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दुनिया की पहली ट्रेन जो है चलता-फिरता हॉस्पिटल, कब और कैसे हुई शुरू? सिर्फ ट्रेन नहीं ये है मरीजों के लिए लाइफलाइन

Lifeline Express Hospital Train: भारतीय रेलवे से जुड़ी कई चीजों के बारे में जानते होंगे, लेकिन आज हम आपको रेलवे की पास मौजूद एक ऐसी ट्रेन के बारे में बता रहे हैं, जो देश का गौरव है. जी हां, भारत के पास दुनिया की पहली हॉस्पिटल ट्रेन 'जीवन रेखा' है, जिसे खासतौर से उन लोगों के लिए तैयार किया गया है, जो अपने इलाज के लिए अस्पताल जाने में असमर्थ हैं. आइए जानते हैं हॉस्पिटल ट्रेन का इतिहास क्या है, इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई थी. इसके साथ ही जानेंगे इससे जुड़े कुछ दिलचस्प फैक्ट्स...

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यह कोई आम ट्रेन नहीं है, बल्कि बहुत खास है. इस ट्रेन की शुरुआत रेलवे ने 1991 में की थी, जो देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर स्वास्थ्य सुविधाएं देती हैं. यह इम्पैक्ट इंडिया फाउंडेशन (IIF), भारतीय रेलवे और हेल्थ मिनिस्ट्री के सहयोग से शुरू की गई थी. 

1991 में शुरू हुई थी शुरुआत

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1991 में शुरू हुई थी शुरुआत

यह स्‍पेशल ट्रेन चलता-फिरता हॉस्पिटल है, जिसे लाइफ लाइन एक्‍सप्रेस भी कहा जाता है. देश के दूर-दराज और दुर्गम इलाकों में जरूरतमंदों को स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं. 

आज भी है इस ट्रेन की डिमांड

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आज भी है इस ट्रेन की डिमांड

लाइफलाइन एक्सप्रेस 16 जुलाई 1991 को अपनी पहली यात्रा पर गई थी. जब इस ट्रेन की शुरुआत की गई थी, तब देश के हालात बेकार थे खासकर स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में, लेकिन आज भी इस ट्रेन की उतनी ही डिमांड है. यह ट्रेन उन लोगों के लिए डिजाइन की गई है, जो दूरदराज के इलाकों में रहते हैं और बड़े शहरों के अस्पतालों में जाकर इलाज कराने में असमर्थ हैं. इन लोगों के लिए बहुत उपयोगी साबित हुई है. इम्पैक्ट इंडिया अभी भी रेलवे, कॉर्पोरेट और निजी दाताओं की मदद से ट्रेन चलाता है.

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7 कोच वाली जीवन रेखा ट्रेन एडवांस टेक्‍नोलॉजी और बेहतरीन मेडिकल स्‍टाफ से लैस है. इस ट्रेन में ब्‍लड प्रेशर और शुगर जैसी ओपीडी सर्विस है. इतना ही नहीं 2 मॉडर्न ऑपरेशन थिएटर, 5 ऑपरेटिंग टेबल, पेशंट वॉर्ड जैसी फैसिलिटी वाली इस ट्रेन में कई गंभीर बीमारियों का इलाज और सर्जरी भी हो सकती है. जानकारी के मुताबिक जीवन रेखा हर जगह पर 21 से 25 दिनों तक रुकती है. 

फुली Air कंडीशन्ड है ट्रेन

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फुली Air कंडीशन्ड है ट्रेन

ट्रेन की हर बोगी एयर कंडीशन्ड है. 2007 में भारतीय रेलवे ने इस सेवा के लिए 5 नए कोच उपलब्ध कराए. पुरानी ट्रेन में केवल एक ऑपरेशन थियेटर था, नई ट्रेन में ऑपरेशन थियेटर बढ़कर दो हो गए. साल 2016 में दो कोच जोड़े गए, अब यह 7 कोच वाली अस्पताल ट्रेन बन गई. 

कई तरह की सुविधाएं हैं

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कई तरह की सुविधाएं हैं

ट्रेन में नसबंदी जैसे प्रोग्राम के लिए भी एक रूम है. मेडिकल वार्ड, पॉवर जेनरेटर, पैंट्री कार और मेडिकल सामग्री का स्टोर है. वहीं, मेडिकल टीम के आराम का भी ट्रेन में पूरा इंतजाम है, जिसमें 12 बर्थ वाला स्टाफ-क्वार्टर है. इसके अलावा ट्रेन में एक नेत्र परीक्षण कक्ष, डेंटल यूनिच, फार्मेसी, एक्स-रे यूनिट, किचन यूनिट, वाटर प्यूरीफायर और एक सभागार भी है. 

लाइफ लाइन एक्सप्रेस का मकसद

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लाइफ लाइन एक्सप्रेस का मकसद

ट्रेन में मौके पर ही देश के उन दुर्गम इलाकों में मुफ्त इलाज दिया जाता है, जहां मेडिकल सुविधाएं नहीं हैं.  बच्चे और बुजुर्ग जो अस्पताल तक नहीं पहुंच सकते, उन्हें त्वरित उन्नत सर्जिकल इलाज उपलब्ध कराना. ट्रेन के ऑपरेशन थिएटर में कटे होठ, मोतियाबिंद जैसे ऑपरेशन भी किए जाते हैं. 

 

कोरोना के दौरान निभाया अहम रोल

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कोरोना के दौरान निभाया अहम रोल

ट्रेन में स्‍टाफ कंपार्टमेंट और पेंट्री एरिया भी है. साथ हीसीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं. कोविड-19 महामारी के दौरान लाइफलाइन एक्सप्रेस ट्रेन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.  इस समय इसकी स्लीपर कारों को आइसोलेशन वार्ड में बदल दिया था. 

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