है. वह (मायावती) हमारी जुबान से सब क्यों कहलवाना चाहती हैं."

उन्होंने कहा, "लोकसभा चुनाव में अल्पसंख्यकों का वोट सपा को गया है और हमारा वोट बसपा को भी मिला है. मायावती ही बता सकती हैं. उन्होंने ऐसा बयान क्यों दिया है. इस पर राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव निर्णय लेंगे. अगर वह नहीं चाहती हैं तो हम भी अकेले चुनाव लड़ेंगे."

सपा प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी कहते हैं कि जनता सच्चाई जानती है. "राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का चरित्र किसी को धोखा देने वाला नहीं है. सपा संविधान का सम्मान करने और समाजवादी विचारधारा पर चलने वाली पार्टी है. अखिलेश यादव ने कभी भी किसी पर कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं की. सपा ने हमेशा बेहतर काम करने और सभी को साथ लेकर चलने का काम किया है."

प्रगतिशील समाज पार्टी (प्रसपा) के प्रवक्ता डॉ़ सी.पी. राय के अनुसार, "सपा अभी से नहीं पिछले ढाई-तीन साल से खमोश है...मायावती ने गेस्टहाउस कांड का बदला ले लिया. सबको झुका लिया. सबसे पैर छुआ लिए. उन्होंने अपना काम कर लिया."

(इनपुट: एजेंसी आईएएनएस के साथ)

Trending news