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A Life In Prizes: जापान के लोकप्रिय कॉमेडियन तामोआकी हामात्सु को नासुबी के नाम से जाना जाता है. उन्होंने अपने 15 महीने के कठिन अनुभव के बारे में विस्तार से बताया है. यह अनुभव उस समय का है, जब वह जापान के भयानक कठिन गेम शो 'ए लाइफ इन प्राइज़ेज़' में भाग ले रहे थे. इस शो के दौरान नासुबी को कुत्ते का खाना खाने के वीडियो रिकॉर्ड किए गए थे, उन्हें पूरी तरह से अलग-थलग रखा गया था और उन्हें अपनी ज़िंदगी चलाने के लिए कठिन कार्यों को करना पड़ता था. यह शो 1998 में शुरू हुआ था और इसके शिखर पर इसे 30 मिलियन दर्शक मिले थे, साथ ही यह इंटरनेशनल लेवल पर भी हिट हो गया था.
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15 महीने की दर्दनाक अनुभव की कहानी
नासुबी को इस शो के दौरान निर्वस्त्र रखा गया था और उन्हें एक खाली अपार्टमेंट में बंद कर दिया गया था. उनका एकमात्र उद्देश्य था, पुरस्कार जीतकर बुनियादी ज़रूरतें पूरी करना, जैसे कि खाना. नासुबी को यह नहीं पता था कि उनकी हर गतिविधि लाखों जापानी दर्शकों को लाइव दिखायी जा रही थी. अब उनकी कहानी एक हुलू डॉक्यूमेंट्री 'द कॉन्टेस्टेंट' में दिखाई जा रही है, जिसमें उनकी यातनाओं को विस्तार से दिखाया गया है.
जापानी कॉमेडियन नासुबी ने शेयर किया किस्सा
नासुबी ने बताया कि शो के निर्माताओं द्वारा दी गई जानकारी की कमी ने उन्हें मानसिक रूप से भ्रमित और घबराया हुआ बना दिया था. उन्हें केवल एक फोन दिया गया था, जिसे सिर्फ आपातकालीन स्थितियों के लिए उपयोग किया जा सकता था. इसके अलावा, उन्हें रोजाना 300 स्वीपस्टेक्स (लकी ड्रॉ) एंट्रीज लिखनी होती थीं, ताकि वे बिस्कुट जैसे बुनियादी खाद्य पदार्थ जीत सकें और भूख से बच सकें. पहले पुरस्कार को जीतने में उन्हें तीन हफ्ते का समय लगा था.
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नासुबी ने स्वीकार किया कि पहले तो वह इस अनोखे अनुभव के लिए उत्साहित थे, लेकिन जल्द ही अकेलापन और अलगाव उनके लिए सबसे कठिन बन गए. उन्होंने कहा, "सबसे कठिन हिस्सा निश्चित रूप से अकेलापन था. मैं इसे पार करने के लिए संघर्ष कर रहा था."
इस शो ने न केवल नासुबी की जिंदगी को बदल दिया, बल्कि दुनिया भर में यह सवाल खड़ा किया कि क्या मनोरंजन के नाम पर किसी इंसान को इतनी कठिनाइयों का सामना करना सही था. नासुबी की कहानी को जानने के बाद, बहुत से लोग इस शो की आलोचना करने लगे, क्योंकि इसे बहुत ही अमानवीय माना गया. हालांकि, नासुबी ने इस अनुभव के बावजूद इसके बारे में खुलकर बात की और अपनी कहानी साझा की.
'द कॉन्टेस्टेंट' नामक डॉक्यूमेंट्री को बनाने वाली निर्देशक क्लेयर टाइटली ने बीबीसी से कहा, "जब मैं एक अन्य प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी, तो नासुबी की कहानी पर मेरी नजर पड़ी. मुझे पता चला कि इस कहानी को बहुत ही तुच्छ तरीके से पेश किया गया था और उसमें उसकी पीड़ा को ठीक से नहीं दिखाया गया था. मुझे बहुत से सवाल थे, जैसे कि वह इतने समय तक उस कमरे में क्यों रहे और इस अनुभव का उन पर क्या असर पड़ा."