महाठग: सपनों के नाम पर जालसाजी
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महाठग: सपनों के नाम पर जालसाजी

कुछ लोग सपने बेचते हैं और कुछ इतने शातिर होते हैं जो सपनों के नाम पर करते हैं छल, फरेब और ज़ालसाज़ी का काला कारोबार। एक सुनहरा ख्वाब, रातों-रात दौलतमंद बनने का सपना, एक ऐसा सपना जिसे हर कोई बार-बार देखना चाहता है। हर इंसान की ये दिली ख्वाहिश होती है कि उसका ये ख्वाब बस एक बार सच हो जाए।

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ज़ी मीडिया/क्राइम रिपोर्टर
कुछ लोग सपने बेचते हैं और कुछ इतने शातिर होते हैं जो सपनों के नाम पर करते हैं छल, फरेब और ज़ालसाज़ी का काला कारोबार। एक सुनहरा ख्वाब, रातों-रात दौलतमंद बनने का सपना, एक ऐसा सपना जिसे हर कोई बार-बार देखना चाहता है। हर इंसान की ये दिली ख्वाहिश होती है कि उसका ये ख्वाब बस एक बार सच हो जाए। लोगों की इसी ख्वाहिश को एक शातिर शख्स ने बना लिया धोखाधड़ी और जालसाजी का हथियार। वो फुलटाइम सपने बेचने लगा,दौलतमंद बना देने का ख्वाब दिखाने लगा।
फिर क्या था, अमीर बनने के चक्कर में लोग उसके झांसे में आने लगे। शातिर ठग के शातिराना प्लान से दौलतमंद रखने की ख्वाहिश रखनेवालों की गिनती बड़ी तेजी से बढ़ने लगी। हर राज्य शहर और कस्बों से लोग उसके साथ जुड़ने लगे। जल्द अमीर बनने के चक्कर में अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई उसके हवाले करने लगे, इस उम्मीद में कि जो पैसा वो लगा रहे हैं उससे कई गुना ज्यादा कमाएंगे और जल्द से जल्द दौलतमंद लोगों की फेहरिस्त में शुमार हो जाएंगे। ख्वाब की हकीकत से अनजान ऐसे लोगों की तादाद बढ़ने लगी। देश से लेकर विदेश तक फैले नेटवर्क ने लोगों के जहन में ऐसा जादू किया कि फ्रॉड के चक्कर में फंसने वालों का कारवां लाखों तक पहुंच गया और जब इस ख्वाब की हकीकत सामने आई तो सब कुछ खत्म हो चुका था। सपनों का सौदागर लोगों की गाढ़ी कमाई के अरबों रुपये समेटकर फरार हो चुका था, बच गए थे तो सिर्फ वो लोग जिनके हाथों में थे कुछ कागज़ात और टूटकर बिखरे हुए ढेर सारे सपने।
एक शातिर ने अपना दिमाग चलाया और उसके जाल में एक के बाद एक करके लाखों लोग फंसते चले गए। अपनी शातिराना चालों की बदौलत उसने किया एशिया का सबसे बड़ा फ्रॉड और करीब 32 लाख लोगों को ईजी मनी का सपना दिखाकर झटक लिए 22 सौ करोड़ रुपये। साइबर कानूनों को धता बताते हुए आम लोगों को ठगने वाला शातिर राम सुमिरन पाल नाम का शख्स कितना शातिर है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसने सौ-दो सौ या हजार-दो हजार लोगों को चूना नहीं लगाया बल्कि इसके फैलाये जाल में एक के बाद एक करके लाखों लोग फंसते चले गए। ऑनलाइन कमाई करने के मायाजाल में लोग खुद तो फंसे ही अपने संगी-साथियों और रिश्तेदारों को भी एक के बाद एक करके स्पीक एशिया से जोड़ते गए।
बताया जा रहा है कि आम लोगों के निवेश से इकट्ठा हुए करीब 22 सौ करोड़ रुपय़े की इस पूरी रकम को राम सुमिरन ने अपने भाई रामनिवास और कुछ और सहयोगियों के साथ मिलकर अलग अलग जगहों पर लगा दिया था। आरोप है कि कुछ दिनों तक इन लोगों ने अपने निवेशकों को उनके निवेश के एवज में किये गये काम का कुछ पैसा भी दिया जिससे लोगों में कंपनी को लेकर भरोसा बना और उन्होंने अपने परिचितों से भी कंपनी में पैसे लगवाये। लोगों की बड़ी रकम कंपनी के पास इकट्ठी हो जाने के बाद ये शातिर सारा कुछ समेट कर रफूचक्कर हो गये। बाद में जब लोगों को पैसा मिलना बंद हो गया तब उन्हें अपने ठगे जाने का अहसास हुआ। मामला पुलिस तक भी पहुंचा और फिर शुरू हुई आरोपियों की धरा-पकड़ी।
पुलिस ने स्पीक एशिया के नाम से हजारों करोड़ का गोरखधंधा करने वालों पर शिकंजा जरूर कस दिया है, लेकिन स्पीक एशिया कोई पहली कंपनी नहीं है जो इस तरह का गोऱखधंधा कर रही है। इसके पहले भी ऑनलाइन फ्रॉड के केस सामने आ चुके हैं और इनका दायरा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। देश हो या विदेश ,किसी को ख्वाब दिखाकर लूट लेना नई बात नहीं। इसके बावजूद जालसाजी का ये नेटवर्क रातों-रात देश के छोटे-बड़े शहरों तक जा पहुंचा लेकिन ठगी के हर प्लान की तरह ही जालसाजी का ये प्लान भी सौ फीसदी झूठा था।
घर बैठे दौलतमंद बनने का इतना आसान तरीका अगर सामने आ जाए तो भला ऐसा कौन होगा जो उसे आजमाना नहीं चाहेगा। इस तरीके को बस एक बार आजमाने के चक्कर में ही लोग स्पीक एशिया से जुड़ते गए। इस सपने की शुरुआत हुई साल 2010 में, जब मार्केटिंग मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रेजुएट राम सुमिरन पाल ने अपने भाई के साथ मिलकर सिंगापुर में रजिस्टर्ड कंपनी स्पीक एशिया की फ्रेंचाइजी ली और हिंदुस्तान में शुरू कर दिया ठगी, जालसाजी और धोखाधड़ी का काला कारोबार। कंपनी ने भारतीय मध्यम वर्ग को टारगेट करके ऐसी स्कीम चलाईं कि लोग उसके जाल में फंसते चले गए।
स्पीक एशिया ने ये जाल भी फेंका कि अगर कोई मेंबर कंपनी से नए सदस्य जोड़ता है तो उसे हर नए सदस्य पर 1000 रुपये अतिरिक्त दिए जाएंगे ।ऐसे आकर्षक ऑफर ने लोगों के जहन में जादू कर दिया ।खासकर नौजवानों में तो ऑनलाइन सर्वे करके और कंपनी से नए सदस्य जोड़कर पैसे कमाने की होड़ मच गई। लेकिन ये नौजवान जिसे अपनी कामयाबी समझ रहे थे दरअसल वो निवेशकों की नहीं बल्कि उन जालसाजों की कामयाबी थी, जिन राम सुमिरन पाल और उसके साथियों की थी जिन्होंने मिलकर एशिया का सबसे बड़ा फ्रॉड करने का प्लान बनाया और लाखों लोगों की करोड़ों की कमाई हड़पकर उन्हें बर्बाद कर दिया।
सिंगापुर में हेड ऑफिस ,फाइव स्टार होटलों में सेमिनार ,गोवा में निवेशकों की बैठक और 200 करोड़ रुपये के खर्च पर फिल्मी सितारों का प्रोग्राम, लग्जरी गाड़ियों में घूमने वाले और हाईप्रोफाइल लाइफ जीने वाले स्पीक एशिया के जालासजों ने धोखाधड़ी का ऐसा मायाज़ाल बुना कि उसकी चमक-दमक के सामने लोगों को उनकी सच्चाई पर जरा भी शक नहीं हुआ।
नौजवानों को जोड़ने के लिए ऐसे सेमिनारों में बताया जाता है कि पढ़ाई के साथ-साथ कई स्टूडेंट मल्टी लेवल मार्केटिंग या ऐसी ही दूसरी स्कीमों से लाखों कमा रहे हैं ।लोग नौकरियां छोड़कर कंपनी से फुल टाइम जुड़ रहे हैं ।उसके बाद पहले से ही ट्रेंड किए गए कुछ लोग सामने आते हैं जो अपनी कामयाबी की झूठी कहानी बढ़ा-चढ़ा कर सुनाते हैं और उनकी कहानी सुनकर ही सेमिनार में मौजूद लोग झांसे में आ जाते हैं। स्पीक एशिया ने भी लोगों से मोटी रकम ऐंठने के लिए झूठ का ऐसा ही मायाज़ाल बुना। कंपनी के कर्ताधर्ताओं को अच्छी तरह मालूम था अगर उनके साथ बॉलीवुड के लोगों का नाम जुड़ गया तो लोग उसकी तरफ खिंचे चले आएंगे। इसीलिए स्पीक एशिया ने गोवा में महंगी जगह पर निवेशकों के साथ बैठक की। इस बैठक के लिए खासतौर पर दिल्ली से गोवा के लिए ट्रेन बुक की गई। और फिल्मी सितारों को बुलाकर प्रोग्राम भी कराया गया।
गोवा जैसी बैठकों के बहाने लोगों को बड़े-बड़े होटलों में बुलाया जाता था और वहां भी लोगों को वैसी ही कहानी सुनाई जाती थीं। मसलन-मिस्टर एबीसी पेशे से डॉक्टर हैं, लेकिन उन्होंने डॉक्टरी की प्रैक्टिस छोड़कर फुल टाइम हमारे नेटवर्क के लिए काम करना शुरू कर दिया और आज वो करोड़पति है। घर बैठे उनके खातों में हर महीने लाखों रकम आ रही है, मिसेज ईएफजी हाउस वाइफ हैं, लेकिन हमारी कंपनी में उनकी हैसियत डॉयरेक्टर के बराबर की है, अपने काम की बदौलत वो डॉयमंड लेवल पर पहुंच चुकी हैं और उनके खाते में भी घर बैठे हर महीने मोटी रकम आ रही है, इतने लोगों के अमीर बनने की कहानी सुनकर भला कौन ऐसा होगा जो खुद भी उन्हीं का तरीका इस्तेमाल करके पैसे नहीं कमाना चाहेगा, बस लोगों की यही चाहत स्पीक एशिया के जालसाजों का काम आसान कर देती थी।
लोगों को उनके सपनों के नाम पर ठगने के ये किस्से काफी पुराने है, लेकिन आधुनिकता के चलते ठगों का काम आसान होता रहा है। सबसे अहम बात ये है कि जालसाजों की गिरफ्तारी के बाद भी ठगे गए लोगों को उनकी रकम नहीं मिल पाती क्योंकि वो रकम या तो विदेशों में खोले गए किसी खाते में जमा होती है या फिर खर्च कर दी जाती है। ऐसे में ठगी के शिकार हुए लोगों को हर हाल में नुकसान ही उठाना पड़ता है। जाहिर है ऐसे में ऑनलाइन फ्रॉड को रोकने का दावा करने वाली साइबर क्राइम सेल औऱ आरोपियों को सजा देने वाले कानून पर सवाल तो खड़े होंगे ही।

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