India-Europe Economic Corridor: भारत से यूरोप तक बनने वाले कॉरिडोर से चीन टेंशन में क्यों? बैकफुट पर कैसे गया ड्रैगन
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India-Europe Economic Corridor: भारत से यूरोप तक बनने वाले कॉरिडोर से चीन टेंशन में क्यों? बैकफुट पर कैसे गया ड्रैगन

Economic Corridor: जब से जी-20 समिट से इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (India Middle East Europe Economic Corridor) का ऐलान हुआ है तब से चीन टेंशन में आ गया है. आइए इसकी वजह जान लेते हैं.

India-Europe Economic Corridor: भारत से यूरोप तक बनने वाले कॉरिडोर से चीन टेंशन में क्यों? बैकफुट पर कैसे गया ड्रैगन

India Middle East Europe Economic Corridor: अब महाशक्तियों का महाकॉरिडोर तैयार होने वाला है. एक ऐसा कॉरिडोर जो भारत को महाशक्ति बना सकता है और चीन (China) की चमक फीकी कर सकता है. इस कॉरिडोर का नाम इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (India Middle East Europe Economic Corridor) है. G-20 सम्मेलन के पहले दिन भारत ने इस नए कॉरिडोर के निर्माण का ऐलान किया. बड़ी बात ये है कि इस प्रोजेक्ट में मिडल ईस्ट और यूरोपीय देशों के अलावा अमेरिका भी अहम पार्टनर है. ये खबर सिर्फ इंफ्रास्ट्रक्चर की खबर नहीं है. ये खबर सिर्फ आर्थिक विकास की भी नहीं है. ये खबर भारत की कूटनीतिक जीत की है. ये खबर मिडल ईस्ट और यूरोप के बाजारों में चीन के बढ़ते दबदबे पर ब्रेक की है. ये खबर मिडल ईस्ट से यूरोप तक भारत की बढ़ती स्वीकार्यता की है. इस रिपोर्ट के जरिए हम आपको ये बताएंगे कि ये कॉरिडोर चीन के लिए करारा जवाब कैसे है. इस कॉरिडोर की प्लानिंग कब से चल रही थी और कैसे इस कॉरिडोर से भारत की किस्मत बदलने वाली है.

कॉरिडोर में भारत का होगा अहम रोल

जी-20 से एक तस्वीर सामने आई है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. उनकी बायीं तरफ अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन बैठे हैं और दाईं ओर सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान बिन अब्दुलाजीज अल साउद हैं. वहीं, इन नेताओं के पीछे लगे पोस्टर पर लिखा है 'पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट एंड इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर'. दिल्ली में शनिवार को G-20 सम्मेलन के दौरान इस अहम कॉरिडोर का ऐलान हुआ है. इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बता दिया कि कूटनीति और कारोबार की दुनिया में आने वाला समय भारत का है और चीन के लिए आगे की राह अब आसान नहीं होने वाली है. पीएम मोदी ने कहा कि आने वाले समय में भारत, पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच आर्थिक एकीकरण का प्रभावी माध्यम होगा. यह पूरे विश्व में कनेक्टिविटी और विकास को सस्टेनेबल दिशा प्रदान करेगा.fallback

भारत को क्या होगा फायदा?

अब सवाल है कि इस नए इकोनॉमिक कॉरिडोर में कौन-कौन हैं? इससे भारत को क्या फायदा होगा? और ये फैसला कैसे चीन के विस्तारवाद और दुनिया के बाजारों पर कब्जा करने के मंसूबों पर पानी फेर सकता है? दिल्ली के भारत मंडपम में इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर का ऐलान पूरी दुनिया के लिए सरप्राइज की तरह है, लेकिन भारत समेत इस प्रोजेक्ट से जुड़े सभी देशों के लिए ये खुशी का मौका था. इस प्रोजेक्ट से कुल 7 देश और यूरोपीय यूनियन का समूह भी जुड़ा है. भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, यूएई, फ्रांस, जर्मनी और इटली इन सभी देशों ने कॉरिडोर प्रोजेक्ट से जुड़ने का लिखित आश्वासन दिया है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि मुझे घोषणा करते हुए गर्व हो रहा है कि आज हम भारत, मिडिल ईस्ट-यूरोप कनेक्टिविटी कॉरिडोर पर सहमत हो गए हैं. इस कॉरिडोर से शिप और रेल कनेक्टिविटी होगी, जिसमें भारत, यूरोप, UAE, सऊदी अरब, और अमेरिका जुड़ेंगे.

दो गलियारों से जुड़ेगा भारत-मिडिल ईस्ट और यूरोप

वहीं, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने कहा कि हम इस प्रोजेक्ट में शामिल होकर खुश हैं और इससे जुड़े कार्यों में सहभागिता करेंगे. मुझे लगता है कि इससे अलग-अलग देशों में निर्माण कार्यों के साथ-साथ समावेशी विकास में मदद मिलेगी. जान लें कि इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर में दो गलियारे होंगे. एक पूर्वी गलियारा और दूसरा उत्तरी गलियारा. पूर्वी गलियारा भारत को पश्चिम एशिया से जोड़ेगा और उत्तरी गलियारा पश्चिम एशिया को यूरोप से जोड़ेगा. सूत्रों के मुताबिक, मिडल ईस्ट के देशों को जोड़ने के लिए रेल लाइन बनेगी. इस रेल नेटवर्क को तैयार करने की जिम्मेदारी भारत को दी जा सकती है. भारत को इस प्रोजेक्ट में एक नहीं बल्कि तीन-तीन फायदे दिख रहे हैं.

चीन के बीआरआई को कैसे लगेगा झटका?

पहला फायदा होगा कि मिडल ईस्ट और यूरोप के बाजारों में भारत की पहुंच और पकड़ मजबूत हो सकती है. दूसरा फायदा होगा कि शिप और रेल कनेक्टिविटी होने से कम से कम लागत में तेल और गैस की सप्लाई होगी. तीसरा फायदा होगा कि मिडल ईस्ट और यूरोप में चीन पर भारत को कूटनीतिक और कारोबारी बढ़त मिलेगी. अब सवाल ये है कि अमेरिका इस प्रोजेक्ट में बढ़-चढ़कर क्यों हिस्सा ले रहा है. इसकी वजह चीन का बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट है, जिसके जरिए ड्रैगन मिडल ईस्ट से यूरोप के बाजारों पर कब्जा जमाना चाहता है. अमेरिका की कोशिश चीन के प्रभाव को रोकने की है. इसलिए उसने भारत की मदद ली और सऊदी अरब-यूएई को नए कॉरिडोर के लिए तैयार किया.fallback

2 साल से हो रही थी प्लानिंग?

अमेरिका की न्यूज़ वेबसाइट एक्सियोस ने इसी साल मई महीने में इजरायली सोर्सेज के हवाले से दावा किया था कि भारत, अमेरिका, सऊदी अरब और यूएई के साथ मिलकर किसी ऐसे रेल प्रोजेक्ट का प्लान कर रहे हैं जो मिडल ईस्ट के देशों को जोड़े. 7 मई 2023 को सऊदी अरब में भारत के एनएसए अजित डोवल, अमेरिका के एनएसए जेक सुलिवन और यूएई के एनएसए शेख तह्नून बिन जायद अल नह्यान के बीच एक मीटिंग हुई थी, जिसमें सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस भी थे. कहा जा रहा है कि ये बैठक इंडिया-मिडल ईस्ट-कॉरिडोर के लिए निर्णायक साबित हुई. इस बैठक में ये तय हुआ कि मिडल ईस्ट में रेल नेटवर्क बनाते वक्त भारत की कनेक्टिविटी का पूरा ख्याल रखा जाएगा यानी रेलवे स्टेशन अरब देशों में ऐसी जगहों पर होंगे जहां से भारत को जोड़ने वाले उनके बंदरगाह पास हों ताकि सामानों की आवाजाही में आसानी हो.

सूत्रों के मुताबिक, मिडल ईस्ट की सहमति के बाद अमेरिका ने यूरोप के देशों से बात की. उन्हें कॉरिडोर प्रोजेक्ट से जोड़ने के लिए राजी किया और आखिरकार उनके हां कहने के बाद इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर पर औपचारिक रूप से मुहर लगी. सबकुछ ठीक रहा तो अगले 60 दिनों में योजना की टाइमलाइन को लेकर बड़ा फैसला हो जाएगा.

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