एक कहावत है कि जब तक सच जूते पहन रहा होता है, तब तक झूठ आधी दुनिया का सफर तय कर सकता है. लेकिन झूठ बहुत कमज़ोर होता है इसलिए वो सच के सामने टिक नहीं पाता. हज़ार बार बोला गया झूठ भी सच नहीं बन पाता. लेकिन, दुनिया में 20 करोड़ की आबादी वाला एक देश ऐसा भी है....जो पिछले 72 वर्षों से सिर्फ झूठ के सहारे खड़ा है. पाकिस्तान इसके सहारे पूरी दुनिया का चक्कर काट चुका है. पाकिस्तान कश्मीर के मसले पर पहले अमेरिका गया. फिर चीन के सामने हाथ जोड़े , इसके बाद संयुक्त राष्ट्र गया...और अब International Court Of justice जाने की बात कर रहा है. लेकिन भारत के सच के सामने उसकी सारी कोशिशें नाकाम हो गई हैं.
जम्मू-कश्मीर का विवाद अब इतिहास की बात हो चुका है. लेकिन पाकिस्तान इसे मानने को तैयार नहीं है. कल शाम...अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया था. इस बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान का नाम नहीं लिया. लेकिन उन्होंने साफ किया कि क्षेत्र के नेताओं को भड़काऊ बयानों से बाज़ आना चाहिए. ज़ाहिर है उनका इशारा इमरान ख़ान की तरफ था. प्रधानमंत्री मोदी ने ये भी कहा कि ऐसे बयान क्षेत्र की शांति के लिए खतरा है. इसके बाद डोनल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को फोन किया और उन्हें कश्मीर के मसले पर संभल कर बयान देने की नसीहत दी.
इमरान ख़ान और डोनाल्ड ट्रंप के बीच फोन पर हुई बातचीत के बाद..पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने आधी रात को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस दौरान भी शाह महमूद कुरैशी कश्मीर पर झूठ बोलते रहे. अब पाकिस्तान इस मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय अदालत में ले जाने की बात कर रहा है. पाकिस्तान भूल गया है कि कुलभूषण जाधव के मामले में पाकिस्तान को International Court Of Justice में जबरदस्त हार मिली थी. कश्मीर को लेकर पाकिस्तान ने अपनी हालत ऐसी कर ली है...कि अब दुनिया के देश उसकी बातों से ऊबने लगे हैं. इसलिए आज पाकिस्तान की इस कूटनीतिक आत्महत्या का DNA टेस्ट करना ज़रुरी है.
पाकिस्तान को कश्मीर के मसले पर हर तरफ सिर्फ हार का मुंह देखना पड़ रहा है. संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान को चीन के अलावा किसी का साथ नहीं मिला. आज भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और अमेरिका के रक्षा मंत्री मार्क एस्पर के बीच फोन पर बातचीत हुई, जिसमें राजनाथ सिंह ने साफ कर दिया कि कश्मीर पर लिया गया फैसला..भारत का आंतरिक मामला है. फ्रांस और Russia जैसे देश भी इस मुद्दे पर भारत के साथ हैं. जबकि UAE और सऊदी अरब भी इसे भारत का आंतरिक मामला बता चुके हैं. पाकिस्तान के साथ इस वक्त सिर्फ चीन और टर्की जैसे देश खड़े हैं, जबकि कुवैत, कतर और बहरीन जैसे देशों ने इस मुद्दे पर कोई बयान नहीं दिया है. अरब देशों के साथ भारत का वार्षिक व्यापार 7 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का है. ज़ाहिर है कि ये देश भारत के संबंधों को चोट नहीं पहुंचाना चाहते.
इसके विपरीत पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पूरी तरह डूब चुकी है. पाकिस्तान IMF से करीब 43 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज़ ले चुका है. पाकिस्तान में 1 अमेरिकी डॉलर की कीमत इस वक्त 160 पाकिस्तानी रुपये के बराबर हो चुकी है. यानी पाकिस्तान कूटनीति और अर्थनीति के मोर्चों पर एक Failed State बन चुका है.
पाकिस्तान लगातार पिछले कई दिनों से बॉर्डर पर सीज़फायर का उल्लंघन भी कर रहा है. लेकिन भारतीय सेना की जवाबी कार्रवाई ने पाकिस्तान को पूरी तरह हताश कर दिया है. पाकिस्तान में सिर्फ लोकतंत्र ही नहीं, वहां के प्रधानमंत्री भी खुद एक मज़ाक बन गए हैं. सत्ता में आने से पहले इमरान ख़ान पाकिस्तान की सेना में सुधार के बड़े बड़े दावे किया करते थे. इमरान ख़ान का मानना था कि सेना के अधिकारियों का कार्यकाल नहीं बढ़ाया जाना चाहिए. इमरान ख़ान के मुताबिक ऐसा सिर्फ तानाशाह करते हैं. लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद इमरान ख़ान अपना ये वादा भूल गए और उन्होंने पाकिस्तानी सेना के आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा को 3 साल का Extension दे दिया है.
सब जानते हैं कि पाकिस्तान में प्रधानमंत्री से ज्यादा ताकतवर आर्मी चीफ होता है. इसलिए आप कह सकते हैं कि अपने बॉस को Extension देकर, इमरान ख़ान ने खुद की नौकरी बचाई है, क्योंकि उनके देश में सेना के खिलाफ जाने की हिम्म्त कोई सरकार नहीं कर सकती. हालांकि पाकिस्तान की विपक्षी पार्टियों और कानून के जानकारों ने इसे ग़लत फैसला बताया है.
भारत की तरह पाकिस्तान में भी प्रधानमंत्री का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है. इमरान ख़ान पाकिस्तान के 19 वें प्रधानमंत्री हैं. लेकिन उनसे पहले के 18 प्रधानमंत्री 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. प्रधानमंत्री के तौर पर इमरान की राह भी मुश्किल लग रही है. सेना प्रमुख बाजवा का कार्यकाल बढ़ाना भी इसी तरफ इशारा कर रहा है. फील्ड मार्शल अयूब ख़ान, जनरल ज़िया उल हक और जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने भी इसी तरह अपना कार्यकाल बढ़वाया था. इसके बाद इन लोगों ने तख्तापलट का सहारा लिया और पाकिस्तान के तानाशाह बन गए. बाजवा भी इन्हीं लोगों की राह पर चल रहे हैं और इमरान ख़ान चाहकर भी उन्हें नहीं रोक सकते.
पाकिस्तान की सरकार कैसे वहां के सेना प्रमुख के इशारों पर काम करती है. आज आपको ये भी जानना चाहिए. जनरल बाजवा को पाकिस्तान में सबसे शक्तिशाली माना जाता है. पिछले साल Forbes मैगज़ीन ने उन्हें दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोगों की लिस्ट में जगह दी थी. इस लिस्ट में बाजवा 68वें नंबर पर थे. पाकिस्तान में आर्मी चीफ की नियुक्ति प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है. लेकिन असली ताकत सेना के पास ही है. वर्ष 2017 में बाजवा ने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शाहिद खक़ान अब्बासी के निर्देश मानने से इनकार कर दिया था. तब पाकिस्तान में ईश निंदा के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे थे और अब्बासी ने सेना को हालात काबू करने के लिए कहा था. लेकिन बाजवा ने अपने प्रधानमंत्री के निर्देशों को खारिज कर दिया और प्रदर्शनकारियों के साथ समझौता करने में जुट गए. तब सेना के दबाव में पाकिस्तान के कानून और न्याय मंत्री ज़ाहिद हामिद को इस्तीफा तक देना पड़ा था.
माना जाता है कि इमरान ख़ान लोगों के द्वारा नहीं बल्कि सेना के द्वारा चुने गए प्रधानमंत्री हैं. पाकिस्तान को वहां की सरकार और संविधान के द्वारा नहीं बल्कि बाजवा Doctrine द्वारा चलाया जा रहा है. इसी Doctrine के मुताबिक वहां महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियां की जाती हैं और सभी महत्वपूर्ण फैसले लिए जाते हैं. यानी सरकार चलाने में इमरान ख़ान की कोई भूमिका नहीं है. वो सिर्फ अपने आर्मी चीफ के प्रवक्ता हैं. आप उन्हें पाकिस्तान की सेना का Civilian चेहरा भी कह सकते हैं.
हालांकि पाकिस्तान की Bar Council ने इमरान ख़ान के इस फैसले का विरोध किया है. बार काउंसिल की प्रेस रिलीज़ में कहा गया है कि सिर्फ मजबूत संस्थाएं ही सरकार के कामकाज और देश की तरक्की में मदद कर सकती है. इसलिए सरकार को इस फैसले पर दोबारा विचार करना चाहिए. Bar Council ने व्यक्तियों को संस्थाओं से ऊपर मानने की परंपरा का भी विरोध किया है.
जनरल कमर जावेद बाजवा ने अपना कार्यकाल इसलिए बढ़वाया है, क्योंकि वो भारत के साहस से घबराए हुए हैं. उन्हें खौफ है कि भारत PoK पर बड़ी कार्रवाई कर सकता है. पाकिस्तानी सेना इतनी डरी हुई है कि उसने PoK और जम्मू कश्मीर के पुंछ के बीच चलने वाली बस सेवा भी रोक दी है.
पाकिस्तान और उसके कब्ज़े वाले कश्मीर की इसी स्थिति को अब भारत के नज़र से देखिए. ऐसा नहीं है, कि जम्मू-कश्मीर में समस्याएं नहीं हैं. और ऐसा भी नहीं है, कि वहां के हालात पूरी तरह सामान्य हो चुके हैं. लेकिन बदलाव की कोशिशें काफी तेज हैं.