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नई दिल्ली : विशेषज्ञों के अनुसार नए कंपनी कानून में निवेशकों की सुरक्षा और उनके धन के समुचित उपयोग के बारे में बेहतर प्रावधान किये गये हैं। विधेयक के प्रावधान के अनुसार निवेशकों से जुटाई गई राशि को यदि कंपनी दूसरे काम में इस्तेमाल करती है तो उसे निवेशकों को कंपनी के शेयर बेचकर बाहर निकलने का विकल्प देना होगा।
संसद के पिछले सप्ताह समाप्त मानसून सत्र में राज्यसभा से मंजूरी मिलने के बाद नये कंपनी कानून को संसद की मंजूरी मिल गई और राष्ट्रपति ने भी इसे अपनी संस्तुति दे दी है। यह कंपनी अधिनियम 1956 का स्थान लेगा। कंपनी सचिवों के संस्थान ‘इंस्टीट्यूट ऑफ कंपनी सेकट्ररीज ऑफ इंडिया (आईसीएसआई) के सचिव एम.एस. साहू कहा कि नये कंपनी कानून में ऐसा प्रावधान रखा गया है कि यदि कंपनियां निवेशकों से जुटाई गई राशि को बताये गये काम के बजाय कहीं और इस्तेमाल करती हैं तो उसे निवेशकों को बाहर निकलने का विकल्प देना होगा।
यह पूछे जाने पर कि कंपनी से अलग होने वाले निवेशकों को किस भाव पर शेयर बेचने का विकल्प मिलेगा? साहू ने कहा ‘इस मामले में, सूचीबद्ध कंपनियों के लिये बाजार नियामक सेबी नियम बना रहा है जबकि गैर-सूचीबद्ध कंपनियों के लिये मंत्रालय नियम तैयार कर रहा है।’
साहू ने कहा कि ‘कंपनी विधेयक 2012’ में ऐसी भी व्यवस्था है कि यदि निवेशकों का एक वर्ग कंपनी के खिलाफ मामला दायर करता है (क्लास एक्शन) तो उसका पूरा खर्च सरकार उठायेगी। हालांकि, सूचीबद्ध कंपनियों के मामले में सेबी ने इस प्रकार की व्यवस्था पहले ही कर रखी है। सेबी नियमों के तहत 1,000 निवेशक या फिर निवेशकों का कोई संगठन कंपनी के खिलाफ मामला दायर करता है तो उसका खर्च सरकार उठायेगी। नये कंपनी कानून की व्यवस्था के बाद कापरेरेट कार्य मंत्रालय ऐसे नियम तैयार कर रहा है।
राज्यसभा ने 8 अगस्त 2013 को कंपनी विधेयक को हरी झंडी दे दी, लोकसभा ने इसे 12 दिसंबर 2012 को पारित किया था। इसके साथ ही इस महत्वपूर्ण विधेयक को संसद की मंजूरी मिल गई। 29 अगस्त को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इसे अपनी स्वीकृति दे दी और 30 अगस्त को इसे अधिसूचित कर दिया गया। (एजेंसी)