Swaminarayan Mandir: स्वामीनारायण संप्रदाय के संस्थापक भगवान स्वामीनारायण ने अपने जीवनकाल में ही कुछ मंदिरों की स्थापना कर दी थी. ताकि इन मंदिरों के जरिए संप्रदाय का प्रचार-प्रसार दूर-दूर तक हो सके. साथ ही लोग अपनी आस्था से जुड़े रहें. आज हम उन 6 मंदिरों के बारे में जानते हैं जिनका निर्माण भगवान स्वामीनारायण के जीवनकाल में हुआ और उन्हें BAPS स्वामीनारायण संस्था और स्वामीनारायण संप्रदाय के मूल मंदिर कहा जाता है.
अहमदाबाद में निर्मित स्वामीनारायण मंदिर इस संप्रदाय का पहला मंदिर है. इसके निर्माण के लिए ब्रिटिश राज के दौरान एक अंग्रेज कलेक्टर ने जमीन दी थी. इस मंदिर में भगवान स्वामीनारायण ने स्वयं वीएस 1878 में फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन (सोमवार 24 फरवरी 1822 ईस्वी) को भगवान नरनारायण देव की छवियां स्थापित की थीं.
भुज में बने इस मंदिर के लिए यहां के स्थानीय निवासी गंगाराम मुल, सुंदरजी सुथार और हिरजी सुथार समेत कई भक्तों ने अनुरोध किया था. तब भगवान स्वामीनारायण ने वैष्णवानंद स्वामी को मंदिर का निर्माण करने का निर्देश दिया और फिर उन्होंने स्वयं वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष के 5 वें दिन (शुक्रवार 15 मई 1823 ईस्वी) वीएस 1879 को भुज में भगवान नरनारायण देव की मूर्ति स्थापित की.
धोलेरा के पुंजाजी दरबार ने भगवान स्वामीनारायण से धोलेरा में एक मंदिर बनाने का आग्रह किया. तब भगवान स्वामीनारायण के निर्देश पर निश्कुलानंद स्वामी और अदभुतानंद स्वामी के मार्गदर्शन में धोलेरा का मंदिर बना. जहां भगवान स्वामीनारायण ने वीएस 1882 में वैशाख महीने के कृष्ण पक्ष के 13वें दिन (शनिवार 19 मई 1826 ई.) को श्री मदनमोहन देव और राधिकाजी की स्थापना की.
भगवान स्वामीनारायण 25 वर्षों तक गढ़दा में रहे. यहां उन्होंने स्वामीनारायण संप्रदाय का केंद्र भी बनाया. यहां के दादाखाचर और उनकी चार बहनों जया (जिवुबा), ललिता (लादुबा), पांचाली और नानू (रमाबाई) के अगाध प्रेम और आग्रह पर भगवान ने अपनी व्यक्तिगत देखरेख में और विरक्तानंद स्वामी की सहायता से गढ़दा में एक भव्य मंदिर का निर्माण किया. इसके बाद बीएस 1885 में आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की 12वीं तिथि (शनिवार 9 अक्टूबर 1828 ई.) को भगवान स्वामीनारायण ने स्वयं गढ़दा मंदिर में श्री गोपीनाथजी और राधिकाजी की मूर्तियां स्थापित कीं.
पंचाल के जिनाभाई (हेमतसिंह) दरबार ने भगवान स्वामीनारायण से जूनागढ़ में मंदिर निर्माण का आग्रह करते हुए भूमि भी दान की. तब भगवान स्वामीनारायण के निर्देश पर ब्रह्मानंद स्वामी ने यहां विशाल मंदिर बनवाया. जिसमें भगवान स्वामीनारायण ने वीएस 1884 में वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन (शुक्रवार 1 मई 1828 ईस्वी) को श्री राधारमण देव की स्थापना की.
वड़ताल में भगवान स्वामीनारायण के भक्तों जोबन पागी, कुबेरभाई पटेल और रणछोड़भाई पटेल आदि ने विशाल मंदिर बनाने का अनुरोध किया. तब ब्रह्मानंद स्वामी और अक्षरानंद स्वामी ने वडताल मंदिर का डिजाइन तैयार और इसके आधार पर मंदिर निर्माण हुआ. इस मंदिर की नींव में भगवान स्वामीनारायण ने स्वयं पत्थर लगाया. वहीं निर्माण पूर्ण होने पर वीएस 1881 में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के 12वें दिन (गुरुवार 3 नवंबर 1823 ई.) को श्री राधाकृष्ण देव के साथ श्री लक्ष्मीनारायण देव, श्री रणछोड़राय देव और श्री हरिकृष्ण महाराज (स्वयं की छवि) को स्थापित किया.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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