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बीजिंग: अमेरिका (America) का कट्टर विरोधी चीन (China) चाहता है कि यूएस फौज (US Forces) अफगानिस्तान (Afghanistan) में बनी रहे. हालांकि, इस ‘चाहत’ के पीछे अफगानिस्तान का हित नहीं बल्कि उसका अपना खौफ है. दरअसल, बीजिंग को डर है कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अफगान में फिर से आतंकवाद भड़क सकता है. यदि ऐसा हुआ तो उसकी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) परियोजना खतरे में पड़ जाएगी. इसी के मद्देनजर चीन ने मध्य एशियाई देशों से सुरक्षा को लेकर सहयोग बढ़ाने का अनुरोध किया है.
साउथ चाइना मार्निग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान (Afghanistan) से अमेरिकी सैनिकों की वापसी की तारीख 11 सितंबर जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, चीन (China) की चिंता बढ़ती जा रही है. उसे लग रहा है कि अफगानिस्तान में अस्थिरता का असर उसके शिनजियांग प्रांत पर भी पड़ सकता है और कट्टरपंथी ताकतें यहां सिर उठा सकती हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए चीन के विदेश मंत्री वांग यी (Wang Yi) ने मध्य एशिया के विदेश मंत्रियों से कहा है कि उन्हें आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए मिलकर काम करना चाहिए, ताकि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव पर कोई खतरा न आए.
चीन की सबसे बड़ी चिंता यह है कि अमेरिकी सेना की वापसी के बीच अलकायदा (Al-Qaeda) ने ऐलान किया है कि वह तालिबान के साथ जल्द अफगानिस्तान में लौटेगा. यानी इसकी पूरी आशंका है कि अमेरिका के अफगान से हटते ही वहां स्थिति फिर से पहले जैसी हो जाए. दूसरी तरफ, अमेरिका अफगानिस्तान पर नजर रखने के लिए सैन्य अड्डा बनाने की संभावना तलाश रहा है, ताकि आपात स्थिति में तत्काल सैन्य कार्रवाई की जा सके. लेकिन पाकिस्तान इसके पक्ष में नहीं है.
हाल ही में पाकिस्तान ने कहा था कि वह अपने देश की जमीन पर अमेरिका या किसी भी अन्य विदेशी सेना का अड्डा नहीं बनने देगा. पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने यह बयान ऐसे समय दिया था जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन अफगानिस्तान पर आतंकी सगठनों के कब्जे की आशंका के चलते पड़ोसी देशों में सैन्य अड्डा बनाने की इच्छा दर्शाई थी. अमेरिका अब नई रणनीति पर काम कर रहा है.