नरेंद्र मोदी के राजनीतिक कद में हुआ और इजाफा
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नरेंद्र मोदी के राजनीतिक कद में हुआ और इजाफा

साल 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा की प्रचार समिति का प्रमुख बनाये जाने के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का राजनीतिक कद और बढ़ गया है जिन पर 2002 के गुजरात दंगों के बाद ‘सांप्रदायिक’ होने के आरोप जब-तब लगते रहे हैं।

नई दिल्ली : साल 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा की प्रचार समिति का प्रमुख बनाये जाने के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का राजनीतिक कद और बढ़ गया है जिन पर 2002 के गुजरात दंगों के बाद ‘सांप्रदायिक’ होने के आरोप जब-तब लगते रहे हैं। अकसर भाजपा के ‘पोस्टर ब्वाय’ कहे जाने वाले मोदी को ऐसे नेता के तौर पर देखा जाता है जिनके शुभचिंतक और विरोधी लगभग बराबर तादाद में हैं लेकिन पिछले दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में गुजरात में लगातार तीसरी बार जीतकर मुख्यमंत्री बनने के साथ ही मोदी ने भाजपा में बड़ी जिम्मेदारी और प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर अपना सिक्का जमाना शुरू कर दिया।
63 वर्षीय मोदी भले ही गोधरा कांड के बाद राज्य में भड़के दंगों के दौरान अच्छा प्रशासक नहीं होने के दाग को साफ नहीं कर पाए हों लेकिन उन्होंने गुजरात को सफलतापूर्वक उद्यमशील और समृद्ध प्रदेश के तौर पर स्थापित और प्रस्तुत किया है। मोदी पर आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने 2002 में भड़की हिंसा को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाये, जिनमें कम से कम 2,000 लोगों की मौत हो गयी थी। मारे गये लोगों में अधिकतर मुस्लिम समुदाय के थे।
अपने भाषणों से ओजस्वी वक्ता के तौर पर लोकप्रिय होने वाले मोदी को गुजरात में समृद्धि और विकास लाने का श्रेय जाता है और उन्हें देश के कई बड़े उद्योगपतियों का समर्थन प्राप्त है। कारोबार हितैषी माने जाने वाले मुख्यमंत्री की छवि स्वच्छ और सक्षम शासन चलाने वाले प्रशासक की बन गयी है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के तौर पर सार्वजनिक जीवन की शुरूआत करने वाले मोदी का ट्रेड मार्क सफेद दाढ़ी और आधी आस्तीन वाला कुर्ता है। वह अहमदाबाद में भाजपा के पहले महासचिव रहे और अहमदाबाद नगर निगम के चुनाव में जीत के बाद 1992 में उन्हें पार्टी का संगठन सचिव बनाया गया। जब गुजरात में 1996 में भाजपा की पहली सरकार बनी तो वह मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल के अहम सहयोगी के रूप में सामने आए।
भाजपा में रहे शंकर सिंह वाघेला जब पटेल से मतभेद के चलते कांग्रेस में चले गये तो गुजरात में राजनीतिक संकट पैदा हो गया और 1998 में मध्यावधि चुनाव हुए। मध्यावधि चुनाव में भाजपा की जीत हुई लेकिन पटेल से कलह के चलते मोदी को गुजरात से बाहर जिम्मेदारी सौंपी गई। उन्होंने नई दिल्ली आकर भाजपा के महासचिव की जिम्मेदारी संभाली और उसके बाद पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महासचिव की भूमिका संभाली।
गुजरात में साल 2000 में आए भयावह भूकंप में पुनर्निर्माण कार्यों को कथित तौर पर दुरुस्त तरीके से नहीं कर पाने पर 2001 में पटेल की सरकार की लोकप्रियता कम होने लगी। मोदी गुजरात में इस उतार-चढ़ाव के समय लौटे और उन्होंने मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाली। दिसंबर, 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में मोदी के नेतृत्व में पार्टी ने 182 सदस्यीय विधानसभा में 127 सीटें हासिल कर एकतरफा जीत दर्ज की।
साल 2007 में वह दूसरी बार लगातार विधानसभा चुनावों में जीते और सूबे के मुखिया के तौर पर देश ही नहीं दुनिया में उनकी छवि विकास करने वाले नेता की बनने लगी। पिछले साल चुनाव जीतकर वह भाजपा के पहले नेता बने जिसने लगातार तीसरी बार गुजरात की सत्ता पार्टी को दिलाई। इस जीत ने अगले साल लोकसभा चुनावों के लिए उन्हें भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर सबसे अग्रणी नेता बना दिया।
वड़नगर में दामोदरदास मूलचंद मोदी और हीराबेन के मध्यम-वर्गीय परिवार में जन्मे मोदी लंबे समय से संघ से जुड़े रहे। अन्य पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखने वाले इस नेता को 90 के दशक के अंत में वरिष्ठ पार्टी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव प्रचार की कमान सौंपी थी। 2002 के दंगों में अच्छे शासक की भूमिका नहीं निभाने के आरोपों के बीच अमेरिका ने उन्हें वीजा देने से इनकार कर दिया और बाद के सालों में ब्रिटेन ने उनसे संबंध तोड़ दिये। हालांकि उन्होंने कभी दंगों को लेकर पछतावा या अफसोस नहीं जताया।
एक दशक बाद मोदी फिर राजनीति की मुख्यधारा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। दिल्ली में ब्रिटिश उच्चायोग ने उनके साथ पहली बैठक की। वह भाजपा के उन कुछ नेताओं में से हैं जो संचार और सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल में सहज हैं। मोदी के व्यक्तिगत जीवन की बात करें तो खबरों के मुताबिक उन्होंने एक शिक्षिका से विवाह किया था लेकिन उनकी आधिकारिक जीवनी में इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता। (एजेंसी)

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