Story of Begum Samru: मुगल से लेकर अंग्रेज! सब थे इस खूबसूरत हसीना के पीछे 'पागल', अंत में इस्लाम छोड़ बन गई थी ईसाई
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Story of Begum Samru: मुगल से लेकर अंग्रेज! सब थे इस खूबसूरत हसीना के पीछे 'पागल', अंत में इस्लाम छोड़ बन गई थी ईसाई

Begum Samru History: चांदनी चौक के एक कोठे में तबले की धुन पर नाचने वाली 14 साल की लड़की को देखते ही अंग्रेज सौम्ब्रे उसका दीवाना हो गया था. यह लड़की कोई और नहीं बल्कि बेगम समरू ही थी. उस वक्त बेगम समरू का नाम फरजाना था और उसे भी अंग्रेज से प्यार हो गया. यहीं से शुरू होती है बेगम समरू की कहानी...

फाइल फोटो

Most beautiful lady of Mughal period: भारतीय इतिहास में मुगलों की किस्से बहुत मशहूर हैं, इसी मुगल इतिहास से ताल्लुक रखने वाली एक बेहद शक्तिशाली महिला जिसकी परवरिश दिल्ली के चांदनी चौक में हुई लेकिन अपनी समझदारी और बहादुरी के बलबूते उसने अपना नाम उस दौर के मुगल बादशाह से लेकर अंग्रेजों तक को रटा रखा था. साल 1767 का दौर था जब चांदनी चौक में रेड लाइट एरिया हुआ करता था. यहां मनोरंजन के लिए अंग्रेज सैनिक पहुंचा करते थे और ऐसे ही कोठे में विदेशी सैनिक वॉल्टर सौम्ब्रे अक्सर जाया करता था. तबले की धुन पर नाचने वाली 14 साल की लड़की को देखते ही सौम्ब्रे उसका दीवाना हो गया. यह लड़की कोई और नहीं बल्कि बेगम समरू ही थी. उस वक्त बेगम समरू का नाम फरजाना था.

प्यार में किया अंग्रेजों से युद्ध

आपको बता दें कि वॉल्टर सौम्ब्रे एक ऐसा सैनिक था जो अंग्रेजों के खिलाफ मुगलों की ओर से लड़ता था. फरजाना के प्यार में पड़े इस सैनिक ने साथ जीने-मरने की कसमें खाईं थी. फरजाना को वॉल्टर इतना पसंद था कि उनसे भी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में हिस्सा लिया. बाद में वो दिल्ली से छोड़कर मेरठ के सरधाना आ गए. साल 1778 में वॉल्टर की मौत के बाद शाह आलम द्वितीय ने फरजाना को सरधाना का जागीरदार बना दिया. साल 1822 में पति की मौत के बाद फरजाना ने उसकी याद में एक बड़ा ही भव्य कैथोलिक चर्च बनवाया. इस दौरान उसका शासन बढ़ता गया और उसके हिस्से में अलीगढ़ से लेकर सहारनपुर तक एरिया आ गया था.

बड़ी शख्सियत बन गई थी फरजाना

बेगम समरू की शख्सियत आप इससे समझ सकते हैं कि एक बार जब मुगल साम्राज्य पर मराठा, जाट, सिख और रोहिल्लों की नजर पड़ी. तब बेगम समरू ने अपनी सेना मुगलों की दी थी इसलिए मुगल भी उसकी खूबसूरती और बहादुरी के दिवाने थे. फरजाना को उस दौर में कुलीन वर्ग में शामिल किया जाता था. बेगम की उपाधि भी फरजाना को मुगल बादशाह  से ही मिली थी. करीब 47 साल तक राज करने के बाद फरजाना को अंदाजा हो गया था कि एक न एक दिन भारत पर अंग्रेजों का राज होगा इसलिए उसने इस्लाम छोड़कर ईसाई धर्म अपना लिया था. इस दौरान उनका नाम जोहना नोबिलिस सोम्ब्रे पड़ गया था.

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