इस मंदिर के पत्थरों को थपथपाने पर आती है डमरू की आवाज, जानिए क्या है रहस्य!
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इस मंदिर के पत्थरों को थपथपाने पर आती है डमरू की आवाज, जानिए क्या है रहस्य!

कला और संस्कृति के देश भारत (India) में कई रहस्यमयी मंदिर हैं. आज आपको बता रहे हैं ऐसे ही एक मंदिर के बारे में  पत्थरों को थपथपाने से डमरू की आवाज (Hear Damru Sound From Temple Rocks) आती है. आइये जानते हैं क्या है इसका रहस्य.

फाइल फोटो

नई दिल्ली: भारत में कई रहस्यमय मंदिरों (Mysterious Temples) की कोई कमी नहीं है. देश के हर कोने में किसी न किसी देवता का मंदिर आपको देखने को मिल जाएंगे. इनमें से कई मंदिर चमत्कारी और रहस्यमय भी हैं. कई मंदिरों के पीछे का रहस्य आज भी उलझा हुआ है. आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो एक रहस्यमय मंदिर है. ऐसी मान्यता है कि यहां पत्थरों को थपथपाने पर डमरू की तरह आवाज (Hear Damru Sound From Temple Rocks) आती है. ये भगवान शंकर का मंदिर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है.

  1. इस विशालकाय मंदिर में चारो तरफ देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं
  2. यहां पत्थरों को थपथपाने पर डमरू की तरह आवाज आती है
  3. मंदिर के अंदर एक स्फटिक मणि शिवलिंग विराजमान है

11 फुट ऊंचा एक विशाल सोने का कलश

इस विशालकाय मंदिर में चारो तरफ देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं. मंदिर के अंदर एक स्फटिक मणि शिवलिंग विराजमान है. इसके अलावा यहां माता पार्वती की मूर्ति भी स्थापित की गई हैं. यहां  बड़ी विशेषता है कि इस मंदिर के ऊपरी छोर पर 11 फुट ऊंचा एक विशाल सोने का कलश भी स्थापित है.

स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने रखी नींव 

इस मंदिर के पीछे की मान्यता है कि पौराणिक काल में भगवान शिव यहां आए थे और कुछ समय रहे थे.  इसके बाद 1950 के दशक में स्वामी कृष्णानंद परमहंस (Swami Krishna Nand Paramhans) नाम के एक बाबा यहां आए. इन्होंने अपने मार्गदर्शन में जटोली शिव मंदिर (Jatoli Shiv Mandir) का निर्माण कार्य शुरू करवाया. साल 1974 में उन्होंने इस मंदिर की नींव रखी थी. साल 1983 में परमहंस ने समाधि ले ली, लेकिन मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हुआ. 

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विदेशी श्रद्धालुओं ने दिया है दान 

इस विशाल जटोली शिव मंदिर को पूरी तरह से तैयार होने में करीब 39 साल का समय लगा. करोड़ों रुपये की लागत से बने इस मंदिर के निर्माण में देश-विदेश के श्रद्धालुओं ने दान दिया है. इस वजह से इसे बनने में तीन दशक से भी ज्यादा का समय लग गया. 

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