पाकिस्तान से आई ये परंपरा: 40 दिन तक लेते हैं हनुमान का रूप, दशहरे पर गदा मारने के बाद ही जलते हैं रावण
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पाकिस्तान से आई ये परंपरा: 40 दिन तक लेते हैं हनुमान का रूप, दशहरे पर गदा मारने के बाद ही जलते हैं रावण

Kaithal News: दशहरा उत्सव पर कैथल में एक खास तरह की परंपरा मनाई जाती है. इस परंपरा के तहत कुछ युवक प्रभु हनुमान का स्वरूप अपने शीश पर धारण करने के बाद पूरे शहर में घूमते हैं. 

 

पाकिस्तान से आई ये परंपरा: 40 दिन तक लेते हैं हनुमान का रूप, दशहरे पर गदा मारने के बाद ही जलते हैं रावण

Pakistan Tradition Came In Kaithal: हरियाणा के कैथल में कुछ अलग तरह से दशहरा मनाया जाता है. यहां पर दशहरा उत्सव हनुमान के स्वरूपों से होती है. कुछ लोग चालीस दिन पूजा करते हैं, व्रत रखते हैं और यहां के लोग हनुमान का स्वरूप लेने वाले लोगों को अपने घरों में निमंत्रण देते है. फिर दशहरे के दिन भगवान हनुमान के स्वरूपों को धारण करने वाले लोग रावण पर गदा से प्रहार करते हैं. इसके बाद ही कैथल में रावण का दहन किया जाता है.

कैथल में दशहरे पर होती है अनोखी परंपरा

दशहरा उत्सव पर कैथल में एक खास तरह की परंपरा मनाई जाती है. इस परंपरा के तहत कुछ युवक प्रभु हनुमान का स्वरूप अपने शीश पर धारण करने के बाद पूरे शहर में घूमते हैं. परंपरा के अनुसार, जब तक यह स्वरूप अपनी गदा से रावण के शरीर पर प्रहार नहीं करते, तब तक रावण दहन नहीं होता है. यह परंपरा भारत की आजादी के बाद पाकिस्तान में रहने वाले लोगों द्वारा कैथल में आई. जो लोग हनुमान जी का स्वरुप धारण करते हैं, वह 40 दिन का व्रत रखते हैं, घर से बाहर रहते हैं और जमीन पर सोते हैं. केवल एक समय फल इत्यादि का सेवन करते हैं.

भगवान हनुमान की स्वरूपों की होती है पूजा

इन 40 दिनों के बाद दशहरे वाले दिन सभी भगवान हनुमान की स्वरूपों की पूजा-अर्चना करते हैं.  इन स्वरूपों लंबाई 3 फुट से लेकर 12 फीट तक होती है. लोगों की आस्था है कि इन 40 दिनों के तप के बाद भगवान हनुमान जी की शक्ति इन स्वरूपों में आ जाती है. दशहरे के दिन लोग इन स्वरूपों को धारण करने वालों को अपने घर में निमंत्रण देते हैं और मन्नतें मांगते हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं. कथित जानकारी के अनुसार, पाकिस्तान से आई परंपरा को एक परिवार लेकर आया था. यह स्वरूप केवल कैथल और पानीपत में ही प्रचलित है.

गदा मारने के बाद ही होता है रावण दहन

इन स्वरूपों का निर्माण पानीपत में होता है. जो कोई भी इन स्वरूपों का निर्माण करता है, वह खुद भी 40 दिन का व्रत करता है और बड़ी शुद्धता के साथ इनको बनाया जाता है. यह स्वरूप ढोल-नगाड़ों के साथ नाचते हुए पूरे शहर में घूमते हैं और रावण दहन से पहले अपनी गदा से रावण के शरीर पर प्रहार करते हैं. तब कैथल के रावण का दहन होता है.

रिपोर्ट: विपिन शर्मा

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