क्रिकेट को मिली ऐतिहासिक बदनामी
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क्रिकेट को मिली ऐतिहासिक बदनामी

भारत जैसे देश में हम सभी जानते हैं कि यह खेल से कहीं अधिक लोगों की भावनाओं से जुड़ गया है। इसकी लोकप्रियता को देखकर तो अब यही लगता है कि विश्व में इस ‘जेंटनमैन’ के खेल को स्मार्ट और लोकलुभावन बनाए रखाना है जरूरी है।

इन्द्रमोहन कुमार

 

मैच फिंक्सिंग का फंदा एक बार फिर क्रिकेट को बदनाम कर गया। भद्रजनों का कहा जाने वाला यह ‘जेंटल’ खेल खासकर युवा खिलाड़ियों को क्रिकेट को भ्रष्टाचार में डुबो रहा है। उससे भी हैरानी भरी बात यह कि इसमें दोषी पाए जाने के बाद पाकितानी क्रिकेटर मोहम्मद आमिर ने कहा कि हमें इससे बचने के लिए बोर्ड से ‘प्रशिक्षण’ नहीं दिया गया। वाह रे खिलाड़ी! अब आपको बताना होगा कि किस हद तक सट्टेबाजों से बचो या कहां तक मैच फिक्स करो।

 

क्रिकेट के इतिहास में मैच फिक्सिंग हुए हैं पर यह पहली बार है जब दोषी पाए जाने के बाद क्रिकेटरों को जेल की सजा दी गई है। पाकिस्तान के तीन उभरते क्रिकेटर सलमान बट्ट, मोहम्मद आसिफ और तेज गेंदबाज मोहम्मद आमिर और बुकी मजहर मजीद को स्पॉट फिक्सिंग मामले में जेल की सजा सुनाई गई। इंग्लैंड के साथ 2010 में चौथे टेस्ट मैच में इन तीनों खिलाड़ियों पर स्पॉट फिक्सिंग का आरोप लगा था। सलमान बट्ट टीम के पूर्व कप्तान भी रहे हैं। इन क्रिकेटरों को हालांकि अपनी सजा का केवल आधा समय ही जेल में बिताना पड़ सकता है क्योंकि अच्छा बर्ताव होने पर इन्हें लाइसेंस पर रिहा किया जा सकता है।

 

फिक्सिंग से पुराना है रिश्ता

जितना पुराना खेल है क्रिकेट, कुछ उतना ही पुराना मैच फिंक्सिंग का भी खेल है। इसमें पहला मामला तब आया था जब क्रिकेट उतना भी नहीं खेला जाता था। मगर क्रिकेट में फिक्सिंग की पहली घटना सबसे पहले 1817 से 1820 के आसपास नजर आई थी। उस समय विलियम लैंबार्ट नामक बल्लेबाज पर मैच फिक्सिंग के लिए प्रतिबंध लगाया गया था। हालांकि इसके बाद वह फिर कभी क्रिकेट नहीं खेल पाए। यह वह जमाना था जब सिंगल विकेट क्रिकेट खेली जाती थी और तब इस तरह के मैचों पर सट्टा लगाना आसान होता था।

 

इतिहासकार डेविड अंडरडाउन ने अपनी किताब ‘स्टार्ट ऑफ प्ले क्रिकेट एंड कल्चर इन एटीन्थ सेंचुरी’ इंग्लैंड में लिखा है कि असल में सिंगल विकेट क्रिकेट में पूरे 11 खिलाड़ी नहीं होते थे और इसलिए उन्हें फिक्स करना आसान था। अंडरडाउन के अनुसार, 1817 में इंग्लैंड और नाटिंघम के बीच खेले गए मैच में कुछ खिला़ड़ियों ने जानबूझकर लचर प्रदर्शन किया था। इनमें विलियम लैंबार्ट भी शामिल थे जिन्हें उस समय का सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज माना जाता था। लैंबार्ट के ही साथी फ्रेडरिक बियुक्लर्क ने इसकी शिकायत एमसीसी से की जिसने लैंबार्ट को लार्ड्स में खेलने से प्रतिबंधित कर दिया था।

 

इस तरह से लैंबार्ट दुनिया के पहले ऐसे क्रिकेटर थे जिन पर मैच फिक्सिंग के लिए प्रतिबंध लगा था। इंग्लैंड और नाटिंघम के बीच फिक्स हुए उस मैच के बारे में कहा जाता है कि दोनों टीमों के कुछ खिलाड़ियों ने जानबूझकर अपने विकेट गंवाए, कैच टपकाए और यहां तक कि ओवर-थ्रो से रन दिए।

 

अब जब खेल से ज्यादा पैसा अन्य स्रोत से भी आने लगे तो खिलाड़ी आसानी से इसके प्रति आकर्षित होते हैं। पहले क्रिकेटरों को ज्यादा विज्ञापन भी नहीं मिलता था, और अगर खिलाड़ी संपन्न परिवार से नहीं हो तो इस ‘खेल’ में आने की संभावना अधिक हो जाती थी। जो मैच फिक्सिंग की वजह बनता है। ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान की जमीं सिर्फ इसी के लिए जानी जाती हो। यहां ऐसे दिग्गज खिलाड़ी भी हुए हैं जिसका लोहा आज भी दुनिया मानती है।

 

‘स्पॉट फिक्सिंग’ का खुलासा बंद हो चुके ब्रिटिश अखबार ‘न्यूज ऑफ द वर्ल्ड’ ने अपने एक स्टिंग ऑपरेशन में किया था। बट, आमिर और आसिफ ने गत वर्ष अगस्त में लॉर्ड्स टेस्ट के दौरान जानबूझकर नो-बॉल करने के लिए बुकी मजहर मजीद से पैसे लिए थे। सटोरिए ने अदालत से कहा था कि इस राशि का सबसे बड़ा हिस्सा तेज गेंदबाज आसिफ को इसलिए दिया गया ताकि वह उसके प्रति वफादार रहे और पाकिस्तानी टीम के अंदर ही मौजूद एक दूसरे फिक्सिंग रैकेट की तरफ उसका झुकाव न हो सके।

 

भारत में स्थिति

इन हालातों के बीच भारत में लंबित पड़े 11 साल पुराने मैच फिक्सिंग मसले पर भी लोगों का ध्यान जाना लाजिमी है। दिल्ली पुलिस पिछले 11 सालों में मैच फिक्सिंग की गुत्थी नहीं सुलझा सकी है वहीं लंदन पुलिस ने महज 15 महीने के अल्प समय में क्रिकेट में भ्रष्टाचार फैला रहे खिलाड़ियों को सलाखों के पीछे भेज दिया। भारत के चार क्रिकेटर भी ऐसे ही फेर में फंसे थे, लेकिन आईसीसी ने उनपर प्रतिबंध लगाकर मामला रफा-दफा कर दिया। यह वही दिल्ली पुलिस है जिसे सबसे पहले फिक्सिंग का पता चला था।

 

साल 2000 में यह बात सामने आई थी कि पूर्व दक्षिण अफ्रीकी कप्तान हैंसी क्रोन्ये और उनके साथी खिलाड़ी निकी बोये और हर्शेल गिब्स मैच फिक्सिंग में लिप्त थे। साथ ही टीम इंडिया के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन, मनोज प्रभाकर, अजय जडेजा और अजय शर्मा पर भी संदेह व्यक्त किया गया था। लोग इस मामले को लगभग भूल चुके थे और खिलाड़ी भी निश्चिंत। पर अब लगता है कि यहां भी कुछ सुगबुगाहट शुरू हो जाएगी।

 

उल्लेखनीय है कि साल 2000 में दिल्ली पुलिस को एक कुख्यात बुकी और तत्कालीन दक्षिण अफ्रीकी कप्तान हैंसी क्रोन्ये के बीच हुई फोन पर बातचीत का रिकॉर्ड हाथ लगा था। इस रिकॉर्ड के मुताबिक क्रोन्ये ने मैच गंवाने के लिए पैसे कबूले थे। जांच में क्रोन्ये ने मैच फिक्सिंग के आरोप कबूल लिए थे। उन्होंने पाकिस्तान के सलीम मलिक और भारत के मोहम्मद अजहरुद्दीन व अजय जडेजा के नाम उजागर किए थे। उस समय जडेजा पर आईसीसी ने चार साल का प्रतिबंध लगाया था, जबकि सलीम मलिक और अजहर पर ताउम्र प्रतिबंध लगा दिया था।

 

भारत जैसे देश में यह खेल से कहीं अधिक लोगों की भावनाओं से जुड़ गया है। इसकी लोकप्रियता को देखकर तो अब यही लगता है कि अगर विश्व में इस ‘जेंटलमैन’ के खेल को स्मार्ट और लोकलुभावन बनाए रखना है,  पाकिस्तान में क्रिकेट के भविष्य को बचाना है, तो सरकार के साथ-साथ बोर्ड और दिग्गज खिलाड़ियों को भी इसमें पहल करनी होगी।

 

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