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Shocking News: सुना है कच्छ में धोलावीरा के विश्व धरोहर स्थल से 51 किलोमीटर दूर लोद्रानी गांव में सोना छिपा है. इसी आशा से करीब पांच साल पहले गांव के कुछ लोगों ने मिलकर सोना खोजने के लिए खुदाई शुरू कर दी थी, लेकिन उन्हें सोने की जगह हड़प्पाकालीन सभ्यता का एक किलाबंद बस्ती मिली. शुरुआती खोजों के बाद पुरातत्वविदों ने इस खुदाई को अपने हाथ में लिया और और भी बड़ी खोजें कीं. अजय यादव और उनके प्रोफेसर डेमियन रॉबिन्सन दोनों ऑक्सफोर्ड के स्कूल ऑफ आर्कियोलॉजी से जुड़े हैं. वह खोज का नेतृत्व करने वाले मुख्य पुरातत्वविद थे. उन्होंने बताया कि नई जगह की वास्तुकला की बनावट धोलावीरा से काफी मिलती-जुलती है.
सोना खोजने चले थे गांव वाले, मिल गई सभ्यता
टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए अजय यादव ने कहा कि पहले इस जगह को बड़े-बड़े पत्थरों का ढेर समझकर नजरअंदाज कर दिया गया था. उन्होंने कहा, "गांववालों को लगता था कि यहां मध्यकालीन किला और दबा हुआ खजाना है. लेकिन जब हमने इसकी जांच की तो हमें हड़प्पाकालीन बस्ती मिली, जहां लगभग 4,500 साल पहले लोग रहते थे." इस जगह की औपचारिक पहचान जनवरी में हुई है और इसका नाम मोरोधारो (गुजराती शब्द जिसका मतलब कम नमकीन और पीने योग्य पानी है) रखा गया है.
पुरातत्वविदों की है ये राय
अजय यादव के अनुसार, खुदाई से ढेर सारे हड़प्पाकालीन बर्तन मिले हैं, जो धोलावीरा में पाए जाने वालों से मिलते-जुलते हैं. ये बस्ती हड़प्पाकाल के परिपक्व (2,600-1,900 ईसा पूर्व) से देर के (1,900-1,300 ईसा पूर्व) चरण की लगती है. पुरातत्वविदों का कहना है कि विस्तृत जांच और खुदाई से और भी जानकारियां मिलेंगी. उन्होंने कहा, "हमारी सबसे महत्वपूर्ण खोज यह है कि मोरोधारो और धोलावीरा दोनों ही समुद्र पर निर्भर थे. चूंकि यह रण (मरुस्थल) के इतने करीब है, इसलिए यह मान लेना सुरक्षित है कि जो बाद में मरुस्थल बन गया, उस समय शायद वहां जहाज चल सकते थे."