पोपले नवाब के लिए बनी थी 'गलौटी कबाब', लखनऊवी टुंडे कबाबी का नाता है बेहद पुराना; जानें पूरा किस्सा
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पोपले नवाब के लिए बनी थी 'गलौटी कबाब', लखनऊवी टुंडे कबाबी का नाता है बेहद पुराना; जानें पूरा किस्सा

Galouti Kebab History: क्या आपको पता है कि आखिर गलौटी कबाब का कॉन्सेप्ट कहां से आया? इसके पीछे का एक बेहतरीन इतिहास भी है. गलौटी कबाब की खोज किसने की, इसके बारे में कुछ दावे किए जाते रहे हैं और आज भी इसका किस्सा मशहूर है.

 

पोपले नवाब के लिए बनी थी 'गलौटी कबाब', लखनऊवी टुंडे कबाबी का नाता है बेहद पुराना; जानें पूरा किस्सा

Galouti Kebab: लखनऊ के टुंडे कबाब तो काफी मशहूर हैं और जैसे ही लोग इसका नाम सुनते हैं तो उनके भी मुंह में पानी आ जाता है. ग्लोबल लेवल पर यह रेस्टोरेंट ‘दुनिया के मोस्ट लीजेंडरी रेस्टोरेंट्स 2023’ की सूची में छठे स्थान पर रहा. लखनऊ के अलावा अब इसका जायका दिल्ली में भी लिया जा सकता है. फिलहाल, क्या आपको पता है कि आखिर गलौटी कबाब का कॉन्सेप्ट कहां से आया? इसके पीछे का एक बेहतरीन इतिहास भी है. गलौटी कबाब की खोज किसने की, इसके बारे में कुछ दावे किए जाते रहे हैं और आज भी इसका किस्सा मशहूर है. बताया जाता है कि इसकी खोज लखनऊ में हुई थी. 

लखनऊ में ही हुई थी कबाब की खोज

लखनऊ अपनी नवाबी संस्कृति और शाही व्यंजनों के लिए मशहूर है, इसी शहर में इस लजीज कबाब की खोज हुई थी. हालांकि कबाबों का इतिहास 13वीं सदी से जुड़ा है, लेकिन इस खास कबाब को एक खास शख्स के लिए तैयार किया गया था. यह शख्स कोई और नहीं बल्कि नवाब सिराज-उद-दौला के उत्तराधिकारी नवाब असफ-उद-दौला थे. इन्होंने भारतीय-पाक कला को नई ऊंचाइयां दीं और आज भी इन्हें इस क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान के लिए याद किया जाता है.

नवाब थे बेहद ही शौकीन

नवाब को खाने का बेहद शौक था. उनके खानसामा हमेशा नए-नए व्यंजन बनाने में जुटे रहते थे ताकि नवाब का स्वाद बदले ना. कहा जाता है कि नवाब जो कुछ भी खाते थे, उसका स्वाद इतना लाजवाब होता था कि न सिर्फ उनके दरबारी बल्कि महल में काम करने वाले मजदूर भी उसका स्वाद चखने के लिए बेताब रहते थे. उम्र के साथ जब नवाब के दांत टूट गए तो उनके रसोइयों ने उनके लिए एक खास किस्म का कबाब तैयार किया जो न केवल स्वादिष्ट था बल्कि खाने में भी आसान था.

नवाब को मीट के कबाब बेहद पसंद थे, लेकिन उम्र के साथ उनके दांत कमजोर हो गए थे. इस समस्या का समाधान खोजने के लिए उनके खानसामा, हाजी मोहम्मद फकर-ए-आलम ने एक ऐसा कबाब बनाने का बीड़ा उठाया जो न केवल स्वाद में परंपरागत कबाब जैसा हो बल्कि बिना दांतों के भी आसानी से खाया जा सके. उनकी इस कोशिश का नतीजा था गलौटी कबाब. 'गलौटी' शब्द का अर्थ ही होता है 'मुलायम' और यह कबाब वाकई इतना मुलायम होता है कि यह मुंह में जाकर घुल जाता है.

दिल्ली के लोग खाने के बड़े शौकीन हैं और वह लखनऊ के टुंडे कबाब को बेहद ही मिस करते हैं. जब भी कोई लखनऊ जाता तो लोग उनसे यह कबाब मंगवा जरूर लेते थे. फिलहाल, अब टुंडे कबाबी ने दिल्ली में भी कदम रख दिया है. यहां के लोग अब ऑनलाइन ऑर्डर करके स्विगी से घर बैठे गलौटी कबाब, पराठे और दम बिरयानी जैसे खानों का स्वाद ले सकते हैं. टुंडे कबाबी के मालिक मोहम्मद मीजान ने कहा, "पांच साल पहले जब स्विगी ने हमारे रेस्टोरेंट में कदम रखा था, तब से हमने ऑर्डर्स में अच्छी खासी बढ़ोतरी देखी है. हमने दिल्ली में अपना पहला आउटलेट खोला है और स्विगी के साथ इस सफल साझेदारी को जारी के लिए उत्साहित हैं."

क्या है टुंडे कबाबी का इतिहास?

लखनऊ के चौक एरिया में स्थित टुंडे कबाबी 1905 से लखनऊ की विरासत का अनूठा प्रतीक बना हुआ है. टुंडे कबाबी की कहानियां बिना दांतों वाले नवाब से जुड़ी हैं, जो नरम कबाब का स्वाद लेना चाहते थे. इस व्यंजन को हाजी मुराद अली की अनूठी प्रतिभा के लिए जाना जाता है. एक हाथ से दिव्यांग होने के कारण उन्हें टुंडे कहा जाता था. उन्होंने बेहद नरम और मुंह में घुल जाने वाले गलौटी कबाब बनाए.

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