पाकिस्तान का चरित्र एक कुत्ते की दुम की तरह... शहीद सौरभ के मां-बाप को अब भी न्याय की उम्मीद
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पाकिस्तान का चरित्र एक कुत्ते की दुम की तरह... शहीद सौरभ के मां-बाप को अब भी न्याय की उम्मीद

Operation Vijay: सौरभ बचपन से ही किसी ऐसी संस्था के साथ काम करना चाहते थे, जहां ईमानदारी हो और फिर सौरभ ने सेना को चुना. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने देश की सेवा करने का फैसला किया और सीडीएसआर के माध्यम से सेना में शामिल हो गए.

 

पाकिस्तान का चरित्र एक कुत्ते की दुम की तरह... शहीद सौरभ के मां-बाप को अब भी न्याय की उम्मीद

Kargil War Operation Vijay: आज से 25 साल पहले 1999 के करगिल युद्ध में ऑपरेशन विजय के दौरान करगिल में शहीद होने वाले पहले सेना अधिकारी थे स्वर्गीय कैप्टन सौरभ कालिया. कैप्टन सौरव कालिया और उनके पांच जवानों को 22 दिनों तक कैद में रखा गया था, जिसके बाद उन्हें यातना देकर शहीद किया गया इस बात का आज भी सौरभ के मां-बाप को मलाल है. वह एक हिमाचल प्रदेश के छोटे से शहर पालमपुर से थे. कैप्टन सौरब कालिया का जन्म 29 जनवरी 1976 को अमृतसर में हुआ था, उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पालमपुर के डीएवी पब्लिक स्कूल से की.

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शहीद सौरभ ने कब सेना में ज्वाइनिंग को सोचा?

सौरभ बचपन से ही किसी ऐसी संस्था के साथ काम करना चाहते थे, जहां ईमानदारी हो और फिर सौरभ ने सेना को चुना. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने देश की सेवा करने का फैसला किया और सीडीएसआर के माध्यम से सेना में शामिल हो गए. सेना में वह 12 दिसंबर 1998 को 4 जाट में कमीशन अधिकारी के रूप में शामिल हुए और उन्हें करगिल में तैनात किया गया. वह युवा प्रतिभाशाली सेना अधिकारी थे और सेना में जाने पर बहुत खुश थे. उन्होंने 17000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर बहरंग कॉम्प्लेक्स की सामान्य ड्यूटी संभाली और उन्हें काकसर सब सेक्टर में घुसपैठ की जांच करने का काम सौंपा गया.

करगिल में उनके साथ क्या हुआ था?

15 मई 1999 को उनकी बटालियन के 5 अन्य सेना जवानों के साथ नियमित गश्त पर निकले थे. लगभग एक बज रहे थे, उनपर घात लगाकर हमला किया गया और उन्हें जिंदा पकड़ लिया गया. कैप्टन सौरभ कालिया और उनके पांच जवानों को 22 दिनों तक कैद में रखा गया था, जिसके बाद उन्हें यातना देकर शहीद कर दिया गया. जैसा कि 09-06-1999 को पाकिस्तानी सेना द्वारा सौंपे गए उनके शवों से स्पष्ट था.

शहीद सौरभ की मां ने क्या कहा?

कैप्टन सौरभ कालिया की मां बताती हैं कि उनकी शहादत की शुरुआती खबर परिवार को एक अखबार में छपे आर्टिकल से लगी लेकिन जब उन्होंने पालमपुर स्थित सेना के कार्यालय में जाकर पता करवाया तब भी उन्हें यह बताया गया कि 'आर्मी में कोई भी अच्छी खबर नहीं होती' (In Army No News Is Good News) लेकिन आखिरकार वो दुखद खबर पक्की निकली और परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा.

आज करगिल युद्ध को 25 वर्ष हो गए हैं लेकिन सौरभ और उनके पांच जवानों को दी गई अमानवीय यातनाएं आज भी सौरभ की मां को कचोटती है. लोगों का जो प्यार और सम्मान मिला उसने सब कुछ भुला दिया है. वहीं सौरभ की मां विजया कालिया ने सभी युवाओं को संदेश दिया कि वो कहीं भी काम करें लेकिन एक अच्छे नागरिक बनें.

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शहीद सौरभ के पिता ने क्या कहा?

कैप्टन सौरव कालिया के पिता बताते हैं कि सौरभ शांत स्वभाव के थे और उनके मन में क्या है कोई नहीं जान सकता था. बेशक सौरभ शारीरिक तौर पर उनके साथ नहीं हैं लेकिन जिस तरह से लोगों ने प्यार और सम्मान दिया है सौरभ हमेशा उनके साथ हैं. वहीं, सौरभ के साथ हुए अमानवीय व्यवहार को लेकर पिता ने लंबी-लड़ाई लड़ी लेकिन आज दिन तक कुछ हासिल नहीं हुआ. यही वजह है कि उनके मन में सरकारों के प्रति अच्छी छवि नहीं हैं.

उनका मानना है कि सरकारों से आज तक आश्वासन ही मिले और हुआ कुछ नहीं. वहीं इस मामले को लेकर सौरभ के पिता सुप्रीम कोर्ट भी गए लेकिन वहां भी कोविड के बाद कोई सुनवाई नहीं हुई. आज करगिल युद्ध के 25 वर्ष होने पर कहते हैं कि हमारे देश के सैनिक -50 से 50 डिग्री तापमान में देश की सेवा करते हैं. इसलिए देश के हर नागरिक से अपील करते हैं कि जहां भी हो एक सैनिक को सम्मान जरूर दें. वहीं अबकी सरकार के पाकिस्तान के प्रति रवैये को सही मानते हैं और कहते हैं कि पाकिस्तान के डीएनए में ही झूठ है. पाकिस्तान का चरित्र एक कुत्ते की दुम की तरह है जो कभी सीधी नहीं होगी, हमेशा टेढ़ी ही रहेगी.

रिपोर्ट: अनूप चंद धीमान

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