Pakistan Politics: पाकिस्तान की राजनीति में नेताओं की भूमिका पूरी तरह से उलट गई हैं. उनके प्रतिद्वंद्वी इमरान खान, जो 2018 में उनकी जगह प्रधानमंत्री बने, अब सेना के साथ मतभेद के बाद खुद जेल में हैं.
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Nawaz Sharif's Return to Pakistan: पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ आम चुनाव से पहले स्वदेश लौट रहे हैं. वह जब आखिरी बार पाकिस्तान में थे तो भ्रष्टाचार के आरोप में सजा काट रहे थे - लेकिन उन्हें नवंबर 2019 में स्वास्थ्य के आधार पर जेल से निकलने की अनुमति दी गई थी. उस वक्त उनके सेना के साथ संबंध बहुत खराब हो चुके लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि पाकिस्तीनी आर्मी उस व्यक्ति का स्वागत करने के लिए तैयार है जिसे उसने तख्तापलट कर हटाया था और वह फिर से प्रधानमंत्री भी बन सकता है.
पाकिस्तान की राजनीति में नेताओं की भूमिका पूरी तरह से उलट गई हैं. उनके प्रतिद्वंद्वी इमरान खान, जो 2018 में उनकी जगह प्रधानमंत्री बने, अब सेना के साथ मतभेद के बाद खुद जेल में हैं. यह साफ नहीं है पाकिस्तान के सियासी हालात आगे क्या मोड़ लेंगे.
जब शरीफ पाकिस्तान उतरेंगे तो क्या होगा?
तीन बार के पूर्व प्रधान मंत्री ने कथित तौर पर मेडीकल ट्रीटमेंट के लिए जेल से निकलने के लिए जमानत हासिल करने के बाद, पिछले चार साल लंदन में बिताए हैं.
वह 2022 से अपनी राजनीतिक व्यस्तताएं बढ़ा रहे हैं, जब इमरान खान को संसदीय अविश्वास मत के जरिए सत्ता से बाहर कर दिया गया था. इसके बाद साशन शरीफ की पीएमएल-एन पार्टी ने संभाला, जिसके प्रभारी छोटे भाई शाहबाज़ थे. अब बड़े भाई घर आ रहे हैं.
लाहौर में करेंगे रैली, गिरफ्तारी का डर नहीं
नवाज शरीफ शनिवार को दुबई से इस्लामाबाद और फिर एक सार्वजनिक रैली के लिए अपने गृह नगर लाहौर जाएंगे.
अदालत में अभी भी कुछ मामले लंबित हैं लेकिन उन्हें गिरफ्तार होने का डर नहीं होगा क्योंकि उन्हें अगले सप्ताह सुनवाई तक जमानत मिल गई है.
क्या शरीफ फिर बनेंगे पीएम?
उनकी पार्टी ने स्पष्ट कर दिया है कि वह आगामी आम चुनाव उनके पीएम उम्मीदवार होंगें. हालांकि इस मकसद को हासिल करने के रास्ते में 73 वर्षीय नवाज के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं.
नवाज को कई मुद्दों से निपटना होगा जैसे की पाकिस्तान की चरमराती अर्थव्यवस्था के लिए उनकी पार्टी को काफी हद तक दोषी ठहराया जाता है. वहीं चुनाव को लेकर लोगों में बनी एक व्यापक राय की वोटिंग नहीं होगी क्योंकि उनका मुख्य प्रतिद्वंद्वी जेल में बंद है और फिर सेना तो है, जिसके हाथ में देश की सत्ता की जाबी है.
विदेश में रहते हुए पूर्व प्रधानमंत्री कई मौकों पर सशस्त्र बलों के खिलाफ काफी मुखर रहे हैं. विशेष रूप से उन्होंने राजनीतिक अस्थिरता के लिए आईएसआई खुफिया एजेंसी के एक पूर्व प्रमुख और पूर्व सेना प्रमुख को दोषी ठहराया.
शरीफ ने कहा कि वह 'फर्जी मामलों' का शिकार हुए और उन्होंने देश के जजों पर मिलीभगत का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, इसके परिणामस्वरूप लोकतंत्र पंगु हो गया है जिसने पाकिस्तान के किसी भी प्रधानमंत्री को पद पर अपना संवैधानिक कार्यकाल पूरा नहीं करने दिया है.
नवाज के राजनीतिक विरोधियों को संदेह है कि उन्हें वापस लौटने की अनुमति देने के लिए सेना के साथ एक समझौता किया गया है - लेकिन उनका कहना है कि यह अभी भी निश्चित नहीं है कि नवाज़ शरीफ़ चुनाव जीतेंगे.
इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी के जुल्फी बुखारी ने कहा, 'मैं उन्हें दोबारा पीएम बनते नहीं देख रहा हूं क्योंकि उनके खिलाफ मामले हैं और अदालत के आदेश के मुताबिक वह जीवन भर के लिए राजनीति से अयोग्य हैं.'
कई पर्यवेक्षकों का मानना है कि चीजें नवाज के पक्ष में अलग तरह से सामने आएंगी. राजनीतिक विश्लेषक वजाहत मसूद ने कहते है, 'हमारी राजनीति का परिदृश्य और पटकथा नहीं बदली है. केवल राजनीतिक चरित्र बदले हैं. 2018 के चुनावों में इमरान खान को चुनाव के दौरान सेना से मदद मिली थी. इस बार सेना नवाज़ शरीफ़ के लिए चुनाव कराने में व्यस्त है.'
पीएमएल-एन की भीतरी लड़ाई
पाकिस्तानी राजनीति के जानकरों के मुताबिक नवाज की अपनी पार्टी में भी कम झगड़ नहीं हैं. वह खुद अपनी बेटी मरियम को उत्तराधिकारी बनाना चाहते हैं, लेकिन शहबाज शरीफ अपने बेटे हमज़ा शहबाज़ को इस पद पर देखना चाहते हैं. हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि फिलहाल जिस तरह के सियासी हालात हैं उनमें नवाज पार्टी पर नियंत्रण हासिल करने में कामयाब रहेंगे. कहा तो यह भी जाता है कि शहबाज हमजा को पीएम बनाने के सपने देख रहे हैं ऐसे में क्या नवाज मरियम का नाम पीएम पद के लिए आगे कर सकते हैं. यह देखने वाली बात होगी.
क्या चुनाव निष्पक्ष होंगे?
इमरान खान के जेल में होने और मई में उनकी गिरफ्तारी पर हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद उनकी पार्टी के कमजोर होने के कारण, कई लोगों का कहना है कि मतदान निष्पक्ष नहीं होगा.
पीटीआई अपने नेता की गिरफ्तारी से पहले चुनावों में आगे थी, लेकिन जुल्फी बुखारी का कहना है कि अब कोई समान अवसर नहीं है - अधिकांश अन्य दल सहमत भी इस बात पर सहमत हैं.
बुखारी ने सवाल किया, 'आप चुनाव से पहले देश के सबसे लोकप्रिय राजनीतिक नेता को सलाखों के पीछे कैसे डाल सकते हैं? यदि आप स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराते हैं, तो आप देखेंगे कि इमरान खान का वोट बैंक कितना मजबूत है.'
हालांकि युद्ध का मुख्य मैदान अर्थव्यवस्था है. जनता में इसे लेकर भारी आक्रोश है. मतदाताओं के दिमाग में आसमान छूती मुद्रास्फीति और जीवन-यापन की लागत सबसे ऊपर होगी जब उन्हें अंततः वोट डालने का मौका मिलेगा.
पीएमएल-एन ने हालांकि दावा किया है कि नवाज शरीफ पहले भी सत्ता में रह चुके हैं और जानते हैं कि 'सब कुछ फिर से कैसे ठीक करना है' हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि वह ऐसा कैसे करेंगे. अधिकांश पाकिस्तानी अपने देश की लोकतंत्र की सड़ी-गली व्यवस्था को देखकर बहुत निराश हैं. खासकर युवा अब राजनेताओं और राजनीति में सेना की भागीदारी के खिलाफ खुलकर बात करते हैं.
क्या सेना नवाज शरीफ पर भरोसा कर सकती है?
सबसे बड़ा सवाल सेना और नवाज के रिश्तों का है. बता दें सेना, पाकिस्तान की राजनीति में एक प्रमुख भूमिका निभाती है और कई तख्तापलटों में सत्ता पर कब्जा कर चुकी है. सेना का नवाज शरीफ के साथ एक लंबा, उतार-चढ़ाव भरा इतिहास रहा है. हालांकि और अन्य स्पष्ट विकल्पों की कमी के बावजूद, कई राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सेना उन्हें एक और मौका देने को तैयार है.