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इस्लामाबाद: उत्तरी वजीरिस्तान इलाके में भारी हवाई हमलों में पाकिस्तानी तालिबान के पूर्व प्रमुख समेत कुल 50 आतंकी मारे गए हैं। मारे जाने वाले इन लोगों में 36 विदेशी लड़ाके भी शामिल हैं।
पाकिस्तान वायु सेना के जेट विमानों ने सोमवार रात को उत्तरी वजीरिस्तान में संदिग्ध आतंकी ठिकाने पर बमबारी की। उत्तरी वजीरिस्तान को तालिबान और अलकायदा के लिए एक सुरक्षित स्थान माना जाता है। इस हमले में कम से कम 50 आतंकी मारे गए।
पाकिस्तानी सेना के एक सूत्र ने कहा, ‘20-21 जनवरी की रात को उत्तरी वजीरिस्तान में हुए हमलों में मारे गए अधिकतर आतंकी विदेशी लड़ाके हैं। इनमें उज्बेकिस्तान के 33, जर्मनी के 3 लड़ाकों समेत महत्वपूर्ण आतंकी कमांडर शामिल हैं। उन्होंने कहा कि मारे गए सैन्य कमांडरों में ‘वाली मोहम्मद (कारी हुस्सैन का पूर्ववर्ती), अस्मत शाहीन बिट्टानी, नूर बादशाह और मौलवी फरहद उज्बेक शामिल हैं।’
बिट्टानी हकीमुल्लाह महसूद की मौत के बाद टीटीपी का प्रमुख रह चुका है अैर वह तालिबानी शूरा (निर्णय लेने वाली परिषद) का भी प्रमुख था। वाली उर्फ तूफान पहले ‘फिदायीन स्कवाड’ का प्रमुख था।
सुरक्षा बलों पर घातक हमलों के जवाब में पाकिस्तानी लड़ाकू विमानों ने उत्तरी वजीरिस्तान में सैन्य शिविरों पर बमबारी की थी। इन शिविरों में तालिबान कमांडर अदनान राशिद का घर भी था। वायुसेना के इस अभियान ने कई लोगों को हैरत में डाल दिया। वर्ष 2007 में स्थानीय तालिबान प्रमुखों के साथ किए गए युद्धविराम के बाद यह पहली बार था जब वायुसेना ने उत्तरी वजीरिस्तान में हवाई हमले किए हों।
उत्तरी वजीरिस्तान पाकिस्तान के सात संघीय प्रशासित कबीलाई इलाकों में से एक है, जहां पर कबीलाई कनून लागू होते हैं। इस क्षेत्र में प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान के नेतृत्व में उग्रवाद फैल हुआ है। स्थानीय मीडिया की खबरों के अनुसार, कई नागरिकों ने उत्तरी वजीरिस्तान से बाहर निकलना शुरू कर दिया है क्योंकि उन्हें व्यापक स्तर पर सैन्य अभियानों का डर है।
मार्के ने कहा, ‘ यदि राजनयिक स्तर की वार्ता में प्रगति होती है तो पेंटागन को अमेरिकी खुफिया समुदाय के साथ मिलकर भारत में जमीनी स्तर पर चलाए जाने वाले अभियान के लिए विशेष क्रियान्वयन योजनाएं बनानी चाहिए।’’ मार्के के इन तर्कों के पीछे का आधार यह है कि वाशिंगटन और इस्लामाबाद की पाकिस्तान में पनपे तालिबान उग्रवादियों के खिलाफ साझा लड़ाई है लेकिन पाकिस्तान हक्कानी नेटवर्क या लश्कर ए तय्यबा की ओर से उत्पन्न खतरों से निपटने का इच्छुक नहीं है जिससे अमेरिका को अफगानिस्तान में स्थित अमेरिकी सैनिकों और सैन्य सुविधाओं पर निर्भर रहने के अपने विवेक पर पुनर्विचार को मजबूर होना पड़ा है ।
हालिया सालों में , अमेरिका और भारत ने आतंकवाद विरोधी सहयोग में उठाए जाने वाले कदमों का अपने स्तर पर विस्तार किया है और ऐसा नवंबर 2008 में मुंबई पर हुए हमलों जैसे किसी भावी हमले की मंशा को भांपकर अपनी रक्षा तैयारी के मद्देनजर किया गया है ।
रिपोर्ट में कहा गया है कि लगातार सामने आ रहे आतंकवादी खतरों तथा पाकिस्तान की ‘स्पष्ट अक्षमता और कुछ मामलों में उसकी इच्छा के अभाव ’ के मद्देनजर अमेरिका को भारत में अपने प्रयासों को बढ़ाना होगा जिसमें भारत की धरती पर सैन्य और खुफिया सुविधाओं की स्थापना भी शामिल है । (एजेंसी)