चाट एक ऐसा स्ट्रीट फूड (Indian Street Food) है, जिसके बारे में सोचकर ही मुंह में पानी आने लग जाता है. इसे खाने के लिए किसी खास अवसर का इंतजार करने की भी जरूरत नहीं होती है. इसे कोई भी, कभी भी खा सकता है. कई तरीकों से बनाई जाने वाली चाट सेहत (Chaat Benefits For Health) के लिए भी काफी फायदेमंद मानी जाती है. जानिए कब और कैसे हुई थी फायदेमंद चाट की शुरुआत (Chaat History).
चाट के आविष्कार (Who Invented Golgappa) को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं. उनमें से एक है मुगल बादशाह शाहजहां (Shah Jahan) के दरबार की कहानी. खान-पान विशेषज्ञ कृष दलाल की मानें तो चाट का जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ था. 16वीं सदी में शाहजहां के शासन में हैजा बीमारी (Cholera Pandemic) फैली थी. कई कोशिशों के बाद भी कोई वैद्य या हकीम इसे नियंत्रित नहीं कर पा रहा था.
हैजा (Cholera Pandemic) फैलने पर एक खास इलाज की सलाह दी गई थी. उसके तहत एक ऐसा व्यंजन बनाने की सलाह दी गई, जिसमें कई मसालों का इस्तेमाल हो ताकि पेट के अंदर बैक्टीरिया (Bacteria) को खत्म किया जा सके. यहां से मसाला चाट (Chaat History) का जन्म हुआ. कहा जाता है कि उस चाट को पूरी दिल्ली (Delhi Chaat) के लोगों ने खाया था.
उस समय दरबार के चिकित्सक हाकिम अली के मुताबिक, गंदे पानी की वजह से लोगों को पेट की बीमारियां हो रही थीं. इसके बाद उनकी सलाह पर ही इमली, लाल मिर्च, धनिया और पुदीना जैसे मसालों से एक खास व्यंजन (Spicy Chaat) को तैयार किया गया. इस कहानी की सच्चाई का कोई प्रमाण नहीं है. लेकिन आज उत्तर प्रदेश से निकली चाट साउथ एशिया तक मशहूर है. पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश में भी चाट के शौकीनों (Chaat Lovers) की कोई कमी नहीं है.
कुछ इतिहासकार (Historians) चाट को दही भल्ले (Dahi Bhalle History) से जोड़कर देखते हैं. 12वीं सदी में संस्कृत की इनसाइक्लोपीडिया (Encyclopaedia) कही जाने वाली मानसओलसा में दही वड़े का जिक्र है. इस किताब को सोमेश्वरा III ने लिखा था और उन्होंने कर्नाटक पर राज किया था. फूड हिस्टोरियन (Food Historian) केटी आचाया के मुताबिक, 500 ईसा पूर्व भी दही वड़े के बारे में बताया गया है. मानसओलसा में वड़ा को दूध में, चावल के पानी में या फिर दही में डुबोने के बारे में बताया गया है (Dahi Vada Recipe).
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