Old Delhi: तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद पुरानी दिल्ली अपने अस्तित्व पर अडिग रही. इसका इतिहास बड़ा रोचक है. आज भारत की राजधानी नई दिल्ली है लेकिन पुरानी दिल्ली का अपना अलग अंदाज है, अलग खानपान है और पुरानी दिल्ली की गलियां आज भी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहती हैं.
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History Of Old Delhi: भारत की राजधानी दिल्ली भारत के लोगों के बीच खूब लोकप्रिय है. रोजाना हजारों-लाखों लोग दिल्ली आते हैं और दिल्ली से जाते हैं. दिल्ली वाले में रहने वाले लोग तो दिल्ली को प्यार करते ही हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली में क्या अंतर है? पुरानी दिल्ली कितनी पुरानी है? आइए इन सब चीजों के बारे में जानते हैं. असल में दिल्ली के कुछ पुराने इलाकों को लोग पुरानी दिल्ली कहते हैं क्योंकि यह अभी भी पुराने आकर्षण और जीवंतता को दिखाता है.
पुरानी दिल्ली ने दिल्ली की संस्कृति को आकार देने में एक अनिवार्य भूमिका निभाई है. हाल ही में एक मीडिया रिपोर्ट में पुरानी दिल्ली के बारे में यह बताया कि पुरानी दिल्ली कितनी पुरानी है. यहां के भोजन, संकरी भीड़-भाड़ वाली गलियां, ऐतिहासिक स्मारक और पारंपरिक खरीदारी क्षेत्र, सभी एक साथ मिलकर आपको पुराने समय वाले एक स्थान पर ले जाते हैं. साथ ही, इस जगह का जबरदस्त अलहदा अनुभव कुछ ऐसा है जो आपको शायद ही राजधानी के किसी अन्य हिस्से में नहीं मिलेगा.
स्थापना मुगल सम्राट शाहजहां
इन जगहों का माहौल और आकर्षण ऐसा है कि कलाकार, फिल्म निर्माता और कला से जुड़े लोग इसकी गलियों में खिंचे चले आते हैं. इसके इतिहास की बात करें तो दिल्ली की स्थापना मुगल सम्राट शाहजहां ने 1639 में की थी, और उस समय इसे शाहजहां नाबाद कहा जाता था. यह मुगलों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में था और फिर मुगल वंश के अंत तक यह मुगलों की राजधानी बनी रही. यह भी दिलचस्प है कि शाहजहां ने 1638 से 1649 तक इस शहर के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाई थी.
रिपोर्ट के मुताबिक शुरू में दीवारों से घिरा यह शहर एक चौथाई वृत्त के आकार जैसा था, जिसका केंद्र बिंदु लाल किला था. शहर एक दीवार से घिरा हुआ था, जबकि दीवार में कुल 14 द्वार थे. जिनमें उत्तर पूर्व में निगमबोध गेट, उत्तर में कश्मीरी गेट, उत्तर में मोरी गेट, दक्षिण पूर्व में अजमेरी गेट शामिल थे. मुगल काल में रात के समय सभी द्वार बंद रहते थे. आज, यदि आप इस जगह का दौरा करते हैं, तो आप पाएंगे कि कुछ द्वार अभी भी खड़े हैं, हालांकि दीवारें जरूर गिर गई हैं. ये सभी गेट पुरानी दिल्ली के इतिहास और सम्मान की कहानी हैं.
'नया नौ दिन पुराना सब दिन'
दिल्ली का पहला थोक बाजार, चावड़ी बाजार, 1840 में जनता के लिए खोला गया था. अन्य थोक बाजारों में खारी बावली, जो तमाम प्रकार के सूखे मेवे, जड़ी-बूटियों और मसालों के लिए प्रसिद्ध है, उसे 1850 में खोला गया था. इसके अलावा, लोकप्रिय फूल मंडी या फूल बाजार 1869 में खुला. अच्छी बात ये है कि ये सभी बाजार अब भी जीवंत हैं और अभी भी अच्छी खासी भीड़ खींच लेते हैं. कुल मिलाकर अगर ये कहा जाए कि पुरानी दिल्ली अभी भी 1600 के दशक को उजागर कर देती है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.