रामानुज सिंह
भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश के ताजा विधानसभा चुनाव में मतदातों को लुभाने के लिए घोषणा पत्र जारी किया। 72 पृष्ठीय घोषणा पत्र में अयोध्या में राम मंदिर बनाने के बारे में भी जिक्र है। भाजपा का कहना है कि अगर उसकी सरकार बनती है तो अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर बनेगा। जहां पहले बाबरी मस्जिद हुआ करता था। भाजपा एक बार फिर भगवान राम के भरोसे सत्ता पर काबिज होना चाहती है।
जब-जब राजनीति में मंदिर-मस्जिद का मुद्दा आया है तब-तब समाज में तनाव बढ़ा है, लोगों के बीच आपसी भाईचारा खत्म हुआ है और देश की अखंडता खतरे में पड़ी है। धर्म को राजनीति में लाने से किसी का भला नहीं हुआ है और ना होगा। क्योंकि भगवान, देवी-देवता, अल्लाह, गॉड सभी व्यक्तिगत आस्था के सूचक हैं। इसलिए आस्था के भरोसे राजनीति करना जन भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने जैसा है। राजनीतिक स्वार्थ के लिए राम के नाम का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
मर्यादा पुरूषोत्तम राम कण-कण में बसते हैं। रोम-रोम में बसते हैं। हर व्यक्ति में भगवान राम विद्यमान हैं। उन्हें तलाशना है तो अपने अंदर झांकिए। वो जरूर मिलेंगे। उनके लिए मंदिर-मस्जिद की कोई जरूरत नहीं है। उनका हृदय बहुत विशाल है। वे लोगों के बीच प्यार देखना चाहते हैं। सिर्फ राजनीति करने वाले लोग अपने सत्ता स्वार्थ के लिए धर्म का इस्तेमाल करते हैं। कौम-कौम में जो नफरत बोए धर्म नहीं वह साजिश है।
जब भी अयोध्या में मंदिर बनाने का मसला उठता है, रोंगटे खड़े हो जाते हैं। भागलपुर का 1989 का दंगा चलचित्र की तरह दिखने लगता है। मैंने उस दंगे को करीब से देखा। वह दंगा अयोध्या में राममंदिर के लिए चल रही कारसेवा के चलते ही शुरू हुआ था। पूरे भागलपुर शहर में कत्लेआम हुआ। गाजर-मूली की तरह दोनों समुदाय के लोगों ने एक-दूसरे को काटा। कितने घर बर्बाद हुए। कितनी बहू-बेटियों की इज्जत लूटी गईं। कितनी मां की गोदें सूनी हो गईं। कितनी महिलाएं विधवा हो गईं। शिल्क उद्योग के लिए विख्यात शहर तबाह हो गया। ततारपुर, कबीरपुर, नाथनगर, परवत्ती मोहल्ले में मातम फैल गया। हंसता-खेलता शहर ऐसा बर्बाद हुआ कि फिर उसका नूर लौटने में दशक लग गए। लोगों के जेहन में वो हृदय विदारक घटना आज भी टीस मारती है। उन दिनों की याद आने पर लोग रो पड़ते हैं। क्या भगवान राम या अल्लाह ने कहा था मेरे लिए नरसंहार करो? आखिर सत्ता के ये लोभी राजनेता इस बात को क्यों नहीं समझते। आम लोगों का भी जीवन बहुमूल्य है।
गड़े मुर्दे को उखाड़ फिर से जिंदा करने का प्रयास करना व्यर्थ ही नहीं, मूर्खतापूर्ण है। इतिहास के पन्नों को पलटकर देखें तो भारत में सबसे पहले अनार्य (द्रविड़) का शासन रहा जो यहां के मूल निवासी हैं। जिनकी आबादी आज धीरे-धीरे सिमटती जा रही है। इन्हें जंगलों और कुछ सुदूर इलाकों में रहने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। उसके बाद मध्य एशिया से आर्य आए। इनमें खास लोग वशिष्ठ मुनि और विश्वामित्र थे। आर्यों और अनार्यों के बीच युद्ध हुआ जिसमें आर्यों की विजय हुई। भारत पर आर्यों के शासन की शुरुआत हुई। उसके बाद मोहम्मद गोरी, चंगेज खां, बाबर, समेत कई आक्रमणकारियों ने भारत पर आक्रमण कर धन संपत्ति की लूटपाट की। उस समय मंदिरों को लूटने की वजह हीरे और सोने-चांदी होते थे जो मंदिरों में बहुतायत में पाया जाता था। कुछ तो लूटपाट कर वापस चले गए, लेकिन कुछ यहीं पर शासन करने लगे और यहां के होकर रह गए। उसके बाद अंग्रेज व्यापार करने भारत आए। अंग्रजों ने भी सोने की चिड़िया समान भारत को जी भरके लूटा और 200 साल तक राज किया। उसके बाद यहां अपने लोगों का शासन शुरू हुआ।
मेरे कहने का मतलब यह कि इतिहास में जो हुआ सो हुआ, उसे पलटने से कोई फायदा नहीं है। लेकिन अब अगर धर्म को फिर से राजनीतिक जामा पहनाया गया तो आज मंदिर-मस्जिद विवाद है, कल चर्च और गुरुद्वारा विवाद हो सकता है। लेकिन इससे देश की उस आवाम को क्या फायदा जिसे दो जून की रोटी भी मयस्सर नहीं होती है। राजनीतिक दलों को इनके बारे में सोचना चाहिए ना कि मंदिर और मस्जिद बनवाने के लिए जनभावना को भड़काने का काम करना चाहिए। मैं तो राजनीति दलों से यही कहना चाहूंगा-
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों में बांट दिया भगवान को।
धरती बांटी, सागर बांटा मत बांटो इंसान को।