सूरत: शहर एक युवक ने डायमंड पर अनोखे तरीके से कलाकृति तैयार कर सबको आश्चर्य में डाल दिया है. आकाश सालिया नाम के इस युवक ने असली डायमंड को भारत के नक़्शे का आकर दिया है और इसमें पीएम मोदी की आकृति तैयार की है.
डेढ़ कैरेट के हीरे का किया इस्तेमाल
आकाश सलिया ने डेढ़ कैरेट के हीरे को लेजर इंस्क्रिप्शन से भारत के नक़्शे में बदल कर उसमें पीएम मोदी की आकृति बनायी है और वो अब इस डायमंड को पीएम मोदी को भेंट करना चाहते हैं. सूरत के क़तारगांव में रहने वाले आकाश ने साल 2014-15 में इंटरनेशनल स्कुल ऑफ़ जेम्स एंड ज्वेलरी में अध्ययन करते हुए एक डायमंड को भारत के नक़्शे का आकार देने का काम शुरू किया था.
45 हजार का है डायमंड
इस डायमंड की बात की जाए तो आकाश ने बताया कि साल 1998 में उनके नजदीकी रिश्तेदार ने एक तीन कैरेट का डायमंड ख़रीदा था. उस समय उसकी कीमत 45 हजार रूपये थी. 14 साल के बाद यह डायमंड जब आकाश ने देखा तो उन्हें उसमें भारत का नक्शा होने का आभास हुआ.
हालांकि आकाश स्वीकार करते हैं कि इसका कारण बचपन से उनके मन में रची -बसी देश-भक्ति की भावना के कारण हो सकता है. लेकिन डायमंड देखने के बाद उस डायमंड में भारत का नक्शा बनाने का मन में आया और उन्होंने उसपर काम शुरू कर दिया.
रोजाना 5 घंटे की मेहनत
इस खास डायमंड पर रोज पांच घंटे काम करके लगभग दो महीने में आकाश ने डायमंड को भारत के नक़्शे में बदल दिया. यह काम इतना आसान नहीं था क्योंकि लेजर द्वारा काम किया जाना था और लेजर द्वारा डायमंड के टूट जाने की आशंका बनी रहती है.
जब इस डायमंड को भारत के नक़्शे में तब्दील किया तब डायमंड का वजन 3 कैरेट से 1.46 कैरेट हो गया. जब नक्शा तैयार हो गया तो उसे सलामी देकर सुरक्षित रख दिया गया.
भारत के नक्शे में ऐसे आए पीएम मोदी
आकाश ने साल 2017 में फिर इस डायमंड को तिजोरी से बाहर निकाला और उसपर कुछ और भी नया करने का विचार आया. उस समय भी नरेंद्र मोदी ही प्रधानमंत्री थे. उस समय पीएम मोदी स्वच्छ भारत, डिजिटल इण्डिया, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे कई देश हित के काम में लगे हुए थे.
उनके इन कामों से प्रभावित होकर आकाश ने पीएम मोदी की आकृति ही इस डायमंड में बनाने का निर्णय लिया. फिर लेजर चला और एक महीने की मेहनत के बाद पीएम मोदी की आकृति इस डायमंड पर उभर कर आ गई.
बहुत अभ्यास के बाद मिली सफलता
आकाश ने पहले नक्शा और पीएम मोदी की आकृति कांच पर बना के तैयार की थी. आकाश ने बताया कि पहली बार डायमंड को भारत के नक्शे का आकार देना था. तब 10 से 12 बार कांच पर लेजर से काम किया तब जाकर उसमें सफलता मिलने के बाद डायमंड पर काम शुरु किया.
ये काम इतना आसान नहीं था. लेकिन शांत मन से सच्ची लगन और कठिन परिश्रम से काम को सफल बनाया. क्योंकि वोल्टेज और डेप्थ में एक प्वाइंट भी ज्यादा होने से पूरा डायमंड टूट जाने की आशंका थी.
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