नई दिल्लीः बात छुट्टी की हो तो इससे समझौता कोई नहीं करना चाहता, फिर चाहे वह किसी संस्थान में सबसे छोटी पद पर बैठा शख्स हो या फिर देश की सत्ता में सर्वोच्च पदों पर बैठी शख्सियत. छुट्टी के मामले में कोई बात नहीं. कोई समझौता नहीं. अगर छुट्टी काट ली जाए तो अलग बात है, लेकिन पूछ कर उस दिन काम कराने की बात है तो नो चांस, फिर सबका जवाब एक ही आएगा, नहीं मतलब नहीं.
मसला ही ऐसा है कि दो लोग भले ही कितने भी धुर विरोधी क्यों न हो, लेकिन अगर छुट्टी पर आंच आई तो दोनों की तलवारें साथ-साथ उस पर उठ जाएंगी, जिसने छुट्टी काटने की बात की है.
ऐसा नजारा संसद में दिखा है
आप कहेंगे हम तबसे छुट्टी की महिमा क्यों गा रहे हैं, तो जनाब इसकी बहुत बड़ी वजह है. वजह भी ऐसी कि जिसे टाला ही नहीं जा सकता है. छुट्टी का यह मुद्दा देश की संसद में उठा था. आशा थी कि हर मसले पर जहां इतनी हाय तौबा मची रहती है. इनकार-तकरार का खेल चलता है वहां इस एक छोटी सी बात पर कोई हां-कोई ना कहेगा ही.
लेकिन जैसे ही स्पीकर ओम बिड़ला ने यह प्रस्ताव रखा सभी ने एक साथ जोर-शोर से ना कह दिया. हुआ यूं कि सदन में स्पीकर ओम बिड़ला ने प्रस्ताव रखा कि शनिवार-रविवार के अवकाश रद्द करके अनुदान मांगों पर चर्चा चलाई जा सकती है. इतना सुनना था कि सभी सांसद एक साथ, एक सुर में नो (नहीं) की आवाज बुलंद करने लगे.
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क्यों रद्द करना चाहते थे छुट्टी
स्पीकर ने सांसदों से अपील करते हुए कहा था कि सदन की कार्यवाही पिछले दिनों काफी बाधित रही है. ऐसे में शनिवार-रविवार को लंबित पड़ी छह अनुदान मांगों पर चर्चा कराई जाए.
उनका मत था कि अगर सदन की अनुमति हो तो रविवार और शनिवार के अवकाश को रद्द कर दिया जाए और यह चर्चा कराई जाए, लेकिन पक्ष-विपक्ष के एक भी सांसद तैयार नहीं हुए.
मेघावाल बोले-मुझे कुछ नहीं कहना
सांसदों के इस तरह मना करने पर स्पीकर ने संसदीय कार्य राज्य मंत्री की ओर रुख किया. यह पद अर्जुन राम मेघवाल संभाल रहे हैं और उन पर सदन की कार्यवाही और सरकार का कामकाज चलाने का जिम्मा है. मेघवाल ने सांसदों की नो सुनने के बाद कहा कि सदस्यों ने अपना मत जाहिर कर दिया है और अब कुछ नहीं कहना.
स्पीकर ने सांसदों को हिदायत देते हुए कहा कि अब कोई लंच ब्रेक नहीं होगा, साथ ही गुरुवार और शुक्रवार को देर रात तक अनुदान मांगों पर चर्चा चलेगी.
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रेलवे अनुदान मांगों पर चर्चा शुरू
स्पीकर के आदेश के बाद लोकसभा में रेलवे की अनुदान मांगों पर चर्चा शुरू भी हो गई है. इस बीच विपक्षी दलों की ओर से मांग की गई कि सत्र को बढ़ाया जाए, इस दलील पर स्पीकर ने कहा कि अनुदान मांगों पर बुलेटिन जारी होने से पहले चर्चा की जाती है. इस पूरे वाकये से यह तो तय है कि विभिन्न मुद्दों पर हायतौबा मचाने वाले नेता आराम के मामले में एक ही हैं.
जैसे ही छुट्टी पर या उनकी किसी सुविधाओं में कटौती पर बात होती है तो वे पक्ष-विपक्ष भूलकर उसके लिए मिल कर आवाज बुलंद करते हैं. नागरिकों को भी यह बात समझनी चाहिए.